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MBA-MPHILL पास टीचर पेट पालने को कर रहे हैं मजदूरी, मजबूरी में किताब पेन छोड़ उठा लिया फावड़ा

हैदराबाद : देशभर में लॉकडाउन के चलते हालात काफी खराब हो गए हैं। कई लोगों की नौकरी चली गई है। कई लोगों की सैलरी घटा दी गई है। कई पढ़े-लिखे लोग तो मजदूरी करने को मजबूर हो गए हैं। ऐसे ही तेलांगना के एक शिक्षक दंपति की हालत इतनी खस्ता हो गई कि वो दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हो गए। स्कूल-कॉलेज सब बंद हैं बच्चे घरों में कैद हैं ऐसे में आमदनी का कोई विकल्प बचा नहीं। लाखों बच्चों का भविष्य संवारने वाले इन शिक्षकों की डिग्रिया आज कागज का टुकड़ा हो गई हैं। काबिलियत की कीमत नहीं मिल रही तो ये टीचर मेहनत मशक्कत से दो पैसा कमाने जमीन पर उतर गए। एक तो महामारी का डर दूसरा भूखे मरने का परिवार को पालने पत्नी भी सच्ची साथी की तरह फावड़ा उठा मजदूरी करने आ गईं। 

 

लॉकडाउन में सामने आई शिक्षक दंपति की ये कहानी भविष्य के लिए सचेत करने के साथ हिम्मत और जज्बे को भी दर्शाती है- 

Asianet News Hindi | Updated : May 19 2020, 08:46 PM
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चिरंजीवी एक निजी संस्‍थान में पिछले 12 साल से पढ़ा रहे थे लेकिन, इन दिनों वह दिहाड़ी मजदूर का काम करने के लिए मजबूर हैं। लॉकडाउन में स्‍कूल बंद होने के कारण उन्‍हें सैलरी नहीं मिल रही है। छह सदस्‍यों का परिवार पालने के लिए उनके पास मजदूरी के अलावा कोई रास्‍ता नहीं था।

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10वीं कक्षा को पढ़ाने वाले चिरंजीवी के पास तीन डिग्रियां हैं। वह एमए (सोशल वर्क), एमफिल (रूरल डेवलपमेंट) और बीएड हैं। यही नहीं, प्राइवेट स्‍कूल में पढ़ा रहीं उनकी एमबीए पत्‍नी भी पिछले एक हफ्ते से मजदूरी के काम में लगी हैं। लॉकडाउन से पहले परिवार की मासिक इनकम 60,000 रुपये थी। आज यह जीरो हो गई है।

 

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चिरंजीवी अकेले नहीं हैं, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित देश के कई अन्‍य राज्‍यों में भी हालात यही हैं। स्‍कूलों, जूनियर कॉलेज, डिग्री और यहां तक प्रोफेशनल कॉलेजों के कई टीचर लॉकडाउन के बाद दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं।

 

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ज्‍यादातर टीचर पोस्‍ट ग्रेजुएट हैं और इस पेशे में कम से कम आधे दशक से ज्‍यादा समय से हैं। चिरंजीवी कहते हैं, ''अब तक हम किसानों के आत्‍महत्‍या करने की घटनाएं सुनते आए हैं। स्थितियां नहीं सुधरीं तो अगला नंबर शिक्षकों का होगा।'' 

 

 

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उन्‍होंने बताया कि स्‍कूल में किसी भी टीचर को अप्रैल की सैलरी नहीं मिली है। हमें डर है कि अक्‍टूबर तक स्थितियां ऐसी ही रहेंगी। हजारों टीचर बिना सैलरी के जैसे-तैसे घर चला रहे हैं। चिरंजीवी ने कहा, ''मेरे दो बेटियां हैं। दोनों केजी में हैं। व्‍हाइट राशन कार्ड होने के बावजूद हमें राशन नहीं मिल रहा है। राज्‍य ने 1500 रुपये देने का जो वादा किया था, उसे भी पूरा नहीं किया है। शुरू में स्‍थनीय नेताओं से ग्रॉसरी मिल जाती थी लेकिन, अब कई लोगों के मदद मांगने से उन्‍होंने भी हाथ खड़े कर लिए हैं।''

 

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इस बारे में कई टीचरों से बात की. उन्‍होंने बताया कि मजदूर के तौर पर भी जिंदगी आसान नहीं है। काम कम है और लोग ज्‍यादा हैं। शिक्षकों के अलावा भी कई शिक्षित लोग मजदूरी से जुड़े काम मांग रहे हैं। स्‍कूल और कॉलेज के प्रबंधन से ज्‍यादा वे सरकार को दोष देते हैं। पिछले आठ साल से सोशल स्‍टडीज पढ़ाने वाले एम जयराम ने कहा कि सैलरी न मिलने के बावजूद उन्‍हें स्‍कूलों और कॉलेजों में दाखिले से जुड़े काम में मदद करनी है। 

 

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नौकरी के साथ पेट पालने के लिए वह पेंटर के तौर पर भी काम करते हैं। इनमें से कुछ फल और सब्जियां बेचने लगे हैं लेकिन, बाहर आने में उन्‍हें शर्मिंदगी महसूस होती है। कमोबेश सभी तेलुगु राज्‍यों में टीचरों का यही हाल है। बहुत से लोग अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में चर्चा करने से झिझकते हैं।

 

 

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