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पिता की मौत के बाद छोड़ दी पढ़ाई, खेती कर पाला मां का पेट, कड़ी मेहनत से किसान बना IAS अफसर

नई दिल्ली. देश में हर साल सैकड़ों बच्चे यूपीएससी की तैयारी करते हैं। गांवों में भी बच्चे बड़ा आदमी बनने का सपना देखते हैं। घरवाले भी चाहते हैं कि उनके बच्चे कोई बड़ा अधिकारी बन उनका नाम रोशन कर दें। पर गांवों में स्कूल, कॉलेज और कोचिंग संस्थानों की कमी भी है। यहां सुविधाओं के अभाव में बच्चे कोशिश तो करते हैं लेकिन एक बार भी सफल नहीं हो पाते। ऐसी ही एक शख्स ने सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी की लेकिन परिवार के दुखों ने उसकी राह में मुश्किलें पैदा कर दीं। ऐसे पिता के मौत के दुख को झेलकर भी इस शख्स ने आईएएस बन परिवार का नाम रोशन कर दिया। आज हम आपको आईएएस सक्सेज स्टोरी में तमिलनाडु के एक छोटे से गांव 'के एलमबहावत' के संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Feb 16 2020, 10:15 AM
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एलमबहावत एक छोटे से गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता प्रशासनिक अधिकारी थे जबकि उनकी मां एक किसान। इसके अलावा वो सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम भी करती थी। बाकी बच्चों की तरह के एलमबहावत का बचपन भी बेहद साधारण तरीके से बीता। उनके माता-पिता हमेशा शिक्षा को महत्व देते थे और चाहते थे उनका बेटा भी अपनी पढ़ाई पूरी करें।
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इसलिए एलमबहावत ने भी मन लगाकार पढ़ाई की। वे स्कूली दिनों में पढ़ाई में अच्छे थे। पर उन्हें कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दरअसल एलमबहावत 12वीं में थे जब उनके सिर से पिता का साया उठ गया। इस दौरान उनकी घर की स्थिती दिन पर दिन खराब होती चली गई, ऐसे में उन्हें पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी। पढ़ाई छोड़ वे काम करने लगे।
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पढ़ाई छोड़ने के बाद एलमबहावत का दिन खेतों में गुजरने लगा। खेती करने के बावजूद घर की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही थी ऐसे में उन्होंने सोचा कि वो किसी सरकारी नौकरी के लिए अप्लाई कर दें, इस दौरान उन्होंने Junior Assistant (एलडीसी) के लिए अप्लाई किया लेकिन उन्हें सफलता नही मिलीं।
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एलमबहावत यहां रूकें नहीं बल्कि उन्होंने प्रयास जारी रखा। एलमबहावत के मुताबिक वो दिन में खेती करते और शाम को नौकरी की तलाश में सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते, ये सफर करीबन 9 साल तक चलता रहा।
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12 वीं की पढ़ाई छूटने के बाद एलमबहावत ने आगे की पढ़ाई लॉन्ग डिस्टेंस के जरिए की। उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से बीए किया। यूपीएससी की तैयारी उन्होंने अपने दम पर किया। गांव में सिविल सर्विस की पढ़ाई के लिए कोई सुविधा नहीं थी, ऐसे में कॉमन लाइब्रेरेरी में बैठकर पढ़ाई करते थे, इस लाइब्रेरी में सिविल सर्विस के लिए एक अलग सेक्शन हैं।
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गांव के लोगों और टीचर की मदद से उन्हें तमिलनाडु सरकार की तरफ से नि: शुल्क सेवा कोचिंग पाई। सफलता पाने से पहले एलमबहावत सिविल सर्विल की परीक्षा में करीबन 5 बार मेन्स और तीन बार इंटरव्यू में फेल हुए हैं।
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जिसके बाद उन्होंने तमिलनाडु पब्लिक सर्विस कमिशन की परीक्षा को पास कर लिया। यहां उन्होंने स्टेट गर्वमेंट ग्रुप 1 सर्विस जॉइन की। नौकरी ज्वाइन करने के बाद भी उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करना नहीं छोड़ा, स्टेट गर्वमेंट की नौकरी में वो असिस्टेंट डायरेक्टर (पंचायत) और डीएसपी के तौर पर कार्यरत थे, यहां वो नौकरी के साथ तैयारी करते थे, पहले सभी प्रयास में असफल होने के बाद आखिरी अटेम्प्ट में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा को क्रैक कर लिया। लगातार प्रयास के बाद साल 2015 में उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में 117वीं रैंक हासिल की।
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एलमबहावत के संघर्ष की कहानी से पता चलता है कि इंसान को कितनी भी मुश्किलों में अपने सपने से डगमगाना नहीं चाहिए। कोशिश करते रहना चाहिए सफलता मेहनत और जुनून से ही मिलती है।
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