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पहले गैंगरेप, फिर आरा मशीन से कर दिए 2 टुकड़े.. 1990 हो या 2020, कश्मीरी पंडितों के हरे हैं जख्म

श्रीनगर. जम्मू कश्मीर के अनंतनाग में बौखलाए आतंकियों ने कश्मीर पंडित सरपंच की गोली मार कर हत्या कर दी। सरपंच और कांग्रेस के सदस्य अजय पंडित की हत्या घर से सिर्फ 50 मीटर की दूरी पर हुई। इस घटना ने एक बार फिर कश्मीर में पंडितों पर अत्याचार की यादों को ताजा कर दिया है। कश्मीर में 1990 में कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम हुआ था। उन्हें पलायन के लिए मजबूर किया गया था। इस घटना ने कश्मीरी पंडितों के उन जख्मों को फिर से हरा कर दिया है, जो उन्हें 30 साल पहले यानी 1990 में मिले थे। 

Asianet News Hindi | Updated : Jun 12 2020, 07:19 AM
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इस घटना पर अभिनेता अनुपम खेर समेत तमाम लोगों ने दुख और गुस्सा जाहिर किया है। अनुपम खेर ने कहा, अब तक कश्मीर में 5 लाख पंडितों को बाहर निकाला जा चुका है। उनकी हत्या की जाती है, उनकी महिलाओं का रेप किया जाता है। ताकि वे पलायन करने के लिए मजबूर हो सकें। 

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ताजा हुईं 1990 की यादें
साल 1990 को कश्मीरी पंडित समुदाय के लोग प्रलय के तौर पर देखते हैं। वे उन खौफनाक पलों को यादकर आज भी सिहर जाते हैं। 1990 में कश्मीरी पंडित समुदाय के लोगों कश्मीर घाटी से पलायन करने के लिए मजबूर किया गया था। मस्जिदों से उनके खिलाफ फतवे जारी किए गए थे। (सरपंच अजय पंडित के शव पर बिलखते परिजन।)

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महिलाओं से सामुहिक दुष्कर्म के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी। इसके बाद उन्हें घाटी से भागकर देश के अन्य भागों में आना पड़ा था। जहां वे आज भी अपने देश में शरणार्थियों के तौर पर रह रहे हैं। कश्मीरी पंडित बताते हैं कि उनके पास उस वक्त सिर्फ तीन विकल्प थे, इस्लाम कबूल करो, मारे जाओ या कश्मीर छोड़कर चले जाओ। इस बात का जिक्र कई बार अनुपम खेर ने भी किया है।

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कश्मीर घाटी में पंडितों के साथ जुर्म की हर हद को पार कर दिया था। इसका खुलासा कई किताबों और लेखों में कश्मीरी पंडितों ने खुद किया है। पिछले दिनों कश्मीरी कॉलमिस्ट, राजनीतिक टिप्पणीकार सुनंदा वशिष्ठ ने अमेरिका संसद में भी इन अत्याचारों का जिक्र किया था।

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उस लड़की की कहानी, जिसे गैंगरेप के बाद आरी से काट दिया गया
19 जनवरी 1990 से कश्मीर में हिंदुओं का पलायन शुरू हुआ था। गिरिजा टिक्कू नाम की लड़की 4 जून 1990 को बांदीपुरा से त्रहगाम, कुपवाड़ा में अपने स्कूल के लिए निकली थी। यहां वह लैब असिस्टेंट थी। शाम को लौटने में देर हुई तो वह टिक्कर में अपने रिश्तेदारों के घर रुक गई। यहां उसका आतंकियों ने अपहरण कर लिया। 

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चार आतंकियों ने उसे दूसरी जगह ले जाकर चार दिनों तक रेप किया। इसके बाद उसे आरा मशीन से काटकर दो टुकड़ों में काट दिया था।  25 जून 1990 को उसका कटा हुआ शव कुत्तों के खाने के लिए फेंक दिया गया। इस शव को देखकर हर किसी की चीख निकल गई।

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 गिरिजा टिक्कू का बस इतना दोष था कि वह आतंकियों की नजर में काफिर थी। इसलिए उसे क्रूरता से मारा गया। इस्लामिक शासन में उसे जीने का कोई अधिकार नहीं था। इतना ही नहीं आतंकियों ने उसकी मौत पर शोक मनाने की भी इजाजत नहीं दी। आतंकियों की धमकी के चलते गांव में कोई अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुआ।

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सिर्फ परिवार के चार-पांच सदस्य ही शामिल हुए थे। उन्होंने ही शरीर के टुकड़ों का अंतिम संस्कार किया था। वे लोग भी रात को ही गांव से गायब हो गए। उन्हें डर था कि कहीं उनकी भी हत्या ना कर दी जाए। 

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सुनंदा ने गिरिजा की कहानी बताते हुए कश्मीर पर पाकिस्तान के झूठ की पोल खोली थी। उन्होंने बताया था कि कश्मीरियों ने उसी तरह का आतंक और अत्याचार झेला, जैसा इस्लामिक स्टेट सीरिया में अंजाम दिया गया। पाकिस्तान लगातार भारत में मुस्लिमों पर अत्याचार को लेकर झूठ फैलाता रहा है। 

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सुनंदा वशिष्ठ ने बताया था, ''मैं कश्मीर की अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से हूं। मैं यहां इसलिए बोल रही हूं क्यों कि मैं जिंदा हूं। मैं उस गिरिजा टिक्कू की बात कर रही हूं। वह सीधी साधी लैब असिस्टेंट थी। वह उतनी खुशनसीब नहीं थी, जितनी मैं हूं। उसका अपहरण हुआ, गैंगरेप हुआ। उसे जिंदा आरी मशीन में दो टुकड़ों में काट दिया गया। उसका गुनाह सिर्फ उसका धर्म था।

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