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यहां समुद्र में दफन है श्रीकृष्ण की नगरी द्वारकापुरी का रहस्य

गुजरात के काठियावाड क्षेत्र में अरब सागर के द्वीप पर स्थित है श्रीकृष्ण की नगरी द्वारकारपुरी। हालांकि इसका ज्यादातर हिस्सा समुद्र में करीब 80 फीट नीचे डूबा हुआ है। द्वारकापुरी का अपना एक धार्मिक, पौराणिक और ऐतहासिक महत्व है। द्वारकापुरी की खोज के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब आप समुद्र के नीचे जाकर श्रीकृष्ण की नगरी देख सकते हैं। हालांकि इसके लिए पहले ट्रेनिंग लेनी होगी। क्योंकि समुद्र में इतनी गहराई तक जाना कोई सरल काम नहीं। यह बेहद जोखिमपूर्ण मामला है।

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Asianet News Hindi
Published : Aug 19 2019, 02:52 PM IST | Updated : Aug 19 2019, 02:54 PM IST
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ऐसा है द्वारकापुरी का रहस्य: द्वारकापुरी से जुड़ीं कई कथाएं प्रचलित हैं कि कैसे श्रीकृष्ण की नगरी समुद्र में डूब गई। द्वारकापुरी के तीन भाग समुद्र में डूबे हुए हैं। द्वारकापुरी के कई द्वार हैं। इसका सिर्फ एक भाग ही, जिसे बेट द्वारका कहते हैं समुद्र में बने टापू पर मौजूद है। इस द्वार से जुड़ी एक कहानी है। कहते हैं कि मीराबाई यहां श्रीकृष्ण से मिलने पहुंची थीं। उस वक्त श्रीकृष्ण ध्यान में थे। इस पर मीराबाई उनकी मूर्ति में समा गई थीं। इसी जगह पर गोमती(गुजरात), कोशावती और चंद्रभागा नदी का संगम है। यहां एक बड़ा रहस्य है, जिसे आज तक कोई नहीं समझ पाया। यहां पांडवों के पांच कुएं हैं। चारों ओर समुद्र का पानी खारा है, लेकिन कुएं का पानी मीठा।
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स्कूबा डाइनिंग के जरिये देख सकते हैं द्वारकापुरी: बेशक द्वारकापुरी अब पूरी तरह खंडित हो चुकी है, लेकिन इसके अवशेषों को देखने का उत्साह हमेशा लोगों में रहा है। द्वारकापुरी समुद्र में 60-80 फीट नीचे है। यहां स्कूबा डाइविंग के जरिये पहुंचा जा सकता है। ट्रेनर शांतिभाई बंबानिया बताते हैं कि समुद्र के नीचे महाभारतकालीन इस रहस्यमयी दुनिया देखना है, तो पहले स्कूबा डाइविंग की ट्रेनिंग लेनी होगी। वैसे समुद्र के नीचे जाने की हिम्मत भी होनी चाहिए। अंडर वॉटर यात्रा का अपना एक अलग रोमांच होता है। लेकिन जब यह यात्रा किसी पौराणिक जगह से जुड़ी हो, तो रोमांच दोगुना हो जाता है। द्वारकापुरी के अवशेष अब भी समुद्र के नीचे मौजूद हैं। इनमें विशाल प्रतिमाओं के अवशेष, जंगली जानवरों की आकृतियां, बड़े-बड़े द्वार और स्तंभ शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि द्वारकापुरी भारत के 7 प्राचीन शहरों में शुमार है। बाकी शहर हैं-मथुरा, काशी, हरिद्वार, अवंतिका, कांचीपुरम और अयोध्या। द्वारका को ओखा मंडल, गोमतीद्वार, आनर्तक, चक्रतीर्थ, अंतरद्वीप, वारीदुर्ग आदि नामों से भी जाना जाता रहा है। बहरहाल, स्कूबा डाइविंग के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑसिनोग्राफी-गोवा से परमिशन लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। बताते हैं कि सितंबर से अप्रैल तक सैकड़ों लोग यहां स्कूबा डाइविंग के लिए आते हैं।
