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जंगलों में AK-47 लेकर घूमती है....इस महिला अफसर के नाम से थर्र-थर्र कांपते हैं नक्सली

रांची. देश की बागडोर को संभालने वाले अफसर उसके लिए जान देने को भी हाजिर रहते हैं। किसी ने भले वर्दी की शान देख पुलिस या आर्मी में जाना चुना हो लेकिन फर्ज को पूरी जिम्मेदारी से निभाते हैं। इसमें महिला सिपाही भी पीछे नहीं हैं। महिला अफसरों ने ऐसे-ऐसे कारनामे किए हैं कि अपराधी उनके नाम तक से कांपने लगते हैं। एक ऐसी ही कमांडर है जो नक्सिलयों को नाक चने चबाए हुए है। उनके कारनामे आज मिशाल के तौर पर पेश किए जाते हैं। मोटिवेशनल स्टोरी की आज की कड़ी में हम आपको छत्तीसगढ़ के बस्तर में तैनात सीआरपीएफ की जांबाज असिस्टेंट कमांडेंट की दास्तान सुना रहे हैं। 

Asianet News Hindi | Updated : Apr 10 2020, 12:56 PM
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नक्सली इलाकों से हर कोई डरता है। आज भी कोई छत्तीसगढ़ के बीहड़ों और नक्सली क्षेत्रों में अपनी पोस्टिंग नहीं चाहता। पर जब ये पहली महिला ऑफिसर नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में तैनात हुई थी तो नक्सली भी इनका नाम सुनकर कांपने लगे। इनको मशहूर मैगज़ीन वोग द्वारा 'यंग अचीवर ऑफ द ईयर' भी चुना गया है।
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इस महिला सीआरपीएफ जवान का नाम है ऊषा किरण। किरण नक्सल प्रभावित इलाके बस्तर को पहली महिला सीआरपीएफ जवान हैं। नक्सल प्रभावित बस्तर जिले में पहली बार किसी महिला असिसटेंट कमांडेंट ने कार्यभार संभाला था वो किरण ही थीं। 2016 में उषा किरण को इस पद पर नियुक्त किया गया। किसी महिला अधिकारी के पदभार संभालने से बाकी सुरक्षाबलों का मनोबल भी बढ़ा। मूल रूप से गुड़गांव की रहने वाली इस लेडी अफसर ने 25 साल की उम्र में सीआरपीएफ ज्वाइन किया था।
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साल 2013 में सीआरपीएफ के लिए दी गई परीक्षा में ऊषा ने पूरे भारत में 295वीं रैंक हासिल की थी। वे पहली महिला अफसर हैं, जिन्हें बस्तर में तैनाती दी गईं थी। उषा किरण को सीआरपीएफ की सबसे खतरनाक विंग कोबरा में बतौर असिस्टेंट कमांडर तैनात किया गया।
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उषा किरण सीआरपीएफ में तीसरी पीढ़ी की अधिकारी हैं। उनके दादा और पिता भी सीआरपीएफ में रह चुके हैं। उनके भाई भी सीआईएसएफ मे हैं। किरण ट्रिपल जंप की राष्ट्रीय विजेता भी रही हैं और उन्होंने स्वर्ण पदक भी जीता है। दो वर्ष पहले जब उनकी नियुक्ति हुई तो बस्तर की आदिवासियों और ग्रामीण महिलाओं में आशा कि किरण जगी। किरण पहले 332 महिला बटालियन में थी।
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उन्हें आगामी सेवा के लिए तीन विकल्प दिए गए थे जिसमें उन्होनें बस्तर जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र में आना स्वीकार किया। इसपर उषा का कहना था कि वे बस्तर आना चाहती थीं क्योंकि उन्होंने सुना था कि बस्तर के निवासी बहुत गरीब हैं और वे भोले भाले हैं। यहां नक्सलियों की वजह से विकास नहीं हो पाया है इसी कारण मुझे यहां आने की प्रेरणा मिली।
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फिलहाल उषा एक पूरी कंपनी को लीड कर रही हैं। उन्हें कोबरा 206 बटालियन में पोस्टिंग मिली है। ऊषा रायपुर से 350 किलोमीटर दूर बस्तर के दरभा डिवीजन स्थित सीआरपीएफ कैंप में तैनात हैं। यह इलाका नक्सलियों का गढ़ कहा जाता है। दरभा वही इलाका है जहां झीरम घाटी में एक साथ 29 से ज्यादा कांग्रेसियों की नक्सलियों ने हत्या कर दी थी। नक्सलगढ़ इलाके में उषा किरण न सिर्फ एके-47 जैसे हथियारों से नक्सलियों से मुकाबला कर रही हैं बल्कि सामाजिक जागृति फैलाने का काम भी इलाके में कर रही हैं। उषा यहां लोगों को सुरक्षा के साथ शिक्षा-स्वास्थ्य और देशप्रेम जगाने का काम भी कर रही हैं। ऐसे खतरनाक इलाके में उषा न सिर्फ काम करती हैं, बल्कि जंगलों में सर्च ऑपरेशन भी चलाती हैं।
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ऊषा का स्थानीय आदिवासी महिलाओं से खासा लगाव रहा। यहां उनकी नियुक्ति के बाद आदिवासियों और महिलाओं में उम्मीद की किरण जगी थी। उनका लक्ष्य नक्सल प्रभावित इस इलाके में पूरी तरह से नक्सलियों का खात्मा करना था जिसे देख उनके खौफ का आलम यह हुआ कि उनकी तैनाती के बाद से बड़े-बड़े नक्सली उनके नाम से ही थर्राने लगे।
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उषा किरण को 'वोग वूमन ऑफ द अवॉर्ड-2018' से सम्मानित किया गया था। आपको बता दें कि वोग के फैशन शो में जहां सभी सेलिब्रिटीज ने रेड कारपेट पर खूबसूरत ड्रेस में रैंप वॉक किया तो वहीं ऊषा अपनी वर्दी में के साथ रैंप वॉक करती नजर आई थीं। उनकी यह तस्वीर सोशल मीडिया पर आते ही वायरल हो गयी और लोगों नें उनकी जमकर तारीफ और सराहना की थी।
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