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पिता ने फल बेचकर पढ़ाया, अब डॉक्टर बन गरीबों का कर रही इलाज; कोरोना के संकट में पेश कर रही मिसाल
इस्लामाबाद. कोरोना वायरस के खिलाफ दुनियाभर के देश जंग लड़ रहे हैं। डॉक्टर और मेडिकल कर्मी अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की जिंदगी बचा रहे हैं। इसी तरह पाकिस्तान में रहने वाली अफगानिस्तान की शरणार्थी डॉक्टर गरीबों और कोरोना पीड़ितों का इलाज कर मिसाल पेश कर रही है। डॉ सलीमा रहमान ने अपने सेवाभाव से पाकिस्तानियों का दिल जीत लिया है।
| Published : Apr 10 2020, 02:17 PM
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सलीमा पाकिस्तान के रावलपिंडी के छोटे से हॉली फैमिली हॉस्पिटल में गरीबों का इलाज कर रही हैं। यूएन हाईकमिश्नर फॉर रिफ्यूजी ने ट्वीट कर डॉ रहमान की तारीफ की है। ट्वीट में लिखा है, रावलपिंडी के हॉली हॉस्पिटल में अफगानी शरणार्थी पाकिस्तान में गरीब लोगों को नई जिंदगी दे रही हैं।
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पाकिस्तान में कोरोना वायरस से 4500 से ज्यादा लोग संक्रमित पाए गए हैं। वहीं, 65 लोगों की मौत हो चुकी है। इतना ही नहीं पूरा पाकिस्तान आर्थिक तंगी से भी जूझ रहा है।
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संघर्ष भरा रहा जीवन: यूएन हाईकमिश्नर फॉर रिफ्यूजी के मुताबिक, 28 साल की डॉ रहमान को अपनी पढ़ाई के दौरान काफी संघर्ष करना पड़ा। तीन दशक लंबी पढ़ाई के बाद सलीमा पाकिस्तान में पहली रिफ्यूजी डॉक्टर बनीं।
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सलीमा कहती हैं, मेरी ड्यूटी महिलाओं की मदद करना है। मैं अपने आप को काफी भाग्यशाली मानती हूं। मेरे समुदाय में बहुत सी लड़कियों को पढ़ाई तक करने का मौका नहीं मिला, मैं इसे अपना भाग्य मानती हूं। सलीमा गाइनेकॉलोजी में विशेषज्ञ हैं।
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सलीमा के अस्पताल में हर रोज 5 बच्चे जन्म लेते हैं। हर वार्ड में करीब 40 महिलाएं भर्ती रहती हैं, जिनमें से ज्यादातर गरीब होती हैं। यहां तक की अस्पताल में एक बेड पर दो महिलाएं भर्ती रहती हैं। सलीमा लंबी लंबी शिफ्ट कर मरीजों की देखभाल करती हैं।
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पिता ने दिया हर मोड़ पर साथ: सलीमा नार्थवेस्ट पाकिस्कान में तुर्कमेन शरणार्थी समुदाय में रहीं। यहां सलीमा को शिक्षा के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। हालांकि, हर मोड़ पर उनके पिता ने उनका साथ दिया। यहां तक की सलीमा को पढ़ाने के लिए उन्होंने केले भी बेचे। वे दिन में फल बेचते थे और रात में कार्पेट डिजाइन करते थे।
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स्कॉलरशिप से की पढ़ाई: अपनी स्कूलिंग के बाद सलीमा ने मेडिकल की पढ़ाई स्कॉलरशिप से की। उन्होंने लगातार तीन साल स्कॉलरशिप के लिए एप्लाई किया। हर बार कड़ी मेहनत की। तब जाकर तीसरी साल में उन्होंने यह टेस्ट पास किया।