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अफगानिस्तान के इस गुरुद्वारे में सिख-मुसलमानों की 'संगत' Taliban को नहीं आई रास, दिखाई अपनी नफरत

काबुल. 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करने के बाद जैसे Taliban अफगानिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों(minorities) के लिए 'यमराज' बनकर प्रकट हुआ है। यहां रहने वाले सिखों पर तालिबान का लगातार अत्याचार बढ़ता जा रहा है। मंगलवार को तालिबान ने काबुल के प्रसिद्ध कर्ते परवान गुरुद्वारे में गदर मचाया। ये वो गुरुद्वारा है, जहां मुसलमान भी आकर अपना सिर झुकाते रहे हैं। लेकिन कट्टर तालिबान को यही रास नहीं आ रहा है। बता दें कि मंगलवार को हथियारों से लैस तालिबानी लड़ाके गुरुद्वारे में घुसे और तलाशी ली। इस दौरान वहां मौजूद लोगों से बदसलूकी भी की। CCTV में यह घटना कैप्चर हुई है। गुरुद्वारे के प्रमुख भाई गुरनाम सिंह ने इसकी जानकारी दी। तालिबानी लड़ाके मंगलवार शाम करीब 4 बजे गुरुद्वारे में घुसे थे। जानिए अफगानिस्तान में सिखों की स्थिति..  

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Akash Kathuria
Published : Oct 06 2021, 08:30 AM IST | Updated : Oct 06 2021, 08:36 AM IST
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यह तस्वीर अक्टूबर 2019 की है। इसे एक PHD स्कॉलर और जर्नलिस्ट एम रियाज(M Reyaz) ने twitter पर शेयर की थी। इसमें उन्होंने लिखा था-पिछले महीने मैं कर्ते परवान गुरुद्वारे गया था। यहां लंगर में भोजन भी किया था। यह तस्वीर अफगानिस्तान में सिखों और मुसलमानों के रिश्ते को दिखाती है। लेकिन तालिबान के आने के बाद सबकुछ बर्बादी की ओर है।

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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार तालिबानी लड़ाकों ने कर्ते परवान गुरुद्वारे में लोगों ने सख्ती से पूछताछ की। तालिबान की इंटेलिजेंस एजेंसी से जुड़े लोगों ने पवित्र स्थल की तलाशी भी ली।

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गुरुद्वारे के प्रमुख गुरनाम सिंह ने बताया कि तालिबानियों ने यहां लगे CCTV कैमरे तोड़ दिए। वे नहीं चाहते थे कि उनकी हरकतें वीडियो में कैप्चर हों।

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1970 के दशक तक अफगानिस्तान में 2 लाख से अधिक सिख और हिंदू रहते थे। लेकिन आज गिनती के बचे हैं। तालिबान लगातार अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को नष्ट कर रहा है।

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यह तस्वीर जुलाई, 2018 की है, तब अफगान के जलालाबाद में सिखों पर तालिबान ने हमला किया था। उस वक्त अफगानिस्तान उनके कब्जे में नहीं था। मौजूदा राष्ट्रपति अशरफ गनी कर्ते परवान गुरुद्वारे पहुंचे थे। उन्होंने सिखों पर हुए हमले की गहन जांच का वादा किया था।

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15 अगस्त को जब काबुल पर तालिबान ने कब्जा जमाया, तब काबुल के इसी कर्ते परवान गुरुद्वारे में तमाम सिखों सहित 40 अन्य भारतीयों ने शरण ली थी। बाद में उन्हें एयरलिफ्ट किया गया था।

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सोवियत-अफगान युद्ध और अफगान गृहयुद्ध (1992-1996) से पहले काबुल में हजारों सिख रहते थे। लेकिन 1980 और 1990 के दशक में अफगान शरणार्थियों के साथ भारत और पड़ोसी पाकिस्तान चले गए। 2001 के अंत में अमेरिकी सैनिकों के आने पर तालिबान शासन हटने पर कुछ लौटे। 2008 तक अफगानिस्तान में करीब 2500 सिख थे।

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