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जहर देने की घटना को लेकर पहली बार बोलीं लता मंगेशकर, कहा- ये शख्स न होता तो मैं कभी ठीक न होती

मुंबई। स्वर साम्राश्री लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) को लेकर एक पुराना किस्सा है कि 33 साल की उम्र में उन्हें जहर देकर मारने की कोशिश की गई थी। लता की करीबी मित्र पद्मा सचदेव की किताब ‘ऐसा कहां से लाऊं’ में भी इस बात का जिक्र है। यह घटना 1963 की है जब लता को लगातार उल्टियां हो रही थीं। डॉक्टर ने जांच के बाद बताया कि उन्हें धीमा जहर दिया गया है। हालांकि अब खुद लता मंगेशकर ने इस कहानी के पीछे से पर्दा हटाया है। लताजी ने एक बातचीत में कहा- हम मंगेशकर्स इस बारे में बात नहीं करते। क्योंकि यह हमारी जिंदगी का सबसे भयानक दौर था। साल था 1963। मुझे इतनी कमजोरी महसूस होने लगी थी कि मैं बेड से बड़ी मुश्किल से उठ पाती थी। 

Asianet News Hindi | Updated : Nov 27 2020, 07:40 PM
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एंटरटेनमेंट पोर्टल बॉलीवुड हंगामा की रिपोर्ट के मुताबिक, जब लताजी से पूछा गया क्या ये सच है कि डॉक्टर्स ने उन्हें कह दिया था कि वे दोबारा कभी नहीं गा पाएंगी? इसके जवाब में लताजी ने कहा- ये बात सही नहीं है। ये एक काल्पनिक कहानी है, जो मुझे दिए जाने वाले धीमे जहर के इर्द-गिर्द गढ़ी गई है।

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लताजी के मुताबिक, डॉक्टर ने मुझे ऐसा कभी नहीं कहा था कि मैं दोबारा नहीं गा पाऊंगी। मुझे ठीक करने वाले हमारे फैमिली डॉक्टर आरपी कपूर ने तो मुझसे ये तक कहा था कि वे मुझे अपने पैरों पर खड़ी कर देंगे। पिछले कुछ सालों में लोगों को ये  गलतफहमी हुई है। मैंने कभी अपनी आवाज नहीं खोई थी। 
 

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लता मंगेशकर के मुताबिक, डॉ. कपूर के इलाज से वो धीरे-धीरे ठीक हुईं। ये बात सच है कि मुझे धीमा जहर दिया गया था। लेकिन डॉ. कपूर के इलाज और मेरे दृढ़ विश्वास ने मुझे वापस खड़ा कर दिया। करीब तीन महीने तक बेड पर रहने के बाद मैं फिर से गाने रिकॉर्ड करने लायक हो गई थी।

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पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद लताजी का पहला गाना 'कहीं दीप जले कहीं दिल' हेमंत कुमार ने कंपोज किया था। लताजी के मुताबिक, हेमंत दा मेरे घर आए और मेरी मां से अनुमति लेकर मुझे रिकॉर्डिंग के लिए ले गए। उन्होंने मां से वादा किया कि किसी भी तरह की कोई परेशानी हुई तो वे फौरन मुझे घर वापस ले आएंगे। किस्मत से रिकॉर्डिंग अच्छे से हो गई। मैंने अपनी आवाज नहीं खोई थी। फिल्म 'बीस साल बाद' के इस गाने ने फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता था। 

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लता मंगेशकर के मुताबिक, उनके ठीक होने में मजरूह सुल्तानपुरी का अहम रोल है। लताजी ने बताया- मजरूह साहब हर शाम को मेरे घर पर आते और मुझे कविताएं और पुराने किस्से सुनाकर मेरा दिल बहलाते थे। मेरी बीमारी के दौरान वो हर रोज आते थे। यहां तक कि मेरे लिए डिनर में बना सिंपल खाना खाते थे और मुझे कंपनी देते थे। मुझे लगता है कि अगर मजरूह साहब न होते तो मैं उस मुश्किल दौर से कभी न उबर पाती।

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जब लताजी से पूछा गया कि कभी इस बात का पता चला कि उन्हें जहर किसने दिया था? इसके जवाब में उन्होंने कहा- जी हां, मैं जान गई थी लेकिन हमने इसलिए कोई एक्शन नहीं लिया क्योंकि हमारे पास उस शख्स के खिलाफ कोई सबूत नहीं था।
 

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28 सितंबर, 1929 को इंदौर में एक मध्यमवर्गीय मराठा परिवार में जन्मी लता का नाम पहले 'हेमा' था। हालांकि जन्म के पांच साल बाद माता-पिता ने इनका नाम 'लता' रख दिया था। छह दशक से हिन्दुस्तान की आवाज बन चुकीं लताजी ने 36 से ज्यादा भाषाओं में करीब 30 हजार से ज्यादा गाने गाए हैं।

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5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी लता मंगेशकर ने कभी शादी नहीं की। एक इंटरव्यू में उन्होंने इसकी वजह बताते हुए खुलासा किया था कि आखिर वो ऐसा क्यों नहीं कर पाईं। लता जी ने बताया था कि जब वो 13 साल की थीं, तभी उनके पिता का स्वर्गवास हो गया था। ऐसे में घर के सभी सदस्यों की जिम्मेदारियां उन पर थी। कई बार शादी का ख्याल आता तो वे उस पर अमल नहीं कर सकती थीं। बहुत कम उम्र में ही वे काम करने लगी थीं। भाई-बहनों और घर की जिम्मेदारियों को देखते-देखते ही वक्त चला गया और वे ताउम्र शादी नहीं कर पाईं।

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साल 2011 में लता जी ने आखिरी बार ‘सतरंगी पैराशूट’ गाना गाया था, उसके बाद से वो अब तक सिंगिग से दूर हैं। लता ने 13 साल की उम्र में पहली बार साल 1942 में आई मराठी फिल्म ‘पहली मंगलागौर’ में गाना गाया। हिंदी फिल्मों में उनकी एंट्री साल 1947 में फिल्म ‘आपकी सेवा’ के जरिए हुई।

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