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ऐसे चला द्वारकापुरी का पता: पौराणिक कहानियों के अनुसार श्रीकृष्णा ने करीब 36 साल तक द्वारका पर शासन किया। वज्रनाभ यदुवंश के अंतिम राजा थे। हालांकि वे कुछ साल तक ही द्वारकापुरी में रहे। इसके बाद हस्तिनापुर चले गए। जब तक द्वारकापुरी की खोज नहीं हुई थी, तब तक यह महज एक किवंदती के तौर पर कथाओं में जीवित रही। सबसे पहले वायुसेना के पायलटों की इस पर नजर पड़ी। इसके बाद राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान ने सोनार टेक्निक से समुद्र के अंदर जाकर करीब 4000 वर्ग मीटर क्षेत्र में अपनी रिसर्च शुरू की। तब वहां द्वारकापुरी के अस्तित्व का पता चला। वहां से लकड़ी-पत्थर और हडि्डियों के हजारों साल पुराने अवशेष मिले थे। माना जाता है कि ये अवशेष महाभारतकालीन हो सकते हैं।
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ऐसे समुद्र में डूब गई द्वारकारपुरी: वैज्ञानिक रिसर्च बताते हैं कि हिमयुग समाप्त होने के बाद समुद्र का जलस्तर बढ़ा था। इससे दुनियाभर में कई तटवर्ती शहर समुद्र में डूब गए। द्वारकापुरी भी उनमें से एक है। हालांकि इस थ्योरी को लेकर संशय बना हुआ है। दरअसल, महाभारत का इतिहास 5 हजार साल पुराना है, जबकि हिमयुग 10 हजार साल पहले समाप्त हो गया। बहरहाल, पौराणिक मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने जब मथुरा छोड़ा, तब यदुवंशियों की रक्षा के लिए अपने भाई बलराम के साथ मिलकर द्वारकापुरी की नींव रखी थी। कहते हैं कि यदुवंश के खात्मे और श्रीकृष्ण का जीवन पूर्ण होते ही द्वारकापुरी समुद्र में समा गई। इस इलाके को पहले कुशस्थली कहते थे।
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एक कहानी यह भी: कहते हैं कि धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी और ऋषि दुर्वासा ने यदुवंश के नष्ट होने का श्राप दिया था। एक मान्यता है कि द्वारकापुरी एक नहीं, 6 बार समुद्र में डूबी। वर्तमान में जिस द्वारकापुरी का अस्तित्व मिलता है, वो 7वां शहर है। इसकी स्थापना प्राचीन द्वारकापुरी के पास ही आदिशंकराचार्य ने 16वीं सदी में की थी। यहां बनवाए गए मंदिरों को मुगलों ने तोड़ दिया था। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1963 में सबसे पहले डेक्कन कॉलेज पुणे के डिपार्टमेंट ऑफ आर्कियोलॉजी और गुजरात सरकार ने मिलकर द्वारकापुरी पर रिसर्च शुरू की थी। तब यहां 3000 साल पुराने बर्तन मिले थे। इसके बाद 'आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया' की अंडर वॉटर आर्कियोलॉजी विंग ने खोज शुरू
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मौजूदा द्वाकारपुरी कुछ ऐसी है: वर्तमान में गोमती द्वारका और बेट द्वारका का अस्तित्व ही बचा है। गोमती द्वारका में श्री रणछोड़राय मंदिर या द्वारकाधीश मंदिर मौजूद है। इसे 1500 वर्ष पुराना मानते हैं। यह मंदिर 7 मंजिला है। इस मंदिर का आसपास समुद्र का पानी भरा है। इसे गोमती कहते हैं। इस मंदिर के दक्षिण में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित शारदा मठ भी है।
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