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मजदूरी करने गई थी बूढ़ी मां, तभी बेटे की शहादत की मिली खबर..आखिरी कॉल में कहा था-'मैं गांव आ रहा हूं'
सीकर, राजस्थान. देश की रक्षा-सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले जाबांजों की जिंदगी आम आदमी से भी कठिन होती है। बेशक किसी को यह मालूम नहीं रहता कि अगले पल क्या होने वाला है, लेकिन एक फौजी के लिए यह आशंका सबसे ज्यादा रहती है। जम्मू-कश्मीर के सोपोर में बुधवार को आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद हुए सीकर के 39 वर्षीय जाबांज दीपचंद 11 जुलाई से छुट्टी पर गांव में रहने वाली अपनी बूढ़ी मां से मिलने आ रहे थे। इनके पिता का तीन साल पहले बीमार के चलते निधन हो गया था। तब से मां अकेली थी। मां किसी पर बोझ नहीं बनी। वो आज भी मजदूरी करती है। दीपचंद्र सीआरपीएफ की 179 बटालियन में हेड कांस्टेबल थे। उनका 6 महीने पहले ही उनका प्रमोशन हुआ था। बता दें इस आतंकी हमले में एक आम नागरिक की भी मौत हो गई थी। फोटो में दिखाई दे रहे शख्स को गोलियां लगी थीं। आगे पढ़िए शहीद की कहानी...
| Published : Jul 02 2020, 10:22 AM IST / Updated: Jul 02 2020, 10:45 AM IST
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आतंकी हमले में दीपचंद घायल हो गए थे। उन्हें फौरन अस्पताल ले जाया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। घटना से एक दिन पहले ही रात को उन्होंने अपनी पत्नी सरोज देवी को फोन करके बताया था कि उन्हें 11 जुलाई से छुट्टी मिल गई है। इस बार वे बच्चों के साथ गांव जाएंगे। इससे पहले यही बात शहीद ने अपनी मां प्रभादेवी को बताई थी। दीपचंद मूलत: सीकर जिले के बावड़ी गांव के रहने वाले थे। उनकी पत्नी और बच्चे अजमेर में सीआरपीएफ क्वार्टर में रहते हैं। बच्चे यही पढ़ते हैं। दीपचंद की शादी 2004 में हुई थी। उनके जुड़वां बेटे विनय-विनीत हैं। दोनों पांचवीं में पढ़ते हैं। 13 साल की एक बेटी कुसुम है। यह अभी 7वीं में पढ़ती है। तस्वीर में दिखाई दे रहे शख्स बशीर अहमद खान हैं, जिनकी गोली लगने से मौत हो गई थी, जबकि इनसेट में शहीद दीपचंद
जब दीपचंद की शहादत की खबर उनकी मां को मिली, तब वे मजदूरी करने गई थीं। सबसे पहले यह जानकारी दीपचंद के चाचा ओंकारमल को दी गई थी। दीपचंद के परिवार से कई लोग सेना में हैं। उन्होंने 2003 में सीआरपीएफ ज्वाइन की थी। परिवार में उनसे एक छोटा भाई और चार बहने हैं। आगे देखिए सोपोर आतंकी हमले के दौरान और बाद की कुछ तस्वीरें...
सोपार के आतंकी हमले की यह तस्वीर बेहद चौंकाने वाली है। इस हमले में जिन बशीर अहमद को जान गंवानी पड़ी, वे ठेकेदार थे। वे अपने काम से कार से निकले थे। साथ में उनका नाती अयाद भी था। बशीर की गोलियां लगने से वहीं मौत हो गई। बावजूद मासूम उनकी छाती पर बैठकर उन्हें उठाता रहा। करीब 15 मिनट की मशक्कत के बाद जवानों ने उसे सुरक्षित बचाया।
मासूम अयाद को नाना की लाश से सुरक्षित ले जाते सुरक्षाबल के जवान।
मुठभेड़ के दौरान पोजिशन लेते सुरक्षाबल के जवान।
इसी सड़क पर बशीर अहमद का खून बिखरा था।
खून से सनी सड़क को धोते कर्मचारी।
मुठभेड़ के बाद तलाशी लेते सुरक्षा बल के जवान।
मुठभेड़ के दौरान अपनी जान पर खेलकर लोगों की सुरक्षा करते जवान।
मुठभेड़ के दौरान लोगों को सुरक्षित जगह पर जाने को कहते जवान।
मुठभेड़ के बाद की स्थिति।
पिछले कुछ समय से जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ लगातार मुहिम चल रही है।
सुरक्षाबलों की कार्रवाइयों से आतंकी संगठन बौखलाए हुए हैं।
मुठभेड़ के दौरान पोजिशन संभाले एक जवान।