सार

Eating Disorders: बच्चों में खाने की आदतों में बदलाव को समझना एक चुनौतीपूर्ण काम है। कई माता-पिता इसे "पिकी ईटिंग" (बच्चों की सामान्य खाने की पसंद) समझकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं।

Unusual Eating Habits in Children: 5 साल के आदिल को चावल देखकर ही गुस्सा आता है। कितना भी भूखा क्यों न हो, अगर उसे चावल खाने को दिया जाए, तो वह घंटों भूखा रह लेगा। जब तक उसे उसकी पसंद की पराठा या बिरयानी नहीं मिल जाती, तब तक वह भूखा ही रहेगा।

वहीं 12 साल की देवनंदा के लिए खाने में राई एक बड़ी समस्या है। अगर उसे खाने में राई दिख जाए, तो वह बेचैन हो जाती है। सारी राई निकालने के बाद ही वह खाना खाती है।
नौ साल के अभिजित के लिए कुछ करी का रंग ही समस्या है। पीले, सफेद जैसे हल्के रंग की करी देखकर उसे उल्टी जैसा महसूस होता है।

रेस्ट्रिक्टिव फ़ूड इनटेक डिसऑर्डर (Restrictive food intake disorder)

ये स्थितियाँ सुनकर आपको क्या लगता है? क्या आपके बच्चे भी खाने-पीने में ऐसी पसंद-नापसंद करते हैं? अगर हाँ, तो उन्हें डाँटने या भूख लगने पर खा लो कहकर अनदेखा करने से कुछ नहीं होगा। क्योंकि ऐसी आदतें एवॉइडेंट/रेस्ट्रिक्टिव फ़ूड इनटेक डिसऑर्डर (ARFID) जैसे खानपान संबंधी विकारों के लक्षण हो सकते हैं। माता-पिता के सही हस्तक्षेप और पेशेवर मदद की ज़रूरत वाले इन विकारों को गंभीरता से लेना चाहिए। क्योंकि खाना बच्चों के शारीरिक विकास के साथ-साथ बौद्धिक विकास के लिए भी ज़रूरी है। खाने की कमी से शरीर कमज़ोर होने के साथ-साथ उनका सामाजिक जीवन भी प्रभावित होता है।

कोच्चि में स्थित चाइल्ड डेवलपमेंट सेंटर, प्रयत्न के संस्थापक और वरिष्ठ ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट डॉक्टर जोसेफ सन्नी कुन्नश्शेरी कहते हैं कि बच्चों में खानपान संबंधी विकारों की चर्चा अक्सर विटामिन, कैल्शियम, आयरन जैसी पोषक तत्वों की कमी तक ही सीमित रहती है। लेकिन बच्चों में पाए जाने वाले खानपान संबंधी विकार इससे कहीं ज़्यादा विविध हैं। हाल के दिनों में ऐसी स्थिति से गुज़रने वाले बच्चों की संख्या में काफ़ी इज़ाफ़ा हुआ है और कई बार माता-पिता का सही हस्तक्षेप न मिल पाने से ऐसी स्थितियाँ और भी जटिल हो जाती हैं। ऐसी स्थिति से गुज़रने वाले बच्चों के लिए उनके मानसिक स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखते हुए इलाज ज़रूरी है।

 खानपान संबंधी विकार (Eating Disorders)

1. एवॉइडेंट/रेस्ट्रिक्टिव फ़ूड इनटेक डिसऑर्डर (ARFID)

  •  केवल कुछ खास खाद्य पदार्थों का चयन करके खाना 
  • खाने के स्वाद, बनावट, गंध जैसी चीज़ों को बहुत ज़्यादा महत्व देना 
  • खाना खाने में बिल्कुल रुचि न दिखाना 
  •  उल्टी, हिचकी जैसे बुरे अनुभवों के डर से खाना छोड़ देना 
  •  इससे बच्चों का शारीरिक विकास कम होता है और पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।

2. एनोरेक्सिया नर्वोसा (शुरुआती दौर)

  •  वज़न कम करने के लिए खाने पर सख्त नियंत्रण
  •  7-8 साल की उम्र में भी यह बीमारी हो सकती है
  • मोटापे के डर से भूखा रहना, ज़रूरत से ज़्यादा व्यायाम करना, खाना खाने के बाद उल्टी करने की कोशिश करना

3. बुलिमिया नर्वोसा (बच्चों में दुर्लभ)

  • ज़्यादा खाना खाने के बाद बहुत ज़्यादा व्यायाम करना
  • किशोरों में बहुत कम देखने को मिलता है
  •  खाने की लत और मोटापे का डर इस स्थिति का कारण है।

4. पाइका (Pica)

* खाने योग्य न होने वाली चीज़ें (मिट्टी, कागज़, क्रेयॉन, साबुन आदि) खाना
* छोटे बच्चों और विकास संबंधी विकलांगता वाले लोगों में आम है

5. बिंज ईटिंग डिसऑर्डर (BED)

  • कम समय में बहुत ज़्यादा खाना खाना
  • खाने को नियंत्रित न कर पाने की भावना मानसिक रूप से परेशान करना

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खानपान संबंधी विकारों के कारण (Causes of eating disorders)

1. आनुवंशिकता: अगर परिवार में खानपान संबंधी विकार रहे हैं, तो बच्चों में भी इसकी संभावना ज़्यादा होती है।

2. माता-पिता का व्यवहार: माता या पिता खाने और वज़न के बारे में कैसे बात करते हैं, इसका भी बच्चों पर बहुत असर पड़ता है।
3. मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ: अवसाद, आलस्य, परफेक्शनिज़्म, ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) भी इसका कारण हो सकते हैं।
4. सामाजिक दबाव: स्कूल में बदमाशी, दोस्तों की प्रतिक्रियाएँ, सोशल मीडिया का प्रभाव भी बच्चों को खाने पर नियंत्रण करने या उसमें रुचि कम करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
5. संवेदी समस्याएँ: खाने की बनावट, गंध, स्वाद को बहुत ज़्यादा महत्व देना

खानपान संबंधी विकारों का इलाज (Treatment of eating disorders)

खानपान संबंधी विकारों की जल्दी पहचान करना और ज़रूरी इलाज करवाना बहुत ज़रूरी है। अगर बच्चे के स्वास्थ्य में कोई समस्या दिखे या खाने को लेकर बहुत ज़्यादा डर हो, तो माता-पिता को बाल रोग विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए।

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