Backward Walking Benefits: रोज 10,000 स्टेप्स पूरे करने का टाइम नहीं मिलता? बैकवार्ड या रेट्रो वॉकिंग अपनाएं। कम समय में ज्यादा असर, कैलोरी बर्न तेज और घुटनों-कमर के दर्द में राहत। जानें रेट्रो वॉकिंग का सीक्रेट हैक और फायदे।
Retro Walking Benefits: आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में रोज 10,000 स्टेप्स पूरे करना बहुत से लोगों के लिए मुश्किल हो जाता है। ऑफिस, घर और जिम्मेदारियों के बीच लंबी वॉक के लिए समय निकालना आसान नहीं। ऐसे में बैकवार्ड या रेट्रो वॉकिंग एक स्मार्ट फिटनेस हैक है। ये कम समय में ज्यादा असर दिखाती है, यही इसकी खासियत है। सही तरीके से की गई रेट्रो वॉकिंग न सिर्फ स्टेप्स काउंट बढ़ाती है, बल्कि जोड़ों और कमर के दर्द में भी राहत देती है।
क्या है बैकवार्ड या रेट्रो वॉकिंग?
बैकवार्ड या रेट्रो वॉकिंग का मतलब है पीछे की ओर चलना। यह तरीका जिम ट्रेनिंग और फिजियोथेरेपी में लंबे समय से इस्तेमाल हो रहा है। पीछे की ओर चलने से शरीर के अलग मसल्स एक्टिव होते हैं, बैलेंस सुधरता है और कैलोरी बर्न ज्यादा महसूस होती है।
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बैकवार्ड या रेट्रो वॉकिंग से कैसे पूरे करें 10 हजार स्टेप्स?
- रेट्रो वॉकिंग में कम समय में ज्यादा इंटेंसिटी मिलती है। यही वजह है कि फिटनेस एक्सपर्ट्स इसे “स्टेप्स मल्टीप्लायर” मानते हैं।
- दिन में 5-10 मिनट के छोटे सेशन्स करें
- घर की बालकनी, पार्क या खाली छत पर करें
- शुरुआत में दीवार या रेलिंग का सहारा लें
- स्पीड नहीं, सही पोश्चर पर फोकस करें
- सीक्रेट हैक- 100 कदम = 1000 स्टेप्स जैसा असर क्यों?
- यह कोई मेथ्स वाली गिनती नहीं, बल्कि इंटेंसिटी-बेस्ड हैक है।
रेट्रो वॉकिंग में हार्ट रेट तेजी से बढ़ता है, मसल्स ज्यादा काम करते हैं और एनर्जी खर्च ज्यादा होती है। इसलिए 100 बैकवार्ड स्टेप्स का असर लगभग 1000 नॉर्मल स्टेप्स जितना महसूस होता है-खासकर कैलोरी बर्न और फिटनेस बेनिफिट्स में।
बैकवार्ड या रेट्रो वॉकिंग के फायदे
- कैलोरी बर्न तेजी से होती है
- बैलेंस और कोऑर्डिनेशन बेहतर होता है
- घुटनों पर कम दबाव पड़ता है
- जांघ और ग्लूट मसल्स मजबूत होते हैं
- दिमाग ज्यादा अलर्ट रहता है
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कमर और घुटने के दर्द से कैसे मिलती है राहत?
पीछे की ओर चलने से घुटनों पर सीधा झटका नहीं पड़ता और कमर के मसल्स अलग एंगल से एक्टिव होते हैं। यही कारण है कि यह तरीका घुटनों के दर्द, लोअर बैक पेन और स्टिफनेस में राहत देने में मदद करता है। फिजियोथेरेपिस्ट भी इसे रिकवरी एक्सरसाइज के तौर पर सुझाते हैं।
