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फिरौती के लिए 26 बार फोन आया फिर भी किडनैपर तक नहीं पहुंच पाई पुलिस, नतीजा- बुझ गया घर का चिराग

कानपुर(Uttar Pradesh). कानपुर के बर्रा लैब टेक्नीशियन संजीत यादव अपहरणकांड में 31 वें दिन का खुलासा हुआ है। संजीत की हत्या कर शव को नदी में फेंक दिया गया है। पुलिस ने चार आरोपितों को पकड़ लिया है लेकिन अभी तक शव नहीं मिला है। गोताखोरों की टीम लगातार शव को ढूंढने में लगी हुई है। संजीत यादव के अपहरण के बाद अपहर्ताओं ने उसके परिजनों को 26 बार फोन किया, लेकिन खुद को स्मार्ट कहने वाली यूपी पुलिस उन्हें ट्रेस नही कर पाई। आखिर वही हुआ जिसका संजीत के परिजनों को डर था. इस घटना में पुलिस की भूमिका पर सबाल उठने लगे हैं। 

Asianet News Hindi | Updated : Jul 24 2020, 02:24 PM
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चौंकाने वाली बात ये है कि अपहरणकर्ताओं  ने संजीत के परिजनों को करीब 26 बार कॉल किया इस दौरान उनसे करीब आधा-आधा घंटे तक बातचीत हुई फिर भी सर्विलांस टीम उन्हें ट्रेस नहीं कर पाई। अपहरण के बाद से पुलिस ने हॉस्पिटल के कैमरे चेक करने के साथ ही कर्मचारियों से भी पूछताछ की। लेकिन एक महीने तक हॉस्पिटल के आसपास या स्मार्ट सिटी के कैमरों के फुटेज नहीं खंगाले। वहीं परिजनों का कहना है कि वह बर्रा इंस्पेक्टर के कहने पर ही अपहरणकर्ताओं को फिरौती देने गए थे। आरोप है कि पुलिस ने बिना तैयारी के ही बैग तो फिंकवा दिया लेकिन गुजैनी पुल या आसपास टीम को नहीं लगाया। इतना ही नहीं घटनास्थल की जांच पड़ताल करने के बजाय हाईवे के ऊपर से ही लौट गए। 
 

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संजीत अपहरणकांड में पुलिस की हर इकाई फेल नजर आई। इस अपहरण के खुलासे के लिए एसटीएफ, क्राइम ब्रांच, स्वाट टीम, सर्विलांस सभी को लगाया गया था लेकिन पुलिस का कोई भी तंत्र अपहर्ताओं का पता लगाने में सफल नहीं हुआ। और तो और संजीत के परिजनों से अपहर्ता घंटों फोन अपर बात करते रहे लेकिन सर्विलासं सेल भी इसका पता लगाने में नाकाम रहा। अपहरणकर्ताओं ने 29 जून से 13 जुलाई तक परिजनों को कुल 26 बार फोन किया इस दौरान न तो उनकी कॉल ट्रेस की जा सकी और न ही उनकी लोकेशन मिली। 

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अपहृत संजीत की तलाश में पुलिस टीमें सचेंडी, मेहरबान सिंह का पुरवा, उन्नाव, कानपुर देहात, फतेहपुर, हमीरपुर,  सहित शहर के कई इलाकों में भी गई। अपहरणकर्ताओं ने अलग-अलग दस स्थानों से फिरौती के लिए संजीत के पिता चमनलाल को फोन किया। टॉवर डॉटा जुटाने के बाद भी पुलिस आने वाले कॉल्स का ब्यौरा जुटाने के बाद भी कुछ नहीं कर पाई। उससे भी पुलिस को कोई खास सफलता नहीं मिली। 

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संजीत के परिजनों के मुताबिक 22 जून को उसका अपहरण हुआ था। उसी के अगले दिन उन्होंने गुमशुदगी दर्ज कराई थी। वहीं जब परिजनों ने इस मामले के सस्पेक्ट राहुल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करानी चाही तो पुलिस ने उन्हें चार दिनों तक चौकी थाने के चक्कर लगाए। आखिरकार एसएसपी के आदेश पर उनकी रिपोर्ट तो लिख ली गई लेकिन कोई त्वरित कार्रवाई नहीं की गई। 
 

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13 जुलाई की रात संजीत के पिता चमनलाल ने इंस्पेक्टर रणजीत राय के कहने पर ही अपहरणकर्ताओं को गुजैनी पुल से फिरौती के 30 लाख रुपयों से भरा बैग फेका। इसके बावजूद अगले ही दिन एसपी साउथ अपर्णा गुप्ता ने कहा कि बैग में रुपए नहीं बल्कि कपड़े थे। परिजन इतनी बड़ी रकम कहां से लाए वह इस सोर्स का पता लगवा रहीं हैं। इस मामले का खुलासा संजीत की बहन रूचि ने किया। उन्होंने बताया कि स्वॉट टीम प्रभारी दिनेश यादव ने कहा था कि भाई संजीत की जान को खतरा हो सकता है इसलिए उसने भी कहा कि बैग में रुपए नहीं थे। हालांकि बाद में रुचि ने कहा कि यह बात उसने दिनेश यादव के कहने पर कही थी, बैग में रुपए थे। 

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