आर्थिक तंगी के कारण पिता के साथ दुकान पर काम करते हुए की पढ़ाई, और बन गए IAS
करियर डेस्क. किसी ने सच ही कहा है अगर जिंदगी में कुछ पाने के लिए पूरी ईमानदारी से कोशिश की जाए तो मंजिल मिल ही जाती है। सफलता के लिए सिर्फ जरूरी है जोश व लगन। व्यक्ति अपनी मेहनत और जोश के दम पर बड़ा से बड़ा मुकाम हासिल कर सकता है। आज कल अक्सर देखा जा रहा है कि कॉम्पटेटिव एग्जाम्स की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स अक्सर एक या दो बार असफल होने के बाद नर्वस हो जाते हैं। वह अपना संतुलन खो बैठते हैं उन्हें ये लगने लगता है कि अगर वह सफल न हुए तो जिंदगी में क्या कर सकेंगे। उन्हें आगे का रास्ता नहीं सूझता है। आज हम आपको 2018 बैच के IAS शुभम गुप्ता की कहानी बताने जा रहे हैं।
| Published : Mar 12 2020, 04:05 PM
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शुभम गुप्ता मूलतः राजस्थान के जयपुर के रहने वाले हैं। शुभम की शुरुआती पढ़ाई जयपुर से ही हुई। वह एक बेहद गरीब परिवार से हैं। शुभम बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थे।
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आर्थिक तंगी से जूझ रहा शुभम का परिवार जयपुर से महाराष्ट्र आ गया। शुभम के पिता ने महाराष्ट्र के छोटे से गांव दहानू रोड पर रहने लगे और वहीं एक छोटी से दुकान खोल ली।
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जैसे-तैसे शुभम की पढ़ाई चलती रही। उनके पिता शुरू से ही उन्हें हौसला देते रहे कि जिंदगी में अगर सफल होना है तो कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। शुभम ने अब पिता का व्यवसाय में भी मदद करना शुरू कर दिया। वह स्कूल से आने के बाद अपनी किताबें लेकर पिता की दुकान पर आ जाते थे और वहीं दुकान पर काम करने के साथ खाली समय में पढ़ाई भी करते थे।
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पढ़ाई पूरी होने के बाद शुभम UPSC की तैयारी में लग गए। उन्होंने साल 2015 में पहली बार UPSC की परीक्षा दी लेकिन प्री एग्जाम में ही फेल हो गए। उन्होंने तैयारी जारी रखी और अगले साल फिर से एग्जाम दिया। इस बार शुभम ने UPSC क्लियर तो कर लिया लेकिन उनकी रैंक काफी नीचे थी। इसलिए उन्होंने ज्वाइन नहीं किया।
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शुभम को खुद पर पूरा भरोसा था। इसलिए उन्होंने तीसरी बार साल 2017 में फिर से एग्जाम दिया लेकिन यह साल भी शुभम के लिए ठीक नहीं रहा। वह इस बार प्री में ही फेल हो गए।
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शुभम ने धैर्य नहीं खोया और चौथी बार प्रयास किया। साल 2018 में शुभम ने चौथी बार पूरी क्षमता से तैयारी की। इस बार शुभम ने वो कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। शुभम ने आल इण्डिया में 6वीं रैंक हासिल की।
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शुभम अपनी इस सफलता का श्रेय अपने पिता को देते हैं। उनका कहना है कि मेरे पिता ने इतने कष्ट झेले आर्थिक अभावों के बाद भी मेरा हौसला बढ़ाया और मुझे पढ़ाया। आज उसी की देन है कि मैंने अपनी मंजिल हासिल की।