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IAS अफसर बना चाय वाले का बेटा, कुर्सी पर बैठ बोला 'अब कोई नहीं उड़ाएगा हमारी गरीबी का मजाक'
नई दिल्ली. मेहनत वो चाबी है जो हर किस्मत का ताला खोल देती है। मजबूत इरादों के साथ लक्ष्य का पीछा किया जाए, तो राह में आने वाली हर मुश्किल खुद-बख़ुद अपना रास्ता मोड़ लेगी। हमारी आज की कहानी एक ऐसे चाय वाले के बेटे की है, जिसने चुनौतियों का सामना करते हुए सफलता की जो कहानी लिखा वह वाक़ई में बेहद प्रेरणादायक है। हम बात कर रहे हैं 2018 बैच के आईएएस ऑफ़िसर देशल दान की, जिसने हिंदी माध्यम से पढ़ाई करते हुए भी अफसर बनकर दिखाया। उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत सी परेशानियां झेली, गरीबी और तंगहाली में दिन गुजारे, लोगों ने चाय वाले का बेटा कहकर चिढ़ाया भी। पर आज वो देश का गौरव हैं। IAS सक्सेज स्टोरी में हम आपको देशल के संघर्ष की कहानी सुने रहे हैं...
| Updated : Apr 01 2020, 11:34 AM
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देशल ने एक गरीब लड़के से अफसर बनने के अपने सघंर्ष को खुद शब्दों में पिरोया है। वो बताते हैं "मैं राजस्थान के जैसलमेर जिले का रहने वाला है। मेरे पिता कुशलदान चरन एक चाय की दुकान चलाते हैं। हां मैं एक चायवाले का बेटा हूं। मेरी मां कभी स्कूल नहीं गई वो हाउस वाइफ हैं। हम 7 भाई बहन हैं। मैंने कक्षा 10 तक सरकारी राज्य बोर्ड हिंदी माध्यम स्कूल में पढ़ाई की। फिर मैं अपनी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के लिए कोटा गया और IIIT जबलपुर में दाखिला लिया।
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मैंने आस-पास के गांवों में राज्य सेवा और केंद्रीय सेवा में भर्ती हुए कुछ लोगों की वज़ह से सिविल सेवा के बारे में सुना था। उन्हें समाज में एक अलग ही तरह की प्रतिष्ठा मिलती थी। सब लोग उन्हें सम्मान देते थे। मेरा बड़ा भाई जिसने 7 साल तक भारतीय नौसेना में सेवा की, वह मुझे आईएएस बनते देखना चाहता था। लेकिन साल 2010 में आईएनएस सिंधुरक्षक में एक दुर्घटना हुई जिसमें मैंने अपने उस भाई को खो दिया। यह मेरी जिंदगी का सबसे दुःखद पल था। मैं पूरी तरह बदल चुका था और फिर मैंने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने का फैसला किया।
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मैंने अपने इंजीनियरिंग कोर्स के लास्ट ईयर में तैयारी शुरू कर दी थी। CSE की तैयारी के दौरान यूपीएससी की तैयारी करना बहुत मुश्किल था। पर मैंने अपने पिता से मेहनत करना सीखा था। संघर्ष और कड़ी मेहनत की कीमत सीखी। मेरे माता-पिता और बड़े भाइयों ने मेरी पढ़ाई के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। उनके बलिदान, कड़ी मेहनत और समर्पण ने मुझे अतिरिक्त प्रयास करने के लिए प्रेरित किया।
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और आखिरकार साल 2017 में मुझे मेरी मेहनत का फल मिला। मैंने 82 रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। जिस परीक्षा को मैं सिर्फ पास करने के सपने देखता था उसमें टॉप कर जाउंगा सोचा भी नहीं। आज मैं IAS के पद पर तैनात हूं।
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रिजल्ट के बाद और मेरे चयन के बाद पिता से मिलना एक बहुत ही भावनात्मक अनुभव था। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि जो भी संभव हो और क्षमता से लोगों की सेवा करें। देशल दान की सफलता वाक़ई में कई मायनों में प्रेरणादायक है।
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पहली बात यह कि जब आप लक्ष्य प्राप्ति के लिए संकल्पित होते हैं तो आपको पीछे नहीं मुड़ना है। परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना है। जीवन में कुछ करने के लिए अपनों का साथ और आशीर्वाद बेहद जरूरी है। और जब आप सफल हो जातें हैं तो अपने कल को कभी न भूलें।