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भारत के सपूतों की वीरता को सलाम, जिन्होंने तिरंगे की शान के लिए बहाया खून का आखिरी कतरा

नई दिल्ली. 21 साल पहले 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच लड़ा गया कारगिल युद्ध आज भी सभी के जहन में है। देश की रक्षा के लिए भारत के जिन वीर सपूतों ने अपनी शहादत दी है, वो आज भी लोगों की यादों में जिंदा हैं और उनकी वीरता के किस्से बच्चों को सुनाकर बड़ा किया जाता है। आज 26 जुलाई है। इसी दिन 1999 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करते हुए कारगिल युद्ध में धूल चटा दी थी। तभी से हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। पाकिस्तान के धोखे के साथ शुरू हुआ ये युद्ध 60 दिन चला था। भारतीय जवानों के पराक्रम और बहादुरी के सामने पाकिस्तान ने आखिरी में घुटने टेक दिए थे। हम आपको करगिल युद्ध के उन वीर सपूतों के बारे में बता रहे हैं...

Asianet News Hindi | Published : Jul 26 2020, 08:32 AM
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कैप्टन मनोज कुमार पांडे

जन्म : 25 जून 1975, सीतापुर, उत्तर प्रदेश
शहीद हुए : 3 जुलाई 1999 (24 वर्षीय)
यूनिट : 11 गोरखा राइफल की पहली बटालियन (1/11 जीआर)
मरणोपरांत परम वीर चक्र 

भारतीय सेना के कैप्टन मनोज कुमार पांडे की बहादुरी के किस्से बेमिशाल हैं। कारगिल युद्ध के दौरान 11 जून को उन्होंने बटालिक सेक्टर से दुश्मन सैनिकों को खदेड़ दिया था। उनके नेतृत्व में सैनिकों ने जुबार टॉप पर कब्जा किया। वहां, वो दुश्मन की गोलीबारी के बीच भी आगे बढ़ते रहे। कंधे और पैर में गोली लगने के बावजूद दुश्मन के पहले बंकर में घुसे। हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट में दो दुश्मनों को मार गिराया और पहला बंकर नष्ट कर दिया था। उनके साहस से प्रभावित होकर सैनिकों ने दुश्मन पर धावा बोल दिया था। अपने घावों की परवाह किए बिना वे एक बंकर से दूसरे बंकर में हमला करते गए। आखिरी बंकर पर हमला करते हुए मनोज कुमार बुरी तरह से जख्मी हो गए थे। यहां वो शहीद हो गए थे। उनके आखिरी शब्द नेपाली भाषा में थे- 'ना छोड़नूं थे।' इसका मतलब होता है- 'उन्हें मत छोड़ना।'

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कैप्टन विक्रम बत्रा

जन्म: 9 सितंबर, 1974, पालमपुर, हिमाचल प्रदेश
शहीद हुए : 7 जुलाई, 1999 (24 वर्ष)
यूनिट : 13 जेएंडके राइफल
परम वीर चक्र

कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के किस्से भी नौजवानों के लिए प्रेरणा का काम करते हैं। वो इंडियन मिलिट्री एकेडमी से पासआउट होने के बाद 6 दिसंबर, 1997 को लेफ्टिनेंट के तौर पर सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान उनकी बटालियन 13 जम्मू एंड कश्मीर रायफल 6 जून को द्रास पहुंची। 19 जून को कैप्टन बत्रा को प्वाइंट 5140 को फिर से अपने कब्जे में लेने का निर्देश मिला। ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के लगातार हमलों के बावजूद उन्होंने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए और पोजीशन पर कब्जा किया। उनका अगला अभियान था 17,000 फीट की ऊंचाई पर प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना। पाकिस्तानी फौज 16,000 फीट की ऊंचाई पर थी और बर्फ से ढ़कीं चट्टानें 80 डिग्री के कोण पर तिरछी थीं।

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कैप्टन अनुज नायर

जन्म : 28 अगस्त, 1975 दिल्ली
शहीद हुए : 7 जुलाई, 1999 (24 वर्ष)
यूनिट : 17 जाट रेजीमेंट
मरणोपरांत महावीर चक्र

कैप्टन अनुज नायर इंडियन मिलिट्री एकेडमी से पासआउट होने के बाद जून, 1997 में जाट रेजिमेंट की 17वीं बटालियन में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान उनका पहला अभियान था प्वाइंट 4875 पर कब्जा करना। यह चोटी टाइगर हिल की पश्चिमी ओर थी और सामरिक लिहाज से बेहद जरूरी थी। इस पर कब्जा करना भारतीय सेना की प्राथमिकता थी। अभियान की शुरुआत में ही नायर के कंपनी कमांडर जख्मी हो गए। हमलावर दस्ते को दो भागों में बांटा गया। एक का नेतृत्व कैप्टन विक्रम बत्रा ने किया और दूसरे का कैप्टन अनुज ने। कैप्टन अनुज की टीम में सात सैनिक थे, जिनके साथ मिलकर उन्होंने दुश्मन पर चौतरफा वार किया।

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कैप्टन सौरभ कालिया
जन्म: 29 जून, 1976 अमृतसर, पंजाब
शहीद हुए : 9 जून, 1999
यूनिट : 4 जाट रेजीमेंट

कारगिल युद्ध में सबसे पहले शहादत देने वाले अधिकारी कैप्टन सौरभ कालिया थे। कंबाइंड डिफेंस सर्विसेज के जरिए दिसंबर, 1998 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी में भर्ती हुए। जाट रेजिमेंट की चौथी बटालियन में पहली पोस्टिंग कारगिल में मिली। जनवरी, 1999 में उन्होंने कारगिल में रिपोर्ट किया। मई के शुरुआती दो हफ्तों में कारगिल के ककसर लांग्पा क्षेत्र में गश्त लगाते हुए उन्होंने बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों और विदेशी आतंकियों को एलओसी के इस तरफ देखा। कहा जाता है कि दुश्मनों की घुसपैठ के बारे में सौरभ ने ही भारतीय सेना को बताया था। 

