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लोगों के लिए प्रेरणा श्रोत है इस पिता का संघर्ष, बेटे को IAS बनाने दिन रात चलाया रिक्शा
लखनऊ(Uttar Pradesh). हर बाप का सपना होता है कि उसका बेटा पढ़-लिखकर एक बड़ा आदमी बने। बेटे को कामयाब बनाने के लिए हर पिता जी-तोड़ मेहनत करता है। न तो उसे खुद की जरूरतों की फ़िक्र होती है और न ही अपने लिए किसी सुख-सुविधा की चाहत। बस एक ही जूनून होता है कि उसका बेटा काबिल आदमी बने। फादर्स डे स्पेशल स्टोरीज में आज हम आपको एक ऐसे ही पिता के बारे में बताने जा रहे हैं , जिसका संघर्ष एक मिसाल बन गया है। यूपी के वाराणसी में रिक्शा चलाने वाले नारायण जायसवाल ने लंबे संघर्ष के बाद अपने बेटे को IAS बनाया। नारायण जायसवाल ने दिन-रात मेहनत कर आखिरकार बेटे को उस मुकाम तक पहुंचा दिया जो उनका शुरू से ही सपना रहा था।
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नारायण जायसवाल कुछ साल पहले तक वाराणसी के अलईपुरा इलाके में किराए के मकान में रहते थे। उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है। नारायण के पास 35 रिक्शे थे, जिन्हें वह किराए पर चलवाते थे। लेकिन पत्नी इंदु को ब्रेन हैमरेज होने के बाद उसके इलाज के लिए 20 से ज्यादा रिक्शे बेचने पड़े।
लेकिन इलाज के दौरान ही कुछ दिन बाद पत्नी की मौत हो गई। तब नारायण का बेटा गोविंद 7वीं क्लास में था। गरीबी का आलम ऐसा था कि उनके परिवार को दोनों टाइम सूखी रोटी खाकर रातें काटना पड़ती थी।
मीडिया से बातचीत में उन दिनों को याद करते हुए नारायण ने बताया था कि मैं खुद गोविंद को रिक्शे पर बैठाकर स्कूल छोड़ने जाता था। हमें देखकर स्कूल के बच्चे मेरे बेटे को ताने देते थे, आ गया रिक्शेवाले का बेटा... मैं जब लोगों को बताता कि मैं अपने बेटे को IAS बनाऊंगा तो सब हमारा मजाक बनाते थे।
नारायण आगे बताते है कि बेटियों की शादी करने में बाकी रिक्शे भी बिक गए। बाद में उनके पास सिर्फ एक रिक्शा बचा था, जिससे चलाकर वह अपना घर चलाते थे। पैसे की तंगी के कारण गोविंद सेकंड हैंड बुक्स से पढ़ता था।
वाराणसी से ही पढाई करने वाले नारायण के बेटे गोविंद ने हरिश्चंद्र यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन पूरा किया। साल 2006 में सिविल सर्विस की तैयारी के लिए गोविंद दिल्ली चले गए । वहां उन्होंने पार्ट-टाइम जॉब्स कर अपनी ट्यूशन्स का खर्च निकाला। पिता नारायण बड़ी मुश्किल से घर के खर्च को रोक कर बेटे को पढ़ाई के लिए पैसे भेजते थे।
रिक्शा चलाने के दौरान गोविन्द के पिता के पैर में चोट लग गई। ठीक से दवा न लेने के कारण घाव बड़ा हो गया. और टिटनेस हो गया। लेकिन उन्होंने बेटे को कुछ नहीं बताया। वह दवा के पैसे भी गोविन्द को पढ़ाई के लिए भेज देते थे। उनका सपना था कि बेटा एक दिन बड़ा अफसर बनकर नाम रोशन करे।
गोविंद की बड़ी बहन ममता के मुताबिक , ''भाई बचपन से ही पढ़ने में तेज था। मां के देहांत के बाद भी उसने पढ़ाई नहीं छोड़ी। उसके दिल्ली जाने के बाद पिताजी बड़ी मुश्किल से पढ़ाई का खर्च भेज पाते थे। घर की हालत देख भाई ने चाय और एक टाइम का टिफिन भी बंद कर दिया था।
इस बूढ़े पिता की मेहनत आखिरकार रंग लाई और उनके बेटे गोविंद ने पहले ही प्रयास में सिविल सर्विस क्रैक कर 48वीं रैंक पाकर IAS बन गए। बेटे के IAS बनने के बाद बड़े-बड़े लोग जो गोविंद को देखना भी पसंद नहीं करते थे वह भी उनके घर मिलने आने लगे।