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Rani Rampal B'day: आंसू ले आएगी इस खिलाड़ी कहानी, अपनी गरीबी छुपाने मैदान पर दूध में पानी मिलाकर पीती थी रानी

स्पोर्ट्स डेस्क : भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान (Indian women hockey captain) रानी रामपाल (Rani Rampal) 4 दिसंबर को अपना 27वां जन्मदिन मना रही है। रानी ने 6 साल की उम्र से ही हॉकी स्टिक पकड़कर खेलना शुरू कर दिया था और आज उन्होंने भारतीय महिला हॉकी को एक बहुत बड़े मुकाम तक पहुंचाया है। इस साल टोक्यो ओलंपिक 2020 में भले ही उनकी टीम पदक हासिल नहीं कर पाई हो, लेकिन भारत की हर एक हॉकी खिलाड़ी ने देश का नाम रोशन किया। रानी रामपाल आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है, लेकिन क्या आप जानते हैं की हरियाणा के छोटे से गांव में जन्मी रानी ने बड़ी मुश्किल से अपना हॉकी प्लेयर बनने का सपना पूरा किया है। आइए  रानी रामपाल के जन्मदिन पर हम आपको बताते हैं रानी की संघर्ष की कहानी... 

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Asianet News Hindi
Published : Dec 04 2021, 12:50 PM IST
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भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी रानी रामपाल का जन्म 4 दिसंबर 1994 को हरियाणा के शाहबाद के एक छोटे से गांव में हुआ था। वह एक बेहद ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी। उनके पिता का नाम रामपाल है, जो तांगा चलाया करते थे, जिससे उन्हें दिन भर में सिर्फ 80 रुपये की कमाई होती थी। 
 

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रानी के घर में उनके दो बड़े भाई हैं और रानी सबसे छोटी बेटी है। उनके बड़े भाई भी बढ़ई का काम किया करते थे। ऐसे में घर की आमदनी बहुत कम थी और परिवार का खर्चा बहुत ज्यादा था। जब रानी 6 साल की थी तो उन्होंने हॉकी खेलने की शुरुआत की। 

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शुरुआत में रानी को हॉकी में आगे बढ़ने में बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनके घर की स्थिति बेहद ही खराब थी। वह कच्चे मकान में रहती थी उनकी मां दूसरों के घर में काम किया करती थी, वहीं पिता तांगा चलाया करते थे।

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रानी बताती हैं कि एक एथलीट को रोज आधा से 1 लीटर दूध पीना कंपलसरी होता है। लेकिन मेरे मां-बाप के पास इतने पैसे नहीं होते थे, इसीलिए वह बड़ी मुश्किल से मेरे लिए 200 मिलीलीटर दूध ही ला पाते थे लेकिन फील्ड पर प्रैक्टिस के दौरान जब हमें दूध पीना होता था तो मैं उस दूध में पानी मिलाकर पी लेती थी।

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दुबले पतले शरीर वाली रानी को देखकर कोच ने भी उन्हें कुपोषित कहकर रिजेक्ट कर दिया था, क्योंकि उन्हें लगा था कि रानी में खेलने का स्टैमिना नहीं है। लेकिन रानी भी कहां मानने वालों में से थी, उन्होंने हॉकी खिलाड़ी बनने का जो सपना देखा उसे कड़ी मेहनत कर पूरा किया। उस समय रानी के पास खुद की हॉकी स्टिक भी नहीं हुआ करती थी। ऐसे में एक बार एकेडमी में उन्हें टूटी हुई हॉकी स्टिक मिली जिसे जोड़कर उन्होंने प्रैक्टिस करना शुरू कर दिया।

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इसके बाद 2003 में 9 साल की उम्र में उन्होंने द्रोणाचार्य पुरस्कार हासिल कर बलदेव सिंह की मदद से शाहबाद हॉकी एकेडमी में ट्रेनिंग लेना शुरू किया और 14 साल की उम्र में अपना पहला इंटरनेशनल मैच खेला। उनके खेल के चलते रानी रामपाल भारतीय रेलवे में क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। 

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15 साल की उम्र में रानी रामपाल कनाडा ने वर्ल्ड कप 2010 में हिस्सा लिया और सबसे ज्यादा 7 गोल किए। वह वर्ल्ड कप खेलने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनीं। इसके बाद 2013 जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप में भी वह प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट चुनी गई।

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उन्होंने एशिया कप 2009 के दौरान भारत को रजत पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स में भी वह भारतीय टीम का हिस्सा रहीं। उनके शानदार खेल को देखते हुए उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इससे पहले 2016 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, मेजर ध्यान चंद्र खेल रत्न अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है।

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रानी रामपाल के संघर्ष को आज पूरी दुनिया सलाम करती है। गरीबी और आर्थिक तंगी से भरे जीवन से लेकर टोक्यो ओलंपिक तक का सफर उन्होंने बड़ी मेहनत से पूरा किया। दिन रात मेहनत करने के बाद वह देश की नंबर वन हॉकी प्लेयर बनीं। इस साल उनकी कप्तानी में भारतीय महिला हॉकी टीम टोक्यो ओलंपिक 2020 के सेमीफाइनल तक पहुंची। हालांकि, इस मैच में उन्हें जीत नहीं मिली, लेकिन उनकी मेहनत और लगन को देख हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो गया।

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