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मनहूस मॉनसून: जब बादल फटने से देवभूमि में मची तबाही, रोंगटे खड़े कर देंगी केदारनाथ की ये 10 तस्वीरें

Kedarnath Floods: देश में इस वक्त केरल से लेकर हिमाचल प्रदेश तक मॉनसून सक्रिय हो चुका है। गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, ओडिशा, असम समेत पूर्वोत्तर भारत में भी जमकर बारिश हो रही है। इससे पहले अमरनाथ में बादल फटने से कई श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि कुछ अब भी लापता हैं। वैसे, मॉनसून जब भी आता है तो अपने साथ तबाही जरूर लाता है। फिर चाहे हाल ही का अमरनाथ हादसा हो या 9 साल पहले यानी केदारनाथ में आई भीषण तबाही। 2013 में केदारनाथ में बादल फटने और ग्लेशियर टूटने से देवभूमि में भारी तबाही मची थी। इसमें हजारों लोगों की मौत हुई, जबकि कइयों का तो पता ही नहीं चला। 

Asianet News Hindi | Updated : Jul 13 2022, 03:29 PM
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रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ मंदिर में 16 जून की रात बादल फटने और ग्लेशियर टूटने के बाद जल प्रलय आया था। पानी के साथ पहाड़ों से बहकर आए मलबे और बड़े पत्थरों ने अपने रास्ते की हर रुकावट को तबाह कर दिया था। 

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इतना ही नहीं, पूरे उत्तराखंड में भारी बारिश के चलते ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर स्थित भगवान‌ शिव की मूर्ति भी गंगा के तेज बहाव के सामने नहीं टिक पाई थी। 

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केदारनाथ के पास अलकनंदा नदी के तेज बहाव में कई इमारतें ताश के पत्तों की तरह पानी में ढह गई थीं। इतना ही नहीं, रुद्रप्रयाग जिले में 40 छोटे-बड़े होटलों समेत 73 बिल्डिंग अलकनंदा नदी उफान में बह गई थीं।

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उत्तराखंड में कई जगह बादल फटने और लगातार हो रही बारिश की वजह से मंदाकिनी नदी भी उफान पर आ गई थी। इसके चलते 17 जून को करीब 3 हजार तीर्थ यात्री सोनप्रयाग व मुंडकट्या के बीच फंस गए थे।

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40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से कई मीटर ऊंची पानी की लहरों में बड़ी-बड़ी चट्टानें थीं। इस सैलाब में कई रेस्ट हाउस, होटल अपने साथ कई लोगों को भी बहाकर ले गए। केदारनाथ बस्ती में किस्मत से जिंदा बच गए लोगों के कई रिश्तेदार सैलाब में बह गए थे।

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16 जून से आई बाढ़ का तांडव 18 जून को जब कम हुआ तो केदारनाथ के आसपास का इलाका कब्रिस्तान बन चुका था। जहां-तहां लाशों के चिथड़े पड़े थे। कहीं सिर था तो कहीं धड़। किसी के बदन पर कपड़े नहीं था,  जगह-जगह पत्थरों और खंडहरों में लाशें फंसी थीं। कई लोगों के रिश्तेदार आज भी उनके लौटने का इंतजार कर रहे हैं।

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उस वक्त सोनप्रयाग पावरहाउस में तैनात दर्शन गैरोला ने एक रस्सी के सहारे नदी के दूसरे छोर पर खड़े लोगों के पास एक कुल्हाड़ी पहुंचाई। इसके बाद उन्होंने एक बड़ा पेड़ काटने को कहा। पेड़ काटने के बाद इसे पावर हाउस से अटका कर अस्थाई पुल तैयार किया। इस पुल से लोगों ने नदी पार कर अपनी जान बचाई थी।

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केदारनाथ आपदा में कई गांवों पूरी तरह तबाह हो गए था। केदारनाथ जाने वाला पैदल मार्ग रामबाड़ा और गरुड़चट्टी से होकर गुजरता था। त्रासदी के दौरान बाढ़ से मंदाकिनी नदी की उफनती लहरों ने रामबाड़ा का अस्तित्व ही खत्म कर दिया। इसके बाद सालों तक काम चला और 2018 में ये रास्ता दोबारा बनकर तैयार हुआ।

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केदारनाथ में आई बाढ़ में 4027 लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा 1853 पक्के मकान और 361 कच्चे मकान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे। इसके अलावा 86 बड़े पुल, 172 छोटी पुलिया बह गई थीं। 

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2013 में केदारनाथ में आई आपदा के बाद सेना के 10 हजार जवान, 11 हेलिकॉप्टर, नौसेना के 45 गोताखोर और वायुसेना के 43 विमान यहां फंसे तीर्थयात्रियों को बचाने में जुटे थे। 20 हजार लोगों को वायुसेना ने एयरलिफ्ट किया था।

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