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सुबह इस चीज को मिस करना पसंद नहीं करते अक्षय कुमार, जानें क्या सिखाया था पिता ने सलमान खान को

मुंबई. हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है। इस साल फादर्स डे 21 जून को है। इसे आधिकारिक रूप से पहली बार 19 जून, 1910 को मनाया गया था। हालांकि, फादर्स डे को मनाए जाने को लेकर जानकारों में मतभेद है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को निःस्वार्थ सेवा और प्यार के बदले उन्हें सम्मान देने के लिए जागरूक करना है। बॉलीवुड सेलेब्स भी इस दिन को मनाते है। आज आपको इस पैकेज में बताने जा रहे हैं कि आखिर सेलेब्स ने अपने पिता से क्या सीख ली। अक्षय कुमार से लेकर सलमान खान तक शेयर की है अपनी बात।

Asianet News Hindi | Updated : Jun 20 2020, 10:14 AM
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अक्षय कुमार बॉलीवुड के सबसे फिट एक्टर्स में से एक हैं। लेट नाइट पार्टियों को अवॉयड करने वाले अक्षय रोज सुबह 4 बजे उठ जाते हैं। एक इवेंट में उन्होंने कहा था कि बचपन से अब तक ऐसा कोई दिन नहीं गया, जब वो सूर्योदय के पहले न जागे हों। ये चीज उनके पिता ने उन्हें सीखाई थी।
 

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अक्षय ने कहा था, "मैं ऐसा किसी दबाव में नहीं करता। बल्कि मुझे इसमें मजा आता है। अब तक की लाइफ में कभी ऐसा कोई दिन नहीं बीता, जब मैंने सुबह का सूरज न देखा हो। मेरे पिता आर्मी में थे। उन्होंने मुझे हर दिन को एन्जॉय करना सिखाया और जिंदगीभर मैं ऐसा ही करूंगा। जब वो पैदा हुए, तब तक पिता आर्मी छोड़ चुके थे। हालांकि, उन्होंने मुझे आर्मी के तौर-तरीकों से ही बड़ा किया। पिता सुबह 5 बजे उन्हें उठा देते थे और अपने साथ जॉगिंग पर ले जाते थे। 

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सलमान खान की ज्यादातर फिल्में बॉक्सऑफिस अच्छी कमाई करती है। लेकिन 90 के दशक में ऐसा भी दौर आया था, जब कुछ हिट फिल्में देने के बाद सलमान ने काम करना बंद कर दिया था। वो अपने स्टारडम को अगले स्तर पर ले जाने की बजाए इसे एन्जॉय करने लगे थे। पार्टी करने में व्यस्त रहने लगे थे। तब पिता सलीम खान ने उन्हें चेतावनी दी थी कि अपने करियर की बर्बादी के जिम्मेदार वो खुद होंगे। सलमान के एक इंटरव्यू में बताया था- पापा ने कहा था भगवान यह नहीं चाहते और तुम्हारे फैमिली मेंबर्स भी ऐसा नहीं चाहते और तुम्हारे फैन भी यह नहीं चाहते। इसलिए अगर कोई तुम्हें बर्बाद करेगा, तो वो खुद तुम ही होंगे। 

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शाहरुख खान ने अनुपम खेर के शो में पिता मीर ताज मोहम्मद से जुड़ी कई बातें शेयर की थीं। जब उनसे पूछा गया कि उनके वालिद उन्हें क्या बनते देखना चाहते थे? तो उनका जवाब था- "मैं 15 साल का था, जब उनका निधन हो गया था। इसलिए मौका नहीं मिला कि वो बताएं कि क्या बनूं। लेकिन एक दो-बातें बोलते थे, जो मुझे अब भी याद हैं। कहते थे कि जिस चीज में दिली खुशी हो वो बनना। मैं उनके बहुत करीब था, वो मेरे दोस्त की तरह थे। हमेशा बोलते थे कि काम करना और न करो तो वो भी ठीक है। क्योंकि, जो कुछ नहीं करते, वो कमाल करते थे। वो कहते थे हॉकी जरूर खेलना, हमारा नेशनल सपोर्ट है। वो खुद खेलते थे। इसलिए मैंने  भी हॉकी सीखी।" 

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संजय दत्त ने फारुख शेख के शो में स्वीकार किया था कि पिता सुनील दत्त ने उन्हें अनुशासन में रहना सिखाया। उन्होंने बताया था कि माता-पिता ने उन्हें किसी स्टारकिड की तरह नहीं, बल्कि एक आम बच्चे की तरह पाला है। संजय ने एक किस्सा शेयर करते हुए बताया था कि जब वो करीब 10 साल के थे, तब घर में सुनील दत्त और उनके दोस्तों की एक पार्टी चल रही थी और वो सिगरेट पी-पीकर वहीं फेंक रहे थे। संजू सोफे की आड़ से फेंकी हुई सिगरेट का कश लगाते थे। ऐसी ही बुरी आदतों के चलते सुनील दत्त ने उन्हें सनावद के लॉरेन बोर्डिंग स्कूल भेज दिया था, जहां वो 10 साल रहे। सालों बाद संजय ने एक इंटरव्यू में माना था कि बोर्डिंग स्कूल में उनकी लाइफ भले ही मुश्किल रही हो, लेकिन आज वो जो हैं, अपने पिता के उसी फैसले की वजह से हैं। 

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रणवीर सिंह ने एक इंटरव्यू में कहा था- मेरे पिता की सीख है कि पैसे की बचत करो, इसे लेकर लापरवाह मत बनो। रणवीर की मानें तो उनके बिजनेसमैन पिता जगजीत सिंह भवनानी बेहतरीन मनी मैनेजर हैं और वो यह मानते हैं कि पैसा भी उतना ही काम करता है, जितनी कड़ी मेहनत फिल्मों के लिए उनका बेटा करता है। रणवीर ने बताया था- "जब मैं छोटा था, तब हमारे पास ज्यादा पैसा नहीं था। इसलिए मेरे पेरेंट्स खूब बचत करते थे ताकि गर्मियों में हम हॉलिडे के लिए विदेश जा सकें। मुझे इंडोनेशिया, सिंगापुर, इटली की ट्रिप याद हैं। हम अक्सर यूएस जाते थे, क्योंकि वहां हमारे कई फैमिली मेंबर्स रहते हैं।"

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अमिताभ बच्चन को नाटकों में भाग लेने का शौक बचपन से था। नैनीताल में जब वह पढ़ाई कर रहे थे तो शेरवुड कॉलेज में भी वह नाटक करते थे और बाद में दिल्ली में अपने ग्रेजुएशन के दौरान किरोड़ीमल कॉलेज में भी नाटकों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते देखा गया था। ऐसे में एक नाटक के मंचन से कुछ देर पहले एक बार अमिताभ इतने बीमार पड़ गए थे कि वह नाटक में भाग नहीं ले सके। इस बात से वे बेहद निराश हो गए थे। तब उनके बाबूजी हरिवंशराय बच्चन ने उनके पास शेरवुड जाकर उन्हें हिम्मत देने के साथ यह सीख भी दी और कहा -मन का हो तो अच्छा और मन का ना हो तो और भी अच्छा।

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