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मुझसे और नहीं चला जाता, पेट दु:ख रहा है, साथ चल रहे लोगों ने प्यार से कहा-बस घर आने वाला है

बीजापुर, छत्तीसगढ़. एक गरीब और लाचार परिवार को लॉकडाउन की कीमत अपनी इकलौती 12 साल की बेटी को खोकर चुकाना पड़ी। यह मजदूर बच्ची तेलंगाना के पेरूर गांव से पैदल अपने गांव के लिए निकली थी। बच्ची बीजापुर जिले के आदेड़ गांव की रहने वाली थी। लॉकडाउन में काम-धंधा बंद हो जाने पर यह बच्ची गांव के ही 11 दूसरे अन्य लोगों के साथ घर को लौट रही थी। ये लोग 3 दिनों में करीब 100 किमी चल चुके थे। कभी ऊबड़-खाबड़ रास्ते..कभी सड़क...तो कभी जंगलों के रास्ते ये लोग अपने घर के नजदीक बढ़ रहे थे। इस दौरान बच्ची ने कई बार कहा कि उसका पेट दु:ख रहा है। साथ चल रहे लोगों ने सोचा कि पैदल चलने से ऐसा हो रहा होगा। वे बच्ची को दिलासा देते रहे..कभी प्यार से हाथ फेरते रहे और कहते रहे कि बस घर आने ही वाला है। सचमुच घर नजदीक आ चुका था। लेकिन घर से 14 किमी पहले बच्ची ऐसी गिरी कि फिर उठ न सकी। घटना के वक्त मां-बाप घर पर उसके लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। अपनी बेटी को खोने का दु:ख मां-बाप की आंखों से आंसू बनकर बह निकला। पूछने पर सिर्फ इतना कहा-गरीबों का दु:ख कौन समझेगा?
 

Asianet News Hindi | Published : Apr 21 2020, 09:57 AM
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आदेड़ गांव की रहने वाली 12 साल की जमलो मड़कम की मौत से उसके मां-बाप सदमे में हैं। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी 2 महीने पहले मजदूरी करने तेलंगाना के पेरूर गांव गई थी। उनके साथ गांव के ही कुछ और लोग भी थे। यहां उन्हें मिर्ची तोड़ने का काम मिला। इसी दौरान लॉकडाउन हो गया। कुछ दिनों तक यह परिवार वहीं रुका रहा। उन्हें उम्मीद थी कि लॉकडाउन खत्म हो जाएगा। लेकिन जब इसे 3 मई तक बढ़ा दिया गया, तो सब लोग घबरा गए। खाने-पीने के लाले पड़ने लगे। लिहाजा, 16 अप्रैल को जमलो और 11 लोग पैदल गांव के लिए निकल पड़े। पैदल चलते हुए अगले ही दिन जमलो की तबीयत बिगड़ने लगी। लेकिन लोग उसे दिलासा देते रहे। इस करीब 100 किमी चलने के बाद 18 अप्रैल को मोदकपाल इलाके के भंडारपाल गांव के पास जमलो बेहोश होकर नीचे गिर पड़ी और उसने दम तोड़ दिया।

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बच्ची की मौत की खबर मिलते ही प्रशासन सक्रिय हुआ। बच्ची की डेड बॉडी हॉस्पिटल पहुंचाई गई। सबको क्वारेंटाइन किया गया। इस बीच अपनी बच्ची की मौत की खबर सुनकर मां-बाप को गहरा सदमा लगा। वे दौड़े-दौड़े हॉस्पिटल पहुंचे। अपनी बेटी की मौत से दु:खी पिता आंदोराम और मां ने कहा कि वे तो खुश थे कि चलो जैसे सही, उनकी बेटी घर पहुंचने वाली है। सीएमएचओ डॉ. बीआर पुजारी ने बताया कि जानकारी लगते ही बच्ची का शव बीजापुर लाया गया था। हालांकि उसकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई है। मौत की वजह पोस्टमार्टम के बाद पता चलेगी।

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यह तस्वीर गुरुग्राम की है। एक दिहाड़ी मजदूर अपनी घर-गृहस्थी और बच्ची को साइकिल पर बैठाकर घर की ओर जाता हुआ।

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यह तस्वीर नोएडा की है। पैदल ही अपने बच्चों के साथ घर को निकली मां के लिए इससे बड़ी तकलीफ और क्या होगी? थककर सड़क पर बैठे बच्चों का हौसला बढ़ाती बेबस मां।

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इन मासूमों को नहीं मालूम कि उनके मां-बाप उन्हें उठाकर कहां ले जा रहे हैं।

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यह तस्वीर गाजियाबाद की है। गर्मी में मासूम बच्चे को लादकर मीलों पैदल चलकर अपने घर पहुंचे इन मजदूरों की पीड़ा शायद किसी ने नहीं देखी।

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यह तस्वीर मुंबई की है। बच्चो तो बच्चे होते हैं। उन्हें क्या मालूम कि लॉकडाउन में मां-बाप को कितना कष्ट झेलना पड़ रहा है। बच्चे की किसी जिद पर मां ने उसे चपत लगा दी।

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