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विकास दुबे एनकाउंटर: EX DGP बोले अपराधियों में होगी दहशत, वरिष्ठ पत्रकार बोले- पुलिस की कहानी में कई खामियां

लखनऊ(Uttar Pradesh). कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या में मुख्य आरोपी यूपी का मोस्टवांटेड अपराधी विकास दुबे एनकाउंटर में ढेर हो गया। विकास दुबे को उज्जैन से गिरफ्तार किया था, जिसके बाद यूपी पुलिस व STF उसे लेकर कानपुर आ रही थी। कानपुर से तकरीबन 15 किमी पहले STF की गाड़ी पलट गई, जिसके बाद गाड़ी में बैठा विकास दुबे एक दारोगा की पिस्टल छीन कर वहां फायरिंग करते हुए भागने लगा। जवाबी कार्रवाई करते हुए STF ने उसे मार गिराया। विकास दुबे के एनकाउंटर पर ये पुलिस द्वारा बताई गई कहानी है। लेकिन बहुत से लोग इस कहानी को फ़िल्मी बताते हुए इसे पुलिस की चाल बता रहे हैं। विकास दुबे के एनकाउंटर पर एशियानेट न्यूज हिंदी ने यूपी के पूर्व DGP महेश चंद्र द्विवेदी और वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश सिंह से बात किया। 

Asianet News Hindi | Published : Jul 10 2020, 10:32 PM
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पूर्व डीजीपी महेश द्विवेदी का कहना है कि विकास दुबे का एनकाउंटर किन परिस्थितियों में हुआ ये तो जांच के बाद ही सामने आएगा। पुलिस ने जो कुछ बताया उस समय की परिस्थितियां कैसी थीं ये तभी पता चलेगा जब इसकी जांच होगी। लेकिन इससे अपराधियों पर के दिल में खौफ तो पैदा होगा। 

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पूर्व डीजीपी ने कहा कि ये सोचने वाली बात है कि पुलिस रेड की सूचना मिलते ही विकास दुबे ने फोन कर आनन-फानन में अपने 20 से अधिक हथियारबंद साथियों को बुला लिया। वह भी ऐसे साथी जिनके अंदर पुलिस पर हमला करने का साहस था, ऐसे में विकास दुबे कितना दुर्दांत था और उसकी गैंग किस स्तर की है इसका अनुमान लगाया जा सकता है। विकास दुबे कोई धर्मात्मा नहीं था। लेकिन अगर एनकाउंटर सही नहीं है तो इस पर सोचने की जरूरत है। फिलहाल बिना जांच किए कुछ भे कहना जल्दबाजी होगी। 
 

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यूपी में तकरीबन 20 साल तक क्राइम रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश सिंह का भी इस मामले में अपना मत है । उन्होंने साफ़ कहा कि विकास दुबे खतरनाक क्रिमिनल था जो मारा गया, लेकिन उज्जैन में गिरफ्तारी से लेकर कानपुर में हुई मुठभेड़ तक के बीच में जो चीजें सामने आई हैं वह सोचने पर मजबूर करती हैं। 

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उन्होंने कहा कि घटना के संबंध में जो वीडियो सामने आए उसके अनुसार पुलिस की कहानी फिट नहीं बैठ रही है। मीडिया कर्मियों को घटना स्थल से पहले रोका जाना और फिर विकास दुबे की गाड़ी बदली जाना ये दोनों ही पुलिस की कहानी में वीक प्वाइंट हैं। उन्होंने कहा कि अगर इस मामले को विकास दुबे के पक्ष से किसी ने कोर्ट में चैलेन्ज किया तो पुलिस विभाग को कोर्ट में जवाब देना मुश्किल होगा । 

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वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश सिंह ने कहा पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद जितने भी एनकाउंटर किए गए हैं उसपर एक बड़ा जनमानस प्रसन्न दिखा है । योगी की पुलिस का ये फैसला ऑन दि स्पॉट वाला तरीका लोगों को काफी पसंद आया है । लेकिन लोगों की खुशी की वजह के पीछे कहीं न कहीं न्यायपालिका के जजमेंट में होने वाली देरी है । उन्होंने कहा कि एक अपराधी दिनदहाड़े थाने में घुसकर दर्जनों पुलिसवालों के सामने एक व्यक्ति की हत्या करता है और वह बरी हो जाता है इसे किसका फेल्योर कहेंगे । 
 

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उन्होंने कहा कि विकास दुबे ने पहले पुलिसवालों को निर्ममता से गोलियों से भूना उसके बाद सीओ का पैर कटवाया फिर सभी को इकट्ठा कर जलाने की तैयारी कर रहा था। हो सकता है कि उस समय तक कई लोग जिंदा रहे हों, या फिर उसकी इस क्रूर सोच की आग में वो भी झुलसते जो पुलिसवाले वहां घायल थे, ऐसे में आप विकास दुबे की मौत के बाद उसे हीरो कैसे बना सकते हैं। इतनी क्रूर सोच वाला इन्सान हीरो कैसे हो सकता है ।

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