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17000 फीट पर 17 गोलियां खाने के बाद भी इस जवान ने पाकिस्तानियों को दिया था मुंहतोड़ जवाब

नई दिल्ली. साल 1999 में लड़ा गया LOC कारगिल युद्ध का आज विजय यानी 5 जुलाई को विजय दिवस है। इस मौके पर कारगिल से जुड़ा किस्सा बता रहे हैं। इस युद्ध में ना जानें कितने जवानों ने अपनी जान गवां दी थी। इस लड़ाई में जवान योगेंद्र सिंह यादव भी थे, जो 18 ग्रेनेडियर यूनिट में पदस्थ थे। उस वक्त उनकी उम्र महज 19 साल थी। जब LOC पर युद्ध छिड़ा तो उन्हें सर्विस में सिर्फ ढाई साल ही हुए थे। उन्हें 17 हजार फीट ऊंची टाइगर हिल पर तिरंगा फहराने का लक्ष्य दिया गया था। इस दौरान उन्हें 17 गोलियां लगी थी। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। योगेंद्र को उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया। 
 

Asianet News Hindi | Published : Jul 05 2020, 11:54 AM
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योगेंद्र सिंह यादव ने कारगिल युद्ध के बारे में एक इंटरव्यू में बताया कि टाइगर हिल करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर थी। इस पर कब्जे के लिए 18 ग्रेनेडियर यूनिट को जिम्मेदारी दी गई। इसकी कमान लेफ्टिनेंट खुशहाल सिंह को सौंपी गई। वो 21 जवान थे। 2 जुलाई की रात उन्होंने चढ़ना शुरू किया। वो अपने साथियों के साथ रात को चढ़ाई चढ़ते थे और पूरे दिन पत्थरों के पीछे छुपे रहते थे। क्योंकि दिन में दुश्मन उन्हें आसानी से देख सकते थे और उन पर अटैक कर सकते थे। वो बताते हैं कि जब उन्होंने चढ़ना शुरू किया तो एक के बाद एक ऊंची चोटी दिखती जा रही थी। कई बार तो उन्हें लगता था कि यही टाइगर हिल है, लेकिन तभी उससे बड़ी चोटी दिखाई पड़ती थी। इस तरह वो भूखे-प्यासे रस्सियों के सहारे एक दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ रहे थे। 

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योगेंद्र ने बताया था कि जब पाकिस्तानी आर्मी को इसकी भनक लगी कि इंडियन आर्मी ऊपर चढ़ गई है तो उनकी तरफ से फायर खोल दिए गए। उन लोगों ने जमकर फायरिंग की। इसी बीच वो सात बंदे ऊपर चढ़ गए। बाकी के जवान नीचे रह गए। फायरिंग इतनी जबरदस्त हो रही थी कि जो ऊपर थे वे ऊपर रह गए और जो नीचे थे वे नीचे ही रह गए। 4 जुलाई की रात जब वो कुछ और ऊपर पहुंचे तो सामने दुश्मन के दो बंकर थे। उन्होंने सातों जवानों के साथ फायर खोल दिया। इस फायरिंग में पाकिस्तान के 4 जवान मारे गए। इसके बाद वो आगे बढ़े तो वहां से टाइगर हिल 50-60 मीटर की दूरी पर था। पाकिस्तान की फौज ने देख लिया कि इंडियन आर्मी यहां तक आ गई है। उसके बाद उन्होंने फायरिंग और गोलाबारी और तेज शुरू कर दी। फायरिंग ऐसी थी कि वहां से एक कदम आगे बढ़ने पर भी मौत थी और पीछे हटने पर भी उनकी जान जाती। मरना निश्चित था। 

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योगेंद्र कहा था कि भारत मां के किसी भी सपूत ने पीठ में गोली नहीं खाई है। रक्त का एक कतरा भी बहता है तो वह पीछे नहीं मुड़ता है। उन्होंने भी सोच रखा था कि मरना ही तो है। लेकिन उसके पहले दुश्मन को मारकर मरेंगे। जितना नुकसान पंहुचा सकते हैं पहुंचाएंगे। तब उनके कमांडर थे हवलदार मदन, उन्होंने बोला कि दौड़कर इन बंकरों में घुस जाओ। योगेंद्र ने बोला सर माइन लगा रखी होगी तो उन्होंने बोला कि पहले माइन से मर जाओ। क्योंकि भारतीय फौज के अंदर डिसिप्लिन है, जो आर्डर मिल गया उसे मानना ही था। 5 जुलाई की सुबह वो उनके मोर्चे में घुस गए। वहां, पांच घंटे उन्होंने लगातार लड़ाई लड़ी। दोनों तरफ से जमकर फायरिंग हुई। धीरे-धीरे उनके एम्यूनेशन खत्म हो रहे थे। उनके बाकी जवान करीब 25-30 फीट नीचे थे। उन्होंने उनसे कहा कि ऊपर नहीं चढ़ सकते तो एम्यूनेशन तो फेंको। उन्होंने रुमाल में बांधकर एम्यूनेशन फेंके। वो इतने मजबूर थे कि एक कदम आगे पड़े एम्यूनेशन को उठा नहीं सकते थे। क्योंकि ऊपर से दुश्मन देख रहे थे। 

