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हनुमानजी का अवतार था ये बंदर! मौत पर रोया पूरा गांव, मुंडन कराया..अर्थी निकाली, भोज में 50 KM दूर से आए लोग

राजगढ़ (मध्य प्रदेश). अभी तक लोग इंसानों की मौत पर मृत्यू भोज देते हैं। लेकिन मध्य प्रदेश के राजगढ़ से एक मानवता का अनोखा मामला सामने आया है। जहां पर एक बंदर की मौत के बाद पूरा गांव ऐसे दुखी हो गया जैसे उनका कोई अपना बीच से चला गया हो। इतना ही नहीं इंसान की तहत अंतिम संस्कार की सभी धार्मिक क्रियाओं को किया गया। साथ ही नगर भोज दिया गया, जिसमें करीब 50 गांव के हजारों लोगों ने बैठकर खाना खाया। पढ़िए, गांव के लोग इसे क्यों मानते थे हनुमान जी का अवतार...

Asianet News Hindi | Updated : Jan 11 2022, 11:36 AM
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दरअसल, यह बंदर की मौत का कुछ हटकर यह मामला खिलचीपुर के डालूपुरा गांव का है। जहां सोमवार को धार्मिक क्रियाओं के तहत गांव के लोगों ने मृत्यू भोज का आयोजन किया था। इस मृत्यू भोज में  करीब 50 से ज्यादा लोग पहुंचे हुए थे। जिसमें 11 हज़ार से लोगों ने बंदर के निधन पर शोक जताते हुए उसकी अंतिम क्रिया की महाभंडारे की प्रसादी ग्रहण की।

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यह बंदर ना होकर यहां के लोगों के लिए एक परिवार के सदस्य की तरह था। तभी तो कई ग्रामीणों ने इसके निधन पर वह सभी धार्मिक क्रियाएं की जो एक इंसान की मौत पर की जाती हैं। बाकायदा ग्रामीणों ने चंदा कर इस भोज का आयोजन किया। इसके लिए कार्ड भी छपवाए और आसपास के कई गांव के लोगों को आमंत्रित किया गया।

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बता दें कि बंदर की 29 दिसंबर को अचानक मौत हो गई थी। इसके जाने से गांव के लोगों को बेहद  दुखी हुआ। क्योंकि ग्रामीणों को यह बंदर उनके परिवार के सदस्य की तरह था। लोगों ने बंदर का अंतिम संस्कार भी बैंड बाजे के साथ अंतिम यात्रा निकालकर किया गया था। तीसरे दिन अस्थियां उज्जैन में विसर्जित की गई थीं।

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बंदर के प्रति इस गांव में नहीं आसपास के गांवों में भी प्रेम ता। तभी तो ग्रामीण हरि सिंह ने बंदर के लिए मुंडन करवाकर परिवार के सदस्य की तरह ग्यारहवीं का कार्यक्रम संपन्न किया। और तो और भोज में आए ग्रामीणों ने हरिसिंह को तिलक लगाकर कपड़े भेंट दिए।

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एक साल पहले डालूपुरा गांव में अचानक जंगल से एक बंदर गांव में आ गया था। देखते ही देखते यह बंदर ग्रामीणों के लिए अपने परिवार के सदस्य की तरह बन गया था। ग्रामीणों का मानना है कि बंदर हनुमानजी का ही रूप हैं। बच्चे हो या फिर बूढ़े सभी इससे बेहद प्यार करने लगे थे। वह गांव के हर घर में रोजाना सुबह शाम आया जाया करता था। लोग मेहमान की तरह उसे भोजन कराते थे।

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गांव के हर घर से एक सदस्य इस शव यात्रा में शामिल था। जहां वह 'रघुपति राघव राजा राम सबको सन्मति दे भगवान' जैसे गीत गा रहे थे। वहीं लोग बंदर की अर्थी पर फूल बरसा रहे थे। ऐसी पहली कोई अंतिम यात्रा थी जिसमें पुरुषों के साथ महिलाएं और बच्चे शामिल थे। बताया जाता है कि वह किसी का नुकसान नहीं करता था, बच्चों को भी उससे कोई डर नहीं लगता था। इसलिए ग्रामीणों को उससे आत्मीय जुड़वा हो गया।
 

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