22 अक्टूबर को इस विधि से करें देवी कात्यायनी की पूजा, दूर होगा रोग, शोक और भय
उज्जैन. शारदीय नवरात्र की षष्ठी तिथि (22 अक्टूबर) की प्रमुख देवी मां कात्यायनी हैं। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इनकी चार भुजाएं हैं। माताजी की दाहिनी ओर ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है। इनकी पूजा से रोग, शोक, संताप, भय आदि नष्ट हो जाते हैं।
| Published : Oct 22 2020, 09:47 AM IST
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इस विधि से करें देवी कात्यायनी की पूजा
सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर माता कात्यायनी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता कात्यायनी सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
ध्यान मंत्र
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
अर्थात- चन्द्रहास की तरह देदीप्यमान, शार्दूल अर्थात शेर पर सवार और दानवों का विनाश करने वाली माँ कात्यायनी हम सबके लिये शुभदायी हों।
नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी की ही पूजा क्यों की जाती है?
देवी कात्यायनी नवरात्रि के छठे दिन की देवी हैं। इनकी पूजा से रोग, शोक और भय नष्ट हो जाते हैं। लाइफ मैनेजमेंट के दृष्टिकोण से देखा जाए तो नवरात्र देवी की भक्ति का समय है। भक्ति के मार्ग पर उतरने से पहले मन से रोग, शोक और डर आदि भाव हटा देना चाहिए, नहीं तो ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है। मां कात्यायनी यही सिखाती हैं कि मन में अगर भी तरह की बुरी भावना हो तो उसे हटाकर ही भक्ति के मार्ग पर आगे चलना चाहिए।
22 अक्टूबर के शुभ मुहूर्त
सुबह 10.30 से दोपहर 12 बजे तक- चर
दोपहर 12 से 1.30 बजे तक- लाभ
दोपहर 1.30 से 3 बचे तक- अमृत
शाम 4.30 से 6 बजे तक- शुभ