Feeling low? भगवत गीता के 5 Quotes कर देंगे Motivate
5 Powerful Quotes from Bhagwad Gita: जीवन में निराशा? गीता के ये 5 श्लोक देंगे आपको नई ऊर्जा और दिशा। आत्मविश्वास बढ़ाएं और चुनौतियों का सामना करें इन ज्ञान की बातों से।
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Feeling low? भगवत गीता के 5 Quotes कर देंगे Motivate
कभी-कभी जीवन इतना भारी लगने लगता है कि खुद को संभालना मुश्किल हो जाता है। ऐसे समय में श्रीमद् भगवद गीता एक शानदार मार्गदर्शक बन सकती है। गीता सिर्फ एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का साइकोलॉजिकल मैप है, जहाँ से हर तरह की मनोस्थिति का समाधान मिलता है। आज हम आपके लिए लाए हैं 5 गहराई से भरे श्लोक जो आपके आत्मविश्वास को फिर से जगा सकते हैं।
“नैव किञ्चित्करोमीति युक्तो मन्मयः सदा। दृष्ट्वा शृण्वंस्तु स्पृशंस्ति जिघ्रन्नश्नन् गच्छन् स्वपंश्वसन्॥” (ग.गी. 5.8)
अर्थ: एक आत्मसाक्षी व्यक्ति हर क्रिया करते हुए भी सोचता है कि मैं कुछ नहीं कर रहा। क्योंकि वह समझता है कि कर्म शरीर से होते हैं, आत्मा तो साक्षी मात्र है। जब आपको लगे कि आप थक चुके हैं या किसी से पीछे हैं तो याद रखें, आपकी असली शक्ति भीतर है। आप सिर्फ कर्म करिए, फल की चिंता नहीं।
परिस्थिति से भागे नहीं, शांत होकर समझना ही बुद्धिमानी
“यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥” (ग.गी. 2.58)
अर्थ: जैसे कछुआ अपने अंगों को समेट लेता है, वैसे ही जो व्यक्ति अपने इन्द्रियों को नियंत्रित कर ले, वही स्थिर बुद्धि वाला होता है। जब भावनाएं बेकाबू हों, तो खुद को थोड़ा पीछे खींचें। शांत होकर परिस्थिति को समझना ही बुद्धिमानी है, रिएक्ट मत करो, रिस्पॉन्ड करो।
कार्य ही धर्म है
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥” (ग.गी. 2.47)
अर्थ: तुम्हारा अधिकार सिर्फ कर्म करने में है, फल पर नहीं। न तो फल की कामना करो और न ही अकर्म में आसक्त हो। जब आप असफलता से घबराते हैं तो यह श्लोक आपको याद दिलाता है करो और आगे बढ़ो, रिजल्ट खुद-ब-खुद आएगा।
खुद से जीतना ही असली सफलता
“बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः। अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत्॥” (ग.गी. 6.6)
अर्थ: जो खुद को जीत ले, उसके लिए आत्मा मित्र बन जाती है। जो खुद पर नियंत्रण नहीं रखता, उसके लिए आत्मा शत्रु के समान हो जाती है। जब खुद पर गुस्सा आए, हीनता महसूस हो तो यह श्लोक कहता है पहले खुद के दोस्त बनो, तभी दुनिया तुम्हें अपना मानेगी।
हर चीज का समय है
“श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥” (ग.गी. 3.35)
अर्थ: अपना धर्म चाहे त्रुटिपूर्ण क्यों न हो, वह दूसरे के धर्म से श्रेष्ठ है। अपने कार्य में मृत्यु भी हो जाए तो अच्छा है, पर परधर्म का पालन भयकारी है। जब आप दूसरों से तुलना करते हैं और अपने रास्ते को लेकर डगमगाते हैं तो यह श्लोक कहता है तुम्हारा रास्ता तुम्हारे लिए सबसे सही है।