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50000 लोग 'सोमनाथ' में हाथ जोड़े खड़े थे, कर दिए गए कत्ल, पढ़िए 1026 से 2020 तक मंदिर का रहस्य
गुजरात के सौराष्ट्र में वेरावल की पहाड़ियों पर स्थित सोमनाथ मंदिर इन दिनों मीडिया की सुर्खियों में है। शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में सबसे पहला मंदिर माने जाने वाले सोमनाथ पर लगातार रिसर्च जारी है। आईआईटी गांधीनगर व अन्य 4 सहयोगी संस्थाओं के ऑर्कियोलॉजिकल एक्सपर्ट्स ने दावा किया है कि सोमनाथ मंदिर के नीचे तीन मंजिला इमारत है। बता दें कि कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली में आयोजित भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की मीटिंग में मंदिर का सर्वे करने को कहा था। माना जा रहा है कि आज जो नया मंदिर बना है, वो शायद पुराने ढांचे पर निर्मित है। बता दें कि 1026 में दुनिया के सबसे क्रूर शासक रहे महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया था। इस दौरान उसने सोमनाथ मंदिर को भी लूटा था। उसे ढहा दिया था। तब गजनवी ने 3 दिन में 50000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। ये लोग उस समय मंदिर में पूजा-अर्चना करने जुटे थे। पढ़िए कुछ रोचक जानकारियां...
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ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण ईसा के पूर्व अस्तित्व में आया था। हालांकि सही तरीके से इसका निर्माण 7वीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने कराया। लेकिन 8वीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इस पर हमला किया। इसके बाद नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका फिर से निर्माण कराया। इसके बाद राजा राजा भोज और गुजरात के राजा भीमदेव ने इसकी दुबारा मरम्मत कराई। 1169 में नये सिरे से यह मंदिर तैयार हुआ।
सोमनाथ मंदिर के शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खंडित किया। नये भारत में सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई, 1950 को मंदिर के नये निर्माण की आधारशिला रखी। इसके बाद 11 मई, 1951 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसमें ज्योतिर्लिंग स्थापित कराया।
यह तस्वीर महमूद गजनवी की है
सोमनाथ पर मुगलकाल में यानी 1706 में ओरंगजेब ने भी हमला किया था। मौजूदा मंदिर पर 1250 कलश लगे हुए हैं। हर कलश औसतन 3 किलो वजन का है। वर्तमान मंदिर की ऊंचाई लगभग 155 फीट है।
ताजा घटनाक्रम: नये सर्वे में सामने आया है कि सोमनाथ मंदिर के नीचे L शेप की तीन मंजिला इमारत है। आखिर इसमें क्या है और इसे क्यों बनवाया गया था, इस पर रिसर्च चल रही है।
सोमनाथ एक ऐतिहासिक सूर्य मंदिर है। इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। माना जाता है कि इसका निर्माण खुद चंद्रदेव ने कराया था।
मंदिर के पास ही दिग्विजय द्वार से कुछ दूर सरदार वल्लभ भाई पटेल की स्टेच्यू और आसपास बौद्ध गुफाएं हैं।