लोगों से छिपाई गई दर्दनाक भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ी ये 8 बातें, नहीं जानते हैं ज्यादा लोग
भोपाल: 2-3 दिसंबर 1984 का दिन पूरे भारत के लोगों के लिए मनहूस साबित हुआ। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने वाले लोग खाना खाकर सो तो गए लेकिन ऐसे कई लोग भी थे, जो अगली सुबह देख नहीं पाए। 2 दिसंबर की रात 12 बजे जेपी नगर के सामने बने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूका) के कारखाने में एक टैंक से ज़हरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) लीक हो गई थी, जिसकी वजह से करीब आठ हजार लोगों की जान गई। लेकिन ये तो सरकारी आंकड़ा है। कई लोगों का दावा है कि इस हादसे में 25 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। आज हम आपको इस हादसे से जुड़ी वो 10 बातें बताने जा रहे हैं, जिन्हें काफी कम लोग ही जानते हैं।
| Updated : Dec 03 2019, 12:33 PM
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हादसे के दो साल पहले से ही भोपाल के एक पत्रकार राजकुमार केशवानी ने इसकी भविष्यवाणी कर दी थी। 1982 से 84 तक उन्होंने चार आर्टिकल पब्लिश किये थे, जिसमें उन्होंने लिखा था कि भोपाल एक ऐसे ज्वालामुखी पर बैठा है, जो कभी भी फट सकता है। हुआ भी ऐसा ही। 1984 में ये ज्वालामुखी गैस लीक के तौर पर सामने आया।
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1999 में जारी रिपोर्ट के मुताबिक़ इस हादसे में जो गैस लीक हुई थी, उसमें 20 हजार से 60 लाख तक मर्क्युरी लेवल मौजूद था। इंसान की बॉडी काफी कम अमाउंट में मर्क्युरी झेल सकती है। ऐसे में इतने ज्यादा अमाउंट से बॉडी के अंदर क्या हुआ होगा, इसका बस अंदाजा लगाया जा सकता है।
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2 दिसंबर से पहले भी कई बार भोपाल के इस फैक्ट्री से गैस लीक की खबर सामने आई थी। इसमें कई कर्मचारी घायल हुए थे। यहां तक कि एक बार एक कर्मचारी की मौत भी हो गई थी।
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सरकार ने इस हादसे में मरने वालों का आंकड़ा 5,295 बताया था जबकि कई लोगों का दावा है कि इस त्रासदी से प्रभावित करीब 25 हजार लोगों की मौत अगले एक साल में हो गई थी।
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इस हादसे का मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन इस हादसे के बाद गिरफ्तार किया गया था। लेकिन उसे डेढ़ लाख रुपए की बेल पर मध्यप्रदेश पुलिस ने रिहा कर दिया था। इसके बाद सरकारी जहाज से वो भाग निकला।
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इस हादसे में दो हजार से ज्यादा जानवरों की मौत हो गई थी। उनका शव पास के ही नदी में डिस्पोज कर दिया गया था।
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2017 तक इस हादसे से प्रभावित लगभग साढ़े 10 लाख लोगों ने सरकार से कम्पेन्सेशन के लिए अप्लाई किया था। इसमें लगभग 6 लकह लोगों के केस को एक्सेप्ट कर भुगतान किया गया तह। जबकि बाकियों को रिजेक्ट कर दिया गया था।
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1994 में एवररेडी इंडस्ट्री ने इस फैक्ट्री को अपने अंदर ले लिया था। जिसके बाद उन्होंने कैंपस की साफ-सफाई करवाई।