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32 गार्ड, CCTV से पल पल की निगरानी...निर्भया के दरिंदों की सुरक्षा में हर रोज खर्च होते थे 50 हजार

नई दिल्ली। निर्भया के चारों दोषियों को तिहाड़ जेल में शुक्रवार सुबह 5:30 बजे फांसी दे दी गई। दोषियों को फांसी पर तब तक लटकाया गया जब तक उनके प्राण ना निकल गए। लेकिन क्या आप जानते हैं चारों दोषियों की सुरक्षा में हर दिन 50 हजार रुपये खर्च हो रहे थे। और ये खर्च उसी दिन से शुरू हो गया था जिस दिन दोषियों का डेथ वॉरंट जारी हुआ था। आपको बता दें कि इन दोषियों की सुरक्षा 

Asianet News Hindi | Updated : Mar 20 2020, 05:12 PM
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सीसीटीवी की निगरानी में दोषी: दोषी सुसाइड न कर लें या भागने की कोशिश ने करें, इसके लिए इनपर कड़ी नजर रखी जाती थी। इनके आस-पास सीसीटीवी कैमरे लगाए गए। दो शिफ्ट में गार्ड ड्यूटी पर हर पल तैनात रहते थे।
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जेल नंबर 3 में अलग-अलग सेल में रखा गया: चारों दोषियों को तिहाड़ के जेल नंबर 3 के अलग-अलग सेल में रखा गया। हर दोषी के बाहर दो सिक्यॉरिटी गॉर्ड तैनात थे।
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4 कैदियों के लिए 32 सिक्यॉरिटी गार्ड तैनात: चारों दोषियों के लिए 32 सिक्यॉरिटी गार्ड तैनात किए गए थे। हर दो घंटे में गार्डों को आराम दिया जाता था। शिफ्ट बदलने पर दूसरे गार्ड तैनात किए जाते थे। हर कैदी के लिए 24 घंटे के लिए आठ-आठ सिक्यॉरिटी गार्ड लगाए गए थे।
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फांसी पर लटकने से पहले की आखिरी ख्वाहिश: इस केस के 6 दोषी थे जिसमें से एक नाबालिग होने की वजह से छूट गया और एक दोषी ने जेल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। वहीं बाकी बचे 4 दोषियों को 7 साल बाद फांसी दे दी गई और इसी के साथ निर्भया के साथ इंसाफ हुआ। वहीं फांसी पर लटकाए जाने से पहले दोषियों से उनकी आखिरी इच्छा पूछी गई। लेकिन दोषियों ने अपनी आखिरी इच्छा नहीं बताई। हालांकि उन्होंने अपनी कुछ चीजें संभाल कर रखने को कहा था। दोषी मुकेश ने अपनी बॉडी डॉनेट करने की बात कही। विनय ने जेल में बनाई अपनी पेंटिंग्स को घर जाने वालों के देने की बात कही। वहीं विनय के पास एक हनुमान चालीसा भी थी जिसको घर वालों को देने की कही। जेल प्रशासन के मुताबिक, पवन और अक्षय ने कुछ भी नहीं कहा. तिहाड़ जेल प्रशासन का कहना है कि दोषियों की ओर से जेल में कमाए गए पैसे को उनके परिवारवालों को दिया जाएगा। इसके अलावा उनके कपड़े और अन्य सामान भी परिजनों को सौंप दिए जाएंगे।
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क्या है निर्भया गैंगरेप और हत्याकांड? दक्षिणी दिल्ली के मुनिरका बस स्टॉप पर 16-17 दिसंबर 2012 की रात पैरामेडिकल की छात्रा अपने दोस्त को साथ एक प्राइवेट बस में चढ़ी। उस वक्त पहले से ही ड्राइवर सहित 6 लोग बस में सवार थे। किसी बात पर छात्रा के दोस्त और बस के स्टाफ से विवाद हुआ, जिसके बाद चलती बस में छात्रा से गैंगरेप किया गया। लोहे की रॉड से क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं। छात्रा के दोस्त को भी बेरहमी से पीटा गया। बलात्कारियों ने दोनों को महिपालपुर में सड़क किनारे फेंक दिया गया। पीड़िता का इलाज पहले सफदरजंग अस्पताल में चला, सुधार न होने पर सिंगापुर भेजा गया। घटना के 13वें दिन 29 दिसंबर 2012 को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में छात्रा की मौत हो गई।
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