Microplastics: एक नई वैज्ञानिक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि माइक्रोप्लास्टिक अब महिलाओं के फॉलिकल फ्लूड और पुरुषों के स्पर्म फ्लूड में भी पाया गया है।
Microplastics in Reproductive Fluids: हमारे चारों ओर धड़ल्ले से प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है। खाने से लेकर रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली चीजों तक में प्लास्टिक दिख ही जाती है। प्लास्टिक का इतना अधिक इस्तेमाल वातावरण में जहर घोल रहा है। प्लास्टिक के छोटे कण माइक्रोप्लास्टिक हर जगह मौजूद हैं। हम जिस हवा में सांस लेते हैं, जो पानी पीते हैं, उसमें भी माइक्रोप्लास्टिक प्रवेश कर चुका है। वैज्ञानिकों ने स्टडी के माध्यम से बताया कि मानव के प्रजनन द्रव्यों में भी माइक्रो प्लास्टिक पहुंच बना चुका है। जानिए क्या है माइक्रोप्लास्टि संबंधी नई स्टडी।
मनुष्यों के प्रजनन द्रव्य में पहुंचा माइक्रोप्लास्टिक
यूरोपियन सोसाइटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन एंड एंब्रियोलॉजी की 41वीं वार्षिक बैठक के दौरान शोध प्रस्तुत किए गए। शोध में वैज्ञानिकों ने इंसानों के रिप्रोडक्टिव फ्लूड (प्रजनन द्रव्य) में माइक्रो प्लास्टिक जैसे छोटे कणों की मौजूदगी का खुलासा किया। इस स्टडी के बाद यह बात साफ हो जाती है कि भविष्य में पैदा होने वाले बच्चों पर भी इसका बुरा असर देखने को मिलेगा। आईए जानते हैं कि माइक्रो प्लास्टिक क्या होती है।
माइक्रोप्लास्टिक क्या है?
माइक्रो प्लास्टिक 5 मिली मीटर से भी कम के प्लास्टिक के छोटे कण होते हैं। इन्हें नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता है। एक मिलीमीटर के 1000 में हिस्से से भी छोटे नैनो प्लास्टिक भी इंसानी शरीर के लिए खतरनाक होते हैं। जब बड़े प्लास्टिक के केमिकल्स टूटते हैं तो छोटे कण वाले प्लास्टिक का निर्माण होता है।
प्रजनन द्रव्य में माइक्रोप्लास्टिक पॉलिमर
शोधकर्ताओं ने रिसर्च के दौरान 29 महिलाओं के फॉलिकल फ्लूड और पुरुषों के स्पर्म फ्लूड को टेस्ट किया। वैज्ञानिको को चौंकाने वाले रिजल्ट देखने को मिले। प्रजनन द्रव्य में पॉलीटेट्राफ्लुओरोएथिलीन (PTFE), पॉलीस्टाइनिन (PS), पॉलीइथिली के साथ ही कई माइक्रोप्लास्टिक पॉलिमर मौजूद थे। फॉलिक्युलर फ्लूड में 69% माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी हैरान करती है।
माइक्रोप्लास्टिक के कारण न्यूबॉर्न पर असर
सिर्फ महिलाओं नहीं बल्कि पुरुषों के स्पर्म फ्लूड में 55% माइक्रोप्लास्टिक पाया गया। माइक्रोप्लास्टिक पर्यावरण के साथ ही स्वास्थ्य को भी खतरा पहुंचाता है। पशुओं में अध्ययन से पता चला है कि जिन टिशू या ऊतकों में माइक्रोप्लास्टिक जमा होता है उसमे सूजन आ जाती है। साथ ही फ्री रेडिकल्स का निर्माण, डीएनए डैमेज और कई अन्य तरह की समस्याएं पैदा होती हैं। माइक्रोप्लास्टिक मनुष्य के एग या स्पर्म की क्वालिटी खराब करता है जिसका सीधा असर होने वाले बच्चे पर पड़ता है।