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14 की उम्र में पिता की मौत, घर का खर्च चलाने खेतों में किया काम...जज्बा देखिए बेटी बन गई IPS
लखनऊ(Uttar Pradesh). फरवरी में CBSE बोर्ड के साथ अन्य बोर्ड के एग्जाम भी स्टार्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही बैंक, रेलवे, इंजीनियरिंग, IAS-IPS के साथ राज्य स्तरीय नौकरियों के लिए अप्लाई करने वाले स्टूडेंट्स प्रोसेस, एग्जाम, पेपर का पैटर्न, तैयारी के सही टिप्स को लेकर कन्फ्यूज रहते है। यह भी देखा जाता है कि रिजल्ट को लेकर बहुत सारे छात्र-छात्राएं निराशा और हताशा की तरफ बढ़ जाते हैं। इन सबको ध्यान में रखते हुए एशिया नेट न्यूज हिंदी ''कर EXAM फतह...'' सीरीज चला रहा है। इसमें हम अलग-अलग सब्जेक्ट के एक्सपर्ट, IAS-IPS के साथ अन्य बड़े स्तर पर बैठे ऑफीसर्स की सक्सेज स्टोरीज, डॉक्टर्स के बेहतरीन टिप्स बताएंगे। इस कड़ी में आज हम बेहद संघर्षों में पली-बढ़ी 2017 बैच की IPS इल्मा अफरोज की कहानी आपको बताने जा रहे हैं।
| Updated : Feb 17 2020, 12:01 PM
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इल्मा अफरोज उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कुंदरकी गांव की रहने वाली हैं। वह एक किसान की बेटी हैं। उनके एक भाई भी है। इल्मा की प्रारम्भिक शिक्षा गृह जनपद से ही हुई। लेकिन गरीबी और परेशानी ने इल्मा को बड़ा करने की ताकत दी और आज वो IPS हैं।
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इल्मा को पढ़ाई की प्रेरणा उनके पिता से ही मिली थी। इल्मा बताती हैं वह जब भी मंडी से अनाज बेंचकर आते थे सबसे पहले मुझे किताबें खरीदने के लिए पैसे देते थे। पिता के इसी जज्बे की कद्र करते हुए इल्मा भी खूब दिल लगाकर पढ़ती थी।
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इल्मा जब सिर्फ 14 साल की थीं उसी समय उनके पिता की मौत हो गई। पिता की मौत के बाद इस परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ सा टूट पड़ा। गरीबी और तंगहाली में दिन कटने लगे। फिर इल्मा की मां ने खुद परिवार चलाने का बीड़ा उठाया। वह खेतों में काम करने लगी। मां के साथ इल्मा भी खेतों में काम करने जाने लगी। लेकिन इसके बावजूद भी इल्मा ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। मां ने भी इल्मा का पूरा सपोर्ट किया।
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इंटरमीडिएट के बाद ग्रैजुएशन के लिए इल्मा दिल्ली यूनिवर्सिटी चली गईं। वहां पढ़ाई में ज्यादा पैसा न खर्च हो इसलिए उन्होंने दर्शनशास्त्र से B.A. किया। उसी दौरान उनका चयन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप के लिए हो गया। इल्मा बताती हैं कि स्कॉलरशिप पढ़ाई और वहां रहने के लिए थी। लेकिन उनके पास तो वहां जाने के लिए किराया भी नहीं था।
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इल्मा के पड़ोसी चौधरी हरभजन सिंह ने उनके परिवार की काफी मदद की थी। शुरू से ही उन्होंने इल्मा व उनके भाई की परवरिश एक परिवार की तरह की थी। इल्मा बताती हैं कि मै चौधरी काका खेतों में गेंहूं काट रहे थे। मैं उनके पास गई और उनसे बताया कि मेरा चयन विदेश पढ़ाई के लिए हो गया है। लेकिन मेरे पास जाने का किराया नहीं है। उन्होंने मेरे किराए के लिए कहीं से रूपयों की व्यवस्था की तब मै ऑक्सफोर्ड पहुंच सकी।
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इल्मा तो पढ़ने के लिए विदेश चली गई लेकिन गांव में बहुत से लोग उनकी मां को ताना मारते थे। वो कहते थे लड़की है बहुत पढ़ लिख कर क्या कर लेगी करना तो चूल्हा-चौका ही है। लेकिन उनकी मां सभी की बातों का जवाब केवल शांत रहकर देतीं थीं। उन्हें उस दिन का इन्तजार था जब उनकी बेटी पढ़ लिखकर कुछ बने और सभी की बोलती बंद हो जाए।
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विदेश में पढ़ाई के दौरान उन्हें कई देशों में स्कॉलरशिप मिलती गई और उन्होंने , इंग्लैंड, न्यूयॉर्क और इंडोनेशिया जैसे देशों में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी की। लेकिन हर उनके जहन में अपने गांव,मां और उनका सपोर्ट करने वाले हर व्यक्ति की सोच रहती। इसी लिए वह वापस इंडिया लौट आईं और सिविल सर्विस की तैयारी में लग गईं।
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उन्होंने बिना किसी कोचिंग का सहारा लिए साल 2017 में सिविल सर्विस की परीक्षा दी। साल 2018 में जब रिजल्ट आया तो इल्मा ने पहले ही प्रयास में सिविल सर्विस एग्जाम क्रैक कर लिया था। उन्हें 217वीं रैंक मिली थी। वह IPS बन गईं।