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जब उनके पास एम्यूनेशन खत्म होने लगे तो उन्होंने प्लान किया कि अब वो फायर नहीं करेंगे और पत्थरों में छुप गए। उधर से दुश्मन लगातार फायर कर रहे थे। करीब आधे घंटे बाद पाकिस्तान के 10-12 जवान ये जानने के लिए बाहर निकले कि हिंदुस्तान के सैनिक कितने हैं, सभी मारे गए या कुछ बचे हैं। योगेंद्र ने पहले से प्लान और आपस में कोऑर्डिनेशन बनाया हुआ था। वो जैसे ही बाहर निकले उन्होंने एक साथ अटैक कर दिया। एक दो को छोड़कर बाकी सभी दुश्मन मारे गए। उन्होंने वहां पड़े पाक के एम्यूनेशन उठा लिए। अब उनके पास एम्यूनेशन भी थे और हथियार भी। पाक के जो जवान बच गए उन्होंने जाकर अपनी टीम को खबर कर दी। इसके बाद आधे घंटे के अंदर पाकिस्तान के 30-35 जवानों ने भारतीय जवानों पर अटैक कर दिया। फायरिंग इतनी जबरदस्त थी कि करीब 20 मिनट तक जवानों को सिर उठाने नहीं दिया। उनके पास जितने हेवी हथियार थे, सबका इस्तेमाल कर रहे थे।

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इसके बाद उन्होंने फिर से अपनी फायरिंग रोक दी और उनके नजदीक पहुंचने का इंतजार करने लगे। वो नहीं चाहते थे कि दश्मनों को उनकी लोकेशन पता चले। इसी बीच उन्हें योगेंद्र की टीम की एलमजी राइफल की लाइट दिख गई। उन्होंने ऊपर से उस पर आरपीजी (ग्रेनेड) दाग दिया। उनका एलएमजी डैमेज हो गया। इसके बाद वो ऊपर से पत्थरों से हमला करने लगे। गोले फेंकने लगे। इसमें उनके साथी जवान घायल हो गए, किसी का पैर कट गया तो किसी की उंगली कट गई। उनसे कहा गया कि अब फायर तो कर नहीं सकते तो नीचे चले जाओ लेकिन, उन्होंने नीचे जाने से इंकार कर दिया। यही भारतीय फौज की खासियत है, वह कभी पीछे नहीं मुड़ती।

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योगेंद्र ने कहा कि उधर पाक के जवान लगातार फायरिंग कर रहे थे, ग्रेनेड फेंक रहे थे। वे बेहद करीब आ गए और भारतीय जवानों को चारों तरफ से घेरकर अटैक कर दिया। पल भर में सबकुछ खत्म हो गया, उनके सभी साथी शहीद हो गए। उनकी नजर में तो खुद योगेंद्र भी मर चुके थे। लेकिन, वो जिंदा था, बेहोश पड़ा थे। उनके कमांडर ने कहा कि जरा चेक करो इनमें से कोई जिंदा तो नहीं है। वो आकर एक-एक को गोलियां मारने लगे। उन्होंने योगेंद्र के पैर और हाथ में गोली मारी, लेकिन उन्होंने आह तक नहीं किया, चुपचाप दर्द सहते रहे। 

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योगेंद्र को यह विश्वास था कि अगर उनके सीने में गोली नहीं मारी तो वो नहीं मरेंगे। वो चाहते थे कि कैसे भी करके अपने साथियों को इसकी जानकारी दे दें कि ये लोग उनके नीचे की पोस्ट पर अटैक करने वाले हैं। कुछ देर बाद उनका एक जवान भारतीय सैनिकों के हथियार उठाने आए। पाकिस्तानी जवान ने उनके सीने की तरफ बंदूक तान दी, तब तो उन्हें लगा कि अब वो बचेंगे नहीं। लेकिन, भारत मां की कृपा थी कि उसकी गोली आकर उनके पॉकेट पर लगी। इसमें उन्होंने कुछ सिक्के रखे थे, शायद उससे वो बच गए। 

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जब वो जवान आगे बढ़ा तो उन्होंने हिम्मत करके अपने पॉकेट से एक ग्रेनेड निकाला और उस जवान के ऊपर फेंक दिया। उस धमाके के बाद पाकिस्तान के जवान पूरी तरह हिल गए। इसके बाद उन्होंने दो तीन जगह से फायरिंग करना शुरू कर दिया। उन्हें लगा कि शायद सपोर्ट के लिए भारत की फौज आ गई है और वो भाग खड़े हुए। उसके बाद योगेंद्र अपने साथियों के पास गए। कोई भी जिंदा नहीं बचा था। बहुत देर तक वो रोते रहे। हाथ में गोली लगने से हड्डियां टूट गई थीं और उन्हें असहनीय दर्द हो रहा था। उनका मन कर रहा था कि हाथ को तोड़कर फेंक दें। तोड़ने की कोशिश भी की लेकिन, हाथ नहीं टूटा। फिर पीछे बेल्ट से हाथ को फंसा लिया। ढाई साल की नौकरी और 19 साल की उम्र। न तो उम्र का कोई तजुर्बा था न सर्विस का ज्यादा अनुभव। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ थी। यह भी नहीं पता था कि भारत किधर है और पाकिस्तान किधर है। 

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योगेंद्र बताते हैं कि फिर एक नाले से लुढ़कते हुए वो नीचे पहुंचे। वहां से उनके साथी आए और उन्हें उठाकर ले गए। किसी को उम्मीद नहीं थी कि योगेंद्र जिंदा रहेंगे। इसके बाद उन्हें सीओ कर्नल खुशहाल सिंह ठाकुर के पास ले जाया गया। योगेंद्र ने उन्हें ऊपर के हालात के बारे में जानकारी दी। इसके बाद उन्हें पता नहीं चला कि वो कहां हैं। जब होश आया तो पता चला कि वो श्रीनगर आर्मी अस्पताल में हैं और वही उन्हें जानकारी मिली कि उनकी टीम ने टाइगर हिल पर तिरंगा फहरा दिया है।

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