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घर से कॉलेज तक रोज 16 किलोमीटर दौड़ता था यह एथलीट, अब टोक्यो ओलंपिक में करेगा देश का नाम
नई दिल्ली. भारतीय एथलेटिक्स में अविनाश सांबले एक ऐसा नाम है जिसका पूरे देश में कोई मुकाबला नहीं कर सकता। सांबले ने खुद से अपने लक्ष्य तय किए और उन्हें पूरा करता चला गया। महाराष्ट्र के बीड में अविनाश का जन्म एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। जहां से उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर सफलताओं के शिखर को छुआ है। अविनाश ने ओलंपिक का टिकट हासिल करके देश के लोगों की उम्मीदें जगा दी हैं। अविनाश यदि ओलंपिक में पदक भी ले आते हैं तो उनके प्रदर्शन को देखते हुए किसी को आश्चर्य नहीं होगा।
| Published : Dec 15 2019, 12:00 AM
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अविनाश सांबले ने पटियाल में अपने ट्रेनिंग सेशन के दोरान कहा कि "कड़ी मेहनत करना मेरे खून में है, क्योंकि मेरे बचपन की अधिकतर यादों में माता-पिता मुझे और मेरे भाई को हर रात खाना खिलाने के लिए संघर्ष करते दिखते हैं।"
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सांबले ने कहा "वो कहते हैं ना गॉड्स गिफ्ट। रनिंग मेरे लिए भगवान का वरदान है। जब भी मैं दौड़ता था लोग कहते थे कि यह लड़का कभी भी दौड़ने से नहीं थकता है। "
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अविनाश की प्रतिभा को उनके स्कूल के टीचर ने तब पहचाना था जब वो चौथी कक्षा में थे। उन्होंने सांबले को स्कूल एथलीट मीट में दौड़ाया और सांबले यहां पहले नंबर पर आए थे। यहीं से उनके रनिंग करियर की शुरुआत हो चुकी थी।
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स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद सांबले घर आ गए और एक कॉलेज में दाखिला ले लिया। सांबले कॉलेज के बाद अपने लिए एक नौकरी भी ढूंढ रहे थे ताकि परिवार की मदद कर सकें। उस समय उन्हें कंस्ट्रक्शन साइट में 6 दिन काम करने के 100 रुपये मिलते थे।
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अविनाश ने अपने कॉलेज से घर और घर से कॉलेज का रास्ता दौड़कर तय शुरू किया यह उनके करियर के लिए बहुत फायदेमंद साबित हुई। अविनाश रोज 16 किलोमीटर दौड़कर आते और जाते थे।
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सांबले ने एक किस्सा याद करते हुए बताया कि मैं मेस में बैठा हुआ था उस समय कुछ लड़के मेरे पास आए और कहा कि आप अच्छा दौड़ते हैं पर देशभर में सबसे तेज होना मुश्किल है आप यह नहीं कर पाओगे। यही उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट था।
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सभी को गलत साबित करने की चाह में अविनाश ने कड़ी मेहनत शुरू की। उनके साथी सुबह 6 बजे उठते थे पर अविनाश 4 बजे से उठकर अकेले ही दौड़ते रहते थे। शाम के समय भी अविनाश अकेले ही 1 घंटे तक लगातार दौड़ते रहते थे।
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अविनाश ने जब से आर्मी ज्वाइन की है, तब से उन्हें घर जाने के लिए बहुत ही कम समय मिलता है, पर अब चीजें बदल चुकी हैं। उनके माता पिता को रोज का खाना जुगाड़ने के लिए मजदूरी करने की जरूरत नहीं है। साबले ओलंपिक में कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो भारत के लिए ऐतिहासिक हो।