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ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव 

जन्म: 10 मई 1980, उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर 
यूनिट : 18वीं ग्रेनेडियर्स
ग्रेनेडियर, बाद में सूबेदार मेजर
परमवीर चक्र

सबसे कम आयु में 'परमवीर चक्र' पाने वाले वीर योद्धा योगेंद्र सिंह यादव का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जनपद के औरंगाबाद अहीर गांव में 10 मई, 1980 को हुआ था। 27 दिसंबर, 1996 को सेना की 18 ग्रेनेडियर बटालियन में भर्ती हुए योगेंद्र की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी सेना की ही रही है, जिसके चलते वो इस ओर तत्पर हुए। उनके पिता भी करन सिंह यादव भी भूतपूर्व सैनिक थे। वह कुमायूं रेजिमेंट से जुड़े हुए थे और 1965 तथा 1971 की लड़ाइयों में हिस्सा लिया था।

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शहीद मनजीत सिंह 

कारगिल युद्ध में सबसे कम उम्र में शहादत देने वाले हरियाणा मनजीत सिंह थे। उन्होंने साढ़े 18 साल की उम्र में देश की शान के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी थी। उनका जन्म फरीदाबाद के बराड़ा के गांव कांसापुर में हुआ था। मनजीत ने 1999 में ऑपरेशन विजय के तहत करीब 18000 फीट की ऊंचाई पर कारगिल में पाकिस्तानियों के साथ लड़ाई लड़ी थी। उनके पिता बताते हैं वो बचपन से ही भारतीय सेना में भर्ती होना चाहते थे, जो उन्होंने अपना सपना पूरा किया।

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मेजर राजेश सिंह अधिकारी

जन्म: 25 दिसंबर, 1970 नैनीताल, उत्तराखंड
शहीद हुए : 30 मई, 1999 (उम्र 28 वर्ष)
यूनिट : 18 ग्रेनेडियर्स
मरणोपरांत वीर चक्र 

मेजर राजेश सिंह अधिकारी इंडियन मिलिट्री एकेडमी से 11 दिसंबर, 1993 को सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान 30 मई को उनकी यूनिट को 16,000 फीट की ऊंचाई पर तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। यह पोजीशन भारतीय सेना के लिए बेहद अहम थी, क्योंकि यहीं पर भारतीय सेना बंकर बनाकर टाइगर हिल पर बैठे दुश्मनों पर निशाना साध सकती थी। जब मेजर अधिकारी अपने सैनिकों के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे तो दुश्मनों ने दो बंकरों से उनपर हमला करना शुरू किया। 2 जून को पाकिस्तान की तरफ से भारी गोलाबारी के बीच जब भारतीय सैनिक एक एक कर शहीद हो रहे थे। 

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हवलदार यश वीर सिंह तोमर

जन्म: 04 जनवरी, 1960 सिरसाली, उत्तर प्रदेश
शहीद हुए : 13 जून, 1999
यूनिट : 2 राजपूताना राइफल
मरणोपरांत वीर चक्र

हवलदार यश वीर सिंह तोमर कारगिल युद्ध के दौरान 18 ग्रेनेडियर्स को तोलोलिंग चोटी पर कब्जा करने का निर्देश मिला। ग्रेनेडियर्स के कई विफल प्रयासों के बाद राजपूताना रायफल की दूसरी बटालियन को हमले के लिए आगे किया गया। ग्रेनेडियर्स ने तीन प्वाइंट से राजपूताना को कवर दिया। मेजर विवेक गुप्ता के नेतृत्व में 90 सैनिक अंतिम हमले के लिए आगे बढ़े। इसी पलटन में यश वीर भी शामिल थे। यह पलटन प्वाइंट 4950 को अपने कब्जे में लेने के आखिरी चरण में थी।

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राइफलमैन संजय कुमार 

जन्म: 3 मार्च, 1976 को विलासपुर हिमाचल
यूनिट :13 JAK RIF
परमवीर चक्र 

राइफलमैन संजय कुमार का जन्म 3 मार्च, 1976 को विलासपुर हिमाचल प्रदेश के एक गांव में हुआ था। मैट्रिक पास करने के तुरंत बाद वह 26 जुलाई 1996 को फौज में शामिल हो गए। कारगिल युद्ध के दौरान संजय 4 जुलाई 1999 को फ्लैट टॉप प्वाइंट 4875 की ओर कूच करने के लिए राइफल मैन संजय ने इच्छा जताई कि वह अपनी टुकड़ी के साथ अगली पंक्ति में रहेंगे।

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स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा

जन्म: 22 मई, 1963 कोटा, राजस्थान
शहीद हुए : 27 मई 1999
यूनिट : गोल्डन ऐरोज, स्क्वाड्रन नंबर 17
मरणोपरांत वीर चक्र

स्क्वाड्रन लीडर अजय आहूजा नेशनल डिफेंस एकेडमी से पासआउट होने के बाद 14 जून, 1985 को फाइटर पायलट के तौर पर भारतीय वायु सेना में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान नियंत्रण रेखा के इस तरफ की स्थिति का जायजा लेने के लिए ऑपरेशन सफेद सागर लांच किया गया। इसमें शामिल फ्लाइट लेफ्टिनेंट नचिकेता के मिग-27एल विमान के इंजन में आग लगने के बाद वह उसमें से बाहर कूदे।

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