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असम बाढ़: 33 में से 30 जिले बाढ़ से प्रभावित, 1.28 लाख से ज्यादा लोगों को छोड़ना पड़ा अपना घर

नई दिल्ली. असम हर साल की तरह इस साल भी पानी में बह रहा है। यहां 33 जिलों में से 30 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं। गृह मंत्रालय पर 15 जुलाई तक का डेटा मौजूद है। जिसके मुताबिक बताया जा रहा है कि 22 मई से लेकर  15 जुलाई के बीच यहां के 4766 गांव बाढ़ में डूब गए हैं और करीब 1.28 लाख से ज्यादा लोग अपने घरों को छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं। उन्हें रिलीफ कैम्प में सुरक्षित रखा गया है। जबकि, 92 लोगों की जान भी जा चुकी है। असम में 48.07 लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Jul 19 2020, 10:13 AM
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असम को हर साल बाढ़ से जूझना ही पड़ता है। आंकड़ों की मानें तो पहले ऐसा होता था कि बाढ़ आती भी थी, तो 4-5 साल में एकाध बार। लेकिन, पिछले कुछ सालों से बाढ़ हर साल आने लगी है। असम देश का ऐसा राज्य है, जो पूरी तरह से नदी घाटी पर ही बसा हुआ है। इसका कुल एरिया 78 हजार 438 वर्ग किमी का है। इसमें से 56 हजार 194 वर्ग किमी ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में है। और बाकी का बचा 22 हजार 244 वर्ग किमी का हिस्सा बराक नदी की घाटी में है।

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इतना ही नहीं राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के मुताबिक मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि असम का कुल 31 हजार 500 वर्ग किमी का हिस्सा बाढ़ से प्रभावित है। यानी, असम का जितना एरिया है, उसका करीब 40% हिस्सा बाढ़ प्रभावित है। जबकि, देशभर का 10.2% हिस्सा बाढ़ प्रभावित है। 

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मालूम हो असम में ब्रह्मपुत्र और बराक, दो प्रमुख नदियां हैं। इन दो के अलावा इनकी 48 सहायक नदियां और कई छोटी-छोटी नदियां हैं। इस वजह से यहां बाढ़ का खतरा ज्यादा है।

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अकेली ब्रह्मपुत्र नदी का कवर एरिया भी लगातार बढ़ रहा है। असम सरकार ने 1912 से 1928 के बीच सर्वे किया था, तब ब्रह्मपुत्र नदी राज्य के 3 हजार 870 वर्ग किमी के एरिया को कवर कर रही थी। आखिरी बार 2006 में जब सर्वे हुआ, तो ब्रह्मपुत्र नदी का कवर एरिया बढ़कर 6 हजार 80 वर्ग किमी हो गया। वहीं, अगर नदी की औसतन चौड़ाई की बात की जाए तो 5.46 किमी है। लेकिन, कुछ-कुछ जगहों पर इसकी चौड़ाई 15 किमी या उससे भी ज्यादा है। 
 

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असम सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की 2015 की रिपोर्ट्स के अनुसार कहा जा रहा है कि 1954 से लेकर 2015 के बीच बाढ़ की वजह से असम में 3 हजार 800 वर्ग किमी की खेती की जमीन बर्बाद हो गई। मतलब 61 साल में बाढ़ के कारण असम में जितनी खेती की जमीन बर्बाद हुई है, वो गोवा के एरिया से भी ज्यादा है। गोवा का एरिया 3 हजार 702 वर्ग किमी है।
 

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बाढ़ में खेती की जमीन का नुकसान का असर सीधा-सीधा लोगों की रोजी-रोटी पर भी देखने के लिए मिलता है। सरकार के आंकड़े बताते हैं कि राज्य की 75% से ज्यादा की आबादी खेती-किसानी या खेती-मजदूरी पर निर्भर है। 

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बाढ़ की वजह से लोगों को न सिर्फ खेती की जमीन बल्कि अपने घर तक छोड़ने पड़ रहे हैं। कई सैकड़ों गांव बाढ़ में  तबाह तो हो ही गए हैं। 2010 से 2015 के बीच 880 गांव पूरी तरह से तबाह हो गए थे। इन 5 सालों के दौरान 36 हजार 981 परिवारों के घर भी तबाह हो गए थे।

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असम सरकार के 2017-18 आर्थिक सर्वे के मुताबिक मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि 1954,1962, 1972, 1977, 1984, 1988, 1998, 2002 और 2004 में राज्य ने भयंकर बाढ़ का सामना किया है। हालांकि, उसके बाद भी हर साल लगभग तीन से चार बार असम में बाढ़ आती ही है।

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आंकड़े के मुताबिक रिपोर्ट्स में बताया जाता है कि हर साल बाढ़ की वजह से असम को औसतन 200 करोड़ रुपए का नुकसान होता है। 1998 की बाढ़ में राज्य को 500 करोड़ और 2004 में 771 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था।  

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