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करोड़पति बन गया मजदूर, सिर्फ एक फैसले से चमक गई किस्मत..पूरी जिंदगी मजदूरी करके बीती

रतलाम (मध्य प्रदेश). कहते हैं कि इंसान की किस्मत कभी चमक सकती है और वह रातोंरात कभी भी अमीर बन सकता है। ऐसा ही कुछ हुआ  है एक मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के रहने वाले एक आदिवासी मजदूरी की जिंदगी में, जिसने पूरी जिंदगी दूसरों के खेतों में मजदूरी करके निकाल दी और अब वह बुढ़ापे में करोड़पति बन गया है। ऐसा बदलाव जिला कलकेक्टर के आदेश के बाद हुआ है। जिन्होंने आदिवासी को किसान को उसकी 16 बीघा जमीन वापस दिलवा दी। वह अब अपनी जमीन का मालिक बन गया है। जानिए आखिर कैसे पलटी मजदूर की किस्मत...

Asianet News Hindi | Published : Jul 10 2021, 07:20 PM
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मजूदर परिवार को उनकी करोड़ों रुपए की जमीन को वापस दिलवाने कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम कोई कसर नहीं छोड़ी और उनको उनका हक दिलावा दिया। इस काम के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कलेक्टर को शाबाशी दी और ट्वीट कर रतलाम जिले के आदिवासी किसान को जमीन वापस मिलने पर बधाई भी दी। कहा-वर्षों से भटकते आदिवासी को कलेक्टर श्री पुरुषोत्तम ने दिलाया न्याय है, अब आदिवासी थावरा गरीब नहीं रहा उसकी करोड़ों रुपए मूल्य की बेशकीमती भूमि जो अन्य व्यक्तियों के कब्जे में थी अब उसे वापस मिल चुकी है।

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दरअसल, यह कहानी आदिवासी मंगला, थावरा और नानूराम भावर भाईयों की है, जो कि रतलाम जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर सांवलियारुंडी गांव में रहते हैं। आज से करीब 60 साल पहले 1961 में तीनों  भाईयों के गरीब पिता से गांव के ही दबंग लोगों ने धोखाधड़ी करके कम दामों में उनकी  16 बीघा जमीन हथिया ली थी। वह सड़क पर आ गए और मजदूरी करना पड़ गई।

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तीनों भाइयों ने अपनी जमीन को वापस लेने के लिए पूरा जोर लगा दिया, लेकिन उनको जमीन नहीं मिली। जिला दफ्तर से लेकर संभाग कार्यालय के चक्कर काटे जिन्होंने जमीन वसूली थी उनके हाथ-पैर  जोड़े, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

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फिर 1987 में उस दौरान के एसडीएम ने आदेश पारित कर साल1961 के विक्रय पत्र को शून्य घोषित कर दिया और जमीन पर का कब्जा इन आदिवासी भाइयों को दिए जाने का आदेश दिया। प्रशासन ने ना तो तीनों भाइयों को राजस्व रिकार्ड में दर्ज किया गया और ना ही उन्हें कब्जा  दिला सका। 

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कहीं न्याय नहीं मिला तो इन आदिवासी भाइयों ने कब्जा करने वालों के खिलाफ कई अदालत और फोरम पर अपील की। आलम यह हुआ कि वह जमीन एक से दूसरे और तीसरे को बिकती चली गई, लेकिन जिसका हक था उसे नहीं मिल पाई। पीड़ित किसान 1987 के बाद से ही लगातार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते रहे।
 

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 बता दें कि कुछ दिन पहले ही मजदूर किसान थावर ने रतलाम कलेक्ट्रेट पहुंचकर कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम को अपनी दर्दभरी कहानी सुनाई।  मजदूर की यह कहानी सुनकर कलेक्टर हैरान रहे गए और कहने लगे कि सालों से आपको हक नहीं मिला यह तो गलत हुआ।

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 इसके बाद तुरंत कलेक्टर ने एसडीएम किसान की जमीन के दस्तावेज तैयार करने के आदेश दिए। फिर 8 जुलाई को थावरा और उसके भाईयों को उनकी जमीन के कागज तैयार करके सौंप दिए। इस तरह से एक गरीब किसान करोड़ों की कीमत की जमीन का मालिक बन गया।
 

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