इस पक्षी की मौत से खत्म हुआ दुनिया से एक जीवन, पिंजरे में 10 साल कम हो जाती है जिंदगी
दुनिया से एक और दुर्लभ पक्षी चला गया। न्यूजीलैंड में आखिरी सफेद कीवी की बीमारी के बाद मौत हो गई। उसका ओवीडक्ट(Oviduct) और बाएं हिस्से का अधिकतर अंडाशय हटाया जाना था। पुका नेशनल वाइल्ड लाइफ सेंटर ने 'मानुकूरा' नामक इस कीवी की तस्वीर शेयर की है। इस पक्षी का वजन दिसंबर के शुरुआत से ही कम होना शुरू हो गया था। उसका लगातार इलाज किया जा रहा था। बता दें कि कीवी न्यूजीलैंड का राष्ट्रीय पक्षी है। दुनिया में कीवी की कुल 5 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से 2 दुर्लभ हैं। ये कभी भी खत्म हो सकती हैं। इन पक्षियों के अस्तित्व पर जंगलों की अंधाधुंध कटाई और फसलों में कीटनाशकों के इस्तेमाल ने खतरा पैदा किया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि पहले कीवी आस्ट्रेलिया में पाए जाते थे, लेकिन बाद में ये न्यूजीलैंड प्रवास कर गए। यह दुनिया के ऐसे छोटे पक्षियों में शुमार है, जो उड़ नहीं सकता। इनके विकास की गाथा 13 करोड़ साल पहले की बताई जाती है। हालांकि ताजा रिसर्च इसे 6 करोड़ साल पहले का बताते हैं। पढ़िए कीवी के बारे में और भी रोचक जानकारियां....
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कीवी सुनने और सूंघने में माहिर होता है। दिन में इसे साफ नहीं दिखाई देता। यह दिन में 2 फीट की दूरी तक देख सकता है, लेकिन रात यह 6 फीट तक देख सकता है।
पेड़ों के खोखलों में अपना घर बनाकर रहने वाले कीवी की उम्र आमतौर पर 40 साल होती है। यह एक आजादीपरस्त पक्षी है। अगर इसे बंद करके रखा जाए, तो इसकी उम्र 10 साल तक कम हो जाती है।
कीवी गुस्सैल प्रवृत्ति का पक्षी है। नर कीवी डेढ़ साल, जबकि मादा कीवी 3 साल की उम्र में सेक्स के लिए तैयार हो जाते हैं। इनके मिलन का समय जून से मार्च तक चलता है।
औसतन कीवी का वजन डेढ़ किलो तक होता है। मादा कीवी साल में 2-3 अंडे ही देती है। एक आम कीवी का वजन डेढ़ से 3 किलो तक हो सकता है।
कीवी उड़ नहीं सकता। इनकी चोंच इतनी लंबी होती है कि ये असानी से कीडे़-मकोड़े पकड़ लेते हैं। कीवी को शुतुरमुर्ग की प्रजाति में शामिल किया गया है।
आज कीवी खत्म होने के कगार पर हैं। 100 साल पहले तक इनकी संख्या लाखों में थी। कीवी 50 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से भाग सकते हैं।
कीवी दलदल के पास जंगलों में अपना बसेरा रखते हैं। इनके पंजे दलदल में घूमने के लिए बेहतर होते हैं। कीवी केंचुआ, जामुन और फल पाते हैं।
चूंकि कीवी दुनिया में सिर्फ न्यूजीलैंड में ही निवास करते हैं, इसलिए यहां इनके लिए लगातार कम होते आवास ने अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। अब ये कुछ हजारों में बचे हैं।