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यूट्यूब पर वीडियो देखकर नेताजी को आया यह देसी आइडिया, बना दिया 'कोरोना भगाऊ कुकर'
बालोद, छत्तीसगढ़. कोरोना संक्रमण (Corona time) ने दुनियाभर में लोगों की जीवनशैली बदलकर रख दी है। यह भाप देने वाला कुकर इसी संकट के बाद सामने आया। कहते हैं कि जब मुसीबत सिर पर आती है, तो उसका समाधान भी लोग खोज लेते हैं। बालोदा शहर के पाररास वार्ड के पार्षद अपने वकील मित्र के साथ मिलकर कई लोगों को भाप देने वाला यह कुकर (Corona Preventive Steam Machine) बना डाला। इसका आइडिया यूट्यूब पर वीडियो देखने के बाद आया। इस भाप कुकर का फायदा वार्ड के लोगों को भरपूर मिल रहा है। इससे सर्दी-खांसी और गले में दर्द से पीड़ित लोगों को बड़ा फायदा हुआ है। आगे पढ़ें इसी भाप मशीन के बारे में...
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इस भाप मशीन का निर्माण पार्षद सरोजनी डोमेंद साहू और वकील दीपक समाटकर ने किया है। इनके इस प्रयास को डॉक्टरों ने भी सराहा है। उनका कहना है कि इससे कोरोना से लड़ने में मदद मिलेगी। आगे पढ़ें कैसे बनाई यह मशीन...
इस भाप मशीन को बनाने में कुकर ओर कुछ पाइपों का इस्तेमाल किया गया। इसमें कुकर की सीटीवाले स्थान पर पाइप को बेल्डिंग से जोड़ दिया गया। फिर बाकी पाइपों को जोड़ दिया गया। इन पाइपों के आगे बैठने पर भाप का फायदा उठाया जा सकता है। आगे पढ़ें-पत्नी के हाथों में छाले देखकर भावुक हुआ शंकर लुहार, देसी जुगाड़ से बना दी यह हैमर मशीन
कोरिया, छत्तीसगढ़. अगर आपमें हुनर है और कुछ कर दिखाने का जुनून..तो आप कुछ भी बना सकते हैं। यह लुहार दम्पती इसी का उदाहरण है। कबाड़ की जुगाड़ (Desi Jugaad Science) से बनाई इनकी ऑटोमेटिक हैमर मशीन (Automatic hammer machine) सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है। पहले यह दम्पती परंपरागत तरीके से लोहा गर्म करके उसे पीटने और कुदाल, हंसिया आदि बनाने का काम करते थे। यह बेहद मेहनत का काम था। इसमें महिला गर्म लोहे पर भारी हथोड़ा मारकर उसे आकार देती थी। इससे उसके हाथों में छाले पड़ जाते थे। यह देखकर पति को बड़ा दुख हुआ। बस, फिर क्या था...दोनों ने मिलकर यह मशीन बना दी। यह हैं शंकर लुहार और उनकी पत्नी रीता। ये कोरिया जिले के पटना में रहते हैं। यह कपल परंपरागत तरीके से लोहे की उपयोगी चीजें बनाता है। पहले ये लोहे को गर्म करने से लेकर पीटकर उसे आकार देने का काम परंपरागत तरीके से करते थे। लेकिन अब इन्होंने 7 फीट ऊंची एक ऑटोमेटिक हैमर मशीन बना ली है। इससे कपल का काम सरल और सुविधाजनक हो गया है। पढ़िए आगे की कहानी..
शंकर बताते हैं कि गर्म लोहे पर भारी हथोड़ा मारने से उनकी पत्नी के हाथों में छाले पड़ जाते थे। यह देखकर उन्हें बड़ी तकलीफ हुई। इसके बाद उन्हें यह मशीन बनाने की ठानी। पढ़िए आगे की कहानी..
शंकर के दो बेटे हैं। एक 12वीं में पढ़ता है और दूसरा 10वीं। पहले परंपरागत तरीके से काम करने में पूरे परिवार को जुटना पड़ता था। कमाई भी बमुश्किल 200-300 रुपए प्रति दिन हो पाती थी। लेकिन इस मशीन ने जिंदगी थोड़ी आसान बना दी है। पढ़िए आगे की कहानी..
दम्पती कृषि संबंधी उपकरण जैसे फावड़ा, कोड़ी, कुदाल, हंसिया, नागर लोहा अपनी छोटी सी कार्यशाला में बनाते हैं। हैमर मशीन के निर्माण से काम में गति आई है। पढ़िए आगे की कहानी..
इस हैमर मशीन के निर्माण में शंकर ने कबाड़ से गाड़ी का पट्टा, घिसा और फटा टायर आदि का इस्तेमाल किया। यह 2 एचपी मोटर से चलती है।