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कोरोना से हर 2 मिनट में हो रही है एक मौत, शवों का ढेर लगा तो रेफ्रिजरेटर ट्रक का इस्तेमाल किया जा रहा
नई दिल्ली. कोरोना से दुनिया में सबसे ज्यादा अमेरिका प्रभावित है। 6 अप्रैल की दोपहर 1 बजे तक के आंकड़े देखे तो अब तक 3,36,851 लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं। 9,620 लोगों की मौत हो चुकी है। यहां एक दिन में 1200 लोगों की मौत हुई है। बता दें कि अमेरिका ने अब तक 1,772,369 कोरोना टेस्ट किए हैं। वहीं दूसरी नंबर पर स्पेन है, जहां पर कोरोना के 131646 संक्रमित हैं. 12,641 की मौत हो चुकी है। स्पेन में अबतक 3,55,000 कोरोना टेस्ट हुए हैं।
| Published : Apr 06 2020, 02:37 PM IST
कोरोना से हर 2 मिनट में हो रही है एक मौत, शवों का ढेर लगा तो रेफ्रिजरेटर ट्रक का इस्तेमाल किया जा रहा
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सबसे ज्यादा मौत न्यूयॉर्क में हुई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीएनएन ने ब्रूकलिन के द यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल का दौरा किया तो हालात युद्ध से भी बदतर पाया। यह अस्पताल अब सिर्फ कोरोना के मरीजों का ही इलाज कर रहा है। यहां आए मरीजों में से 25 फीसदी की मौत हो चुकी है।
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ब्रूकलिन के द यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल की बात करें तो स्टाफ ने एक शव को लपेटा और 30 मिनट के अंदर शव को रवाना किया। फिर उस जगह को सैनिटाइज किया, लेकिन फिर से वहां पर गंभीर हालत में दूसरे मरीज को रख दिया।
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ब्रूकलिन के द यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में आए 90% मरीज 45 साल से ऊपर के हैं। 60% की उम्र 65 से ज्यादा है। कई मरीज 20 से 30 साल के भी हैं। एक मरीज तो 3 साल का बच्चा भी था।
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ब्रूकलिन के द यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के डॉक्टर्स का कहना है कि उन्होंने ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं देखी है और इनसे मुकाबला करने के लिए वे तैयार नहीं थे।
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कोरोना से बचाव के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने सभी देशवासियों को जन स्वास्थ्य उपाय के तौर पर स्कार्फ या घर पर बने मास्क से चेहरा ढकने का सुझाव दिया है।
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डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा, वह खुद मास्क नहीं पहनेंगे। अमेरिका के रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र (सीडीसी) का हवाला देते हुए ट्रंप ने लोगों से स्कार्फ या घर पर बने कपड़े के मास्क से चेहरा ढकने के लिए कहा।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, न्यूयॉर्क में शव गृह में लाशों के ढेर लगे हैं। अस्पतालों में शवों को रखने के लिए रेफ्रिजरेटिड ट्रकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
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अमेरिका में कोरोना के फैलने की एक बड़ी वजह है कि इसे गंभीरता से नहीं लेना। माना जा रहा है कि अमेरिका के लिए उसका अति आत्मविश्वास ही बड़ी वजह बना। अमेरिका ने कोरोना वायरस को भांपने में चूक कर दी। अमेरिका ने कोरोना वायरस को गंभीरता से नहीं लिया। अमेरिका का मानना था कि यह बीमारी चीन से निकली है, ऐसे में इसका ज्यादा असर सिर्फ एशिया के बाकी देशों तक ही होगा।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका ने कोरोना से निपटने में पहले से कोई मजबूत तैयारी नहीं की और वह यह मानता रहा कि थोड़ा बहुत असर अगर उसपर होगा तो वहां की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं इससे निपट लेंगी।
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अमेरिका का मानना है कि कोरोना वायरस से देश में कुल 2 लाख से ज्यादा मौतें होंगी। लेकिन जब इटली और स्पेन में हर रोज मौत का आंकड़ा बढ़ रहा था, उस वक्त अमेरिका ने समय रहते इन सबसे से निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यहां ना तो अंतरराष्ट्रीय सीमाएं बंद की गईं ना ही लॉकडाउन जैसा कोई कदम उठाया गया।
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अमेरिका की सबसे बड़ी चूक स्क्रीनिंग को लेकर हुई। यहां सिर्फ चीन से आने वाले यात्रियों की जांच की गई या उन लोगों की जांच की गई, जो हाल ही में चीन से लौटे थे। इसके अलावा अमेरिका ने ना तो अन्य देशों से आने वाले नागरिकों की जांच की और ना ही यात्रियों के संबंधों की जांच की।
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अमेरिका में मार्च में संक्रमण के काफी कम मामले सामने आए। इसका प्रमुख कारण जांचों की संख्या थी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुरुआत में 50 लाख जांचों का लक्ष्य रखा था, लेकिन अंत तक सिर्फ 10 लाख टेस्ट हुए। जब इन टेस्टों के रिजल्ट आए तो एकदम से मामले ज्यादा हो गए।
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WHO ने जब सभी देशों को लॉकडाउन की सलाह दी। तो अमेरिका ने खुद इसे नहीं माना। अमेरिका ने लॉकडाउन का ऐलान करने में काफी वक्त लगा दिया। इससे यहां ना तो सोशल डिस्टेंसिंग मानी गई और ना ही गतिविधियां रुकीं।
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अस्पताल के बाहर ऐसे रेफ्रिजरेटर ट्रकों की लाइन लगा दी गई है। अमेरिका ने अस्पतालों के बाहर ही शवदाह गृह बनाया हुआ है।
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डोनाल्ड ट्रंप ने देश की इकॉनमी बचाने के लिए भले ही कोई प्रतिबंधात्मक कदम नहीं उठाए और लोगों को घरों से बाहर निकलने की पूरी छूट है लेकिन उन्होंने सोशल डिस्टेंसिंग की गाइडलाइन 30 अप्रैल तक बढ़ा दी है।
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पूरेे अमेरिका में जगह-जगह अस्थायी अस्पताल बनाए जा रहे हैं जिस काम में आर्मी को लगा दिया गया है।
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न्यूयॉर्क का मशहूर सेंट्रल पार्क राजनीतिक गतिविधियों के लिए भी खासा मशहूर है। वहां भी तंबुओं के सहारे अस्थायी अस्पताल बनाए गए हैं। इस काम में गैर सरकारी संस्थाएं भी मदद कर रही हैं।