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कारगिल विजय दिवस: भारत से हारने के बाद पाकिस्तान ने लौटते समय भी दिखाई थी गद्दारी, जानें किस्सा

नई दिल्ली. आज यानी की 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के 21 साल पूरे हो हए हैं। द्रास सेक्टर में लड़ा गया ये युद्ध 60 दिनों तक चला था। इस युद्ध में टाइगर हिल की लड़ाई सबसे अहम मानी जाती है। भारत ने ये लड़ाई 60 दिनों में जीत तो ली थी, लेकिन जाते-जाते भी पाकिस्तान ने भारत के साथ गद्दारी की थी। उसने माइंस बिछा दिए थे। हाल ही में लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) मोहिंदर पुरी ने मीडिया से कारगिल को लेकर बातचीत की। उन्होंने बताया कि अभी टाइगर हिल की जंग पूरी तरह से खत्म नहीं हुई थी कि प्वॉइंट 4875 का मिशन सेट कर लिया गया था। यह मस्को वैला के नजदीक है। 

Asianet News Hindi | Published : Jul 26 2020, 11:39 AM
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रिटार्यड लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी बताते हैं कि उस वक्त कैप्टन विक्रम बत्रा की कुछ तबीयत खराब थी। करनल वाईके जोशी उन्हें इस मिशन पर नहीं भेजना चाहते थे। लेकिन विक्रम का कहना था कि वही, इस मिशन को पूरा करेंगे। 

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लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) मोहिंदर पुरी बताते हैं कि 'प्वॉइंट 4875 अहम था। उन्होंने एक तरफ से 79 ब्रिगेड का इस्तेमाल किया था। इसका नेतृत्व ब्रिगेडियर कक्कड़ कर रहे थे। इस जंग में 17 जाट और एक ओर से 13 जम्मू ऐंड कश्मीर राइफल्स (13 जैक रिफ) का भी इस्तेमाल किया गया। ऑफिसर्स द्वारा पिछले इलाके में हमले के लिए टू नागा को टास्क दिया था।'

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मोहिंदर पुरी कहते हैं कि 5-6 जुलाई को चढ़ाई शुरू की गई। अनुज नय्यर 17 जाट बटालियन में जूनियर कमांडर थे। अनुज नय्यर अपनी टीम के साथ आगे बढ़ रहे थे तभी उनकी टीम के कमांडर जख्मी हो गए। इसके बाद टीम ने दो ग्रुप्स बनाकर आगे की जंग की तैयारी की। चोटी की ओर बढ़ते वक्त अनुज नय्यर ने देखा कि नजदीक ही कुछ पाकिस्तानी सैनिकों ने बंकर्स बना रखे हैं। 

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नय्यर की टीम ने सटीक हमले से पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। तीन बंकर्स खाली कराने के बाद नय्यर चौथे बंकर की ओर बढ़ रहे थे कि इसी दौरान उन पर एक ग्रेनेड गिरा और अनुज बुरी तरह से जख्मी हो गए। बंकर खाली कराने के दौरान अनुज शहीद हो गए।

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पुरी बताते हैं कि अब मोर्चा 13 जैक रिफ के हवाले था। विक्रम बत्रा पत्थरों की ओट से दुश्मन पर हमला कर रहे थे। इसी दौरान उनके एक साथी को गोली लग गई, वह नजदीक ही गिर गया था। विक्रम और अपने एक साथी के साथ पत्थर के पीछे थे। विक्रम और उनकी टीम के साथी के बीच बातचीत के बाद कैप्टन बत्रा आगे गए। जख्मी साथी को उठाते वक्त विक्रम बत्रा को भी गोली लग गई और वो भी वहीं गिर गए।'

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मोहिंदर पुरी कहते हैं कि प्वॉइंट 4875 पर हमला करने के बाद पाकिस्तान की काफी कैजुअलटी हुई थी। वह बुरी तरह से टूट चुका था।' वह कहते हैं कि 'इस इलाके को साफ करने में दो-तीन दिन लग गए थे, फिर दोनों देशों के डीजीएमओ अटारी में मिले। इसके बाद सीजफायर की घोषणा की गई। हालांकि, पाकिस्तान पूरी तरह से इस बात को नहीं माना था।'

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पुरी बताते हैं कि 'मस्को वगैरह से पैरा ब्रिगेड ने भी ऑपरेशन चला रखा था। इन छोटी-छोटी लड़ाइयों के बीच जुलू टॉप पर अभी दुश्मन बैठा हुआ था। 22 जुलाई को पूरा ऑपरेशन तैयार किया गया। यह अटैक थ्री बाई थ्री जीआर और 9 पैरा के दो ग्रुप्स साथ किया गया। इसमें भी कुछ कैजुअलटी हुई। उन्होंने 25 जुलाई को पूरे इलाके को कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना ने जुलू टॉप से पाकिस्तानी सेना के जवानों के शव बरामद किए थे। इसके बाद उन लोगों ने सेना से मांग की कि इन शवों को वापस कर दिया जाए। पुरी ने लाइन ऑफ कंट्रोल के पास पूरे मिलिटरी रूल के साथ शव वापस कर दिए। इस तरह से 26 जुलाई को उन्होंने पूरी तरह से जीत हासिल कर ली थी। इसके बाद उन्होंने सीजफायर की घोषणा को मना लिया।'

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लेफ्टिनेंट जनरल (रि.) मोहिंदर पुरी कहते हैं कि 'जब उन्हें विक्रम बत्रा की शहादत की जानकारी मिली तो गहरा दुख पहुंचा।' इस जंग में संजय कुमार, जो कि अभी सूबेदार मेजर हैं उन्हें परमवीर चक्र मिला था। अनुज नय्यर को महावीर चक्र और कैप्टन विक्रम बत्रा को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

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जंग की खास बातें:-
1. इस जंग में बोफोर्स का इस्तेमाल किया गया था, जिससे दुश्मन हैरान रह गया।
2. यंग ऑफिसर्स के साथ अच्छी लीडरशिप का लोहा पूरी दुनिया ने माना था।
3. पाकिस्तान भी इस बात को मान चुका था कि यह हमला बहुत बड़ी भूल थी।
4. यही नहीं, पाकिस्तान की सेना ने यह भी स्वीकार किया था कि भारतीय सैनिकों में अदम्य पराक्रम है। उनकी ताकत का कोई मुकाबला नहीं।

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