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अगर ये जिंदगी है, तो 'मरना' क्या है..न खाने को रोटी और न रहने को ठिकाना, घर से निकलो, तो पुलिस मारती है डंडे
अहमदाबाद, गुजरात. लॉकडाउन एक त्रासदी बन गया है। खासकर, प्रवासी मजदूरों के लिए तो 'कोरोना काल' जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है। हर राज्य में हजारों प्रवासी मजदूर फंसे हुए हैं। वहां रोजी-रोटी खत्म हो जाने से वे परेशान हैं। रहने और खाने की दिक्कतों के कारण अब वे घरों को लौटना चाहते हैं, लेकिन सरकारें उनकी घर वापसी के पुख्ता इंतजाम नहीं कर पा रही हैं। कुछ राज्यों ने बसें और ट्रेनों चलाईं हैं, लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं। यह तस्वीर अहमदाबाद में पुलिस और प्रवासी मजदूरों के बीच हुई झड़प के दौरान की हैं। प्रवासी मजदूर अपने घरों को जाने के लिए जिद पकड़ चुके हैं। जब उनका सब्र जवाब दे गया, तो वे उग्र हो गए। मजदूरों ने पुलिस पर पथराव कर दिया। इसके बाद पुलिस ने भी उन पर जमकर लाठियां भांजी। दिक्कतें यहीं खत्म नहीं होतीं। जो प्रवासी मजदूर ट्रेनों ये घर लौट रहे हैं, उन्हें भी खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। देखें कुछ मार्मिक तस्वीरें
| Published : May 19 2020, 10:23 AM IST / Updated: May 19 2020, 10:25 AM IST
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गुजरात के अहमदाबाद के अलावा राजकोट आदि जगहों पर भी प्रवासी मजदूरों का गुस्सा फूटने लगा है। मजदूरों और पुलिस के बीच कई जगहों पर झड़प की खबरें मिली हैं।
पुलिस पर पथराव करने वाले मजदूरों पर पुलिस ने लाठियां चलाईं। कई मजदूरों को गिरफ्तार किया गया।
गुजरात सरकार ने प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं। लेकिन इसमें सफर कर रहे मजदूरों और उनकी फैमिली को खाने-पीने की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बता दें कि अकेले सूरत से अब तक 172 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चल चुकी हैं।
ह तस्वीर नई दिल्ली की है। एक रिक्शे पर सिमटी पूरी फैमिली। जिस रिक्शे से जिंदगी चलती थी, आज वो घर-गृहस्थी समेटने के काम आ रहा है।
यह तस्वीर अजमेर की है। एक कंधे पर घर-गृहस्थी का बोझ और दूसरे पर बच्चा। मजदूरों के लिए यह समय सबसे विकट है।
यह तस्वीर नई दिल्ली से अपने घरों को लौटते प्रवासी मजदूरों की जिंदगी को दिखाती है। जरा-सी गाड़ी में चढ़ने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ रही है।
यह तस्वीर अमृतसर की है। मां के कंधे पर यूं लटका देश का भविष्य।
यह तस्वीर गाजियाबाद की है। बच्चों को बोझ उठाकर चलना पड़ रहा है।
घर वापसी के बीच थककर अपनी डॉल के ऊपर सो गया बच्चा।
यह तस्वीर पटना की है। ठीक ऐसे मंजर बंटवारे के दौरान 1947 में देखने को मिले थे।