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Women's Day 2021: जब औरतों को वोट का अधिकार दिलवाने अंग्रेजों से भिड़ी थीं ये दो महिलाएं, शख्सियत को करें नमन
करियर डेस्क. पूरी दुनिया में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day 2021) मनाया जा रहा है। ये दिन महिलाओं को एम्पावर करने, उनके सहयोग की सराहना करने और सुरक्षा के लिए मना जाता है। इस साल कोविड महामारी के चलते अधिकतर सेमिनार और कार्यक्रम Online ही हो रहे हैं। इस खास दिन पर हम आपको महिला दिवस को और मजबूत बनाने एक महिला की कहानी सुना रहे हैं। ये वो महिला है जिसने देश में औरतों मतदान का अधिकार दिलवाने लंबी लड़ाई लड़ी। यूं तो महिलाओं को वोटिंग का अधिकार देने वाला दुनिया का पहला देश न्यूजीलैंड है। न्यूजीलैंड सरकार की एक आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, 28 नवंबर, 1893 को न्यूजीलैंड ने महिलाओं को पहली बार मतदान करने का अधिकार दिया था। इसमें केट शेफर्ड नाम की एक सोशल एक्टिविस्ट ने बड़ी भूमिका निभाई थी। वहीं भारत में महिलाओं के लिए इस अधिकार में लड़ने के लिए अबला बोस और कामिनी रॉय का नाम सामने आता है। वूमेन्स डे पर आइए जानते हैं कैसे अबला बोस उस जमाने में इतनी जागरूक महिला होकर महिला अधिकारों और उनकी स्थियों को सुधारने के काम कर इतिहात रच गईं-
| Published : Mar 08 2021, 12:11 PM IST / Updated: Mar 08 2021, 12:15 PM IST
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अबला बोस भारतीय ने प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस की पत्नी थीं। 8 अगस्त 1865 में बरिसल में जन्मी अबला बोस के पिता का नाम दुर्गामोहन था। अबला के पिता उस समय के दास ब्रह्म समाज के बड़े नेताओं में से एक थे, जबकि अबला की मां ब्रह्ममयी व विधवा महिलाओं के उत्थान के लिए काम किया करती थी। अबला ने भी कम उम्र से मां ने नक्शे कदमो पर चलनाशुरू कर दिया था। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा में आगे बढ़ने की खातिर प्रेरित किया और मताधिकार के लिए कामिनी रॉय को प्रेरणा दी।
अपनी शुरूवाती शिक्षा अर्जित करने के बाद, अबला ने बेथ्यून कॉलेज में दाखिला लिया। जिसके बाद मेडीसिन की पढ़ाई के लिए अबला मद्रास विश्वविद्यालय चली गईं। 23 साल की उम्र में अबला की शादी जगदीश चंद्र बोस से कर दी गई। यही वजह थी की 1916 में जिस समय जगदीश चंद्र बोस को नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया तो अबला बोस को ‘लेडी बोस’ के नाम से पुकारा गया।
अपनी एक यूरोप यात्रा से लौटने के बाद, अबला बोस ने देश की महिलाओं के उत्थान का बेड़ा उठाने की प्रक्रिया पर काम करना शुरू किया, और साल 1910 में, ब्रह्मो बालिका शिक्षालय की सचिव बनी। जहां से अगले आने वाले 26 सालों तक लगातार अबला बोस ने इसकी जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने विधवाओं के लिए समाज में बहुत काम किए। इसके अलावा अबला ने देश में लड़कियों के लिए गर्ल्स स्कूल खुलवाए। चितरंजन दास की मदद के लेकर अबला ने नारी शिक्षा समिति की स्थापना की। जिसके चलते उन्होंने अपने पूरे जीवन में लगभग 88 प्राथमिक विद्यालय और 14 वयस्क शिक्षा केंद्र बनवाए। जिसमें मुरलीधर गर्ल्स कॉलेज और बेल्टोला गर्ल्स स्कूल भी शामिल है।
लेडी बोस के चलते महिलाओं को मिला मताधिकार
भारत में यूं तो महिलाओं को आजादी के साथ ही बहुत से अधिकार मिल गए थे। इसमें मताधिकार भी शामिल था। जब महिलाओं को मताधिकार को लेकर जहां देश में अलग बात चल रही थी। वहीं अबला बोस उस समय देश के अन्य प्रभावी महिला सरोजिनी नायडू, जिनराजदासा, रमाबई रानडे, मार्गरेट कजिन्स के साथ उस प्रतिनिधिमंडर का हिस्सा बन चुकी थीं, जोकि 1917 में एडविन मोंटेग्यू से मिला था। फि साल 1921 में बॉम्बे और मद्रास में सबसे पहले महिलाओं को मताधिकार देने का अधिकार मिला। साथ ही अबला की मेहनत के चलते साल 1925 आते-आते बंगाल को भी महिलाओं को मत देने का अधिकार मिल गया। जिस समय देश आज़ाद हो चुका था।
अबला बोस के साथ कामिनी रॉय को भी इतिहास में याद किया जाता है। वो भारत की पहली ग्रेजुएट महिला थीं। उन्होंने भारत में महिलाओं को मताधिकार दिलाने के आंदोलन में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई थी। इसके अलावा वह एक उच्चकोटि की साहित्यकार और कवियित्री थीं 1920 में भारत में मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार हो रहे थे और अलग-अलग राज्यों (प्रॉविंसेज) में भारतीय जनता को उत्तरदायी सरकार चुनने का मताधिकार मिलना था।
हालांकि यह मताधिकार काफी सीमित था जिसमें शिक्षित और धनी वर्ग ही वोट देने का अधिकार था। गरीब, अशिक्षित, निम्न वर्ग और महिलाओं का एक बड़ा वर्ग इन मताधिकारों से वंचित था। कामिनी रॉय ने कुमुदिनी मित्रा और मृणालीनी सेन जैसी महिलाओं के साथ 'बंगीय नारी समाज' की स्थापना की और महिलाओं के मताधिकार के लिए बंगाल प्रॉविंस में एक आन्दोलन खड़ा किया। इस आंदोलन ने बंगाली महिलाओं को मताधिकार प्रदान करने में एक अहम भूमिका निभाई और 1926 में उन्हें यह महत्वपूर्ण अधिकार मिला।
साल 1937 में जगदीश चंद्र बोस के निधन के बाद भी अबला बोस ने महिलाओं के हक में काम करना बंद नहीं किया। वहीं कामिनी रॉय ने महिला शिक्षा और महिला श्रम के क्षेत्र में भी अहम भूमिका निभाई। उस समय लड़कियों की शादी करने की न्यूनतम उम्र सीमा महज 14 साल थी और शादी की वजह से लड़कियां उच्च शिक्षा की तरफ आगे नहीं बढ़ पाती थीं। कामिनी रॉय ने लड़कियों की उच्च शिक्षा के लिए घर-घर जाकर आंदोलन चलाया और लोगों से अपील की कि वे अपनी लड़कियों की शादी करने से पहले उन्हें कम से कम एक बार विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा जरूर दिलवाएं। महिला दिवस के दिन इतिहास की इन जांबाज महिला के कामों की सराहना करना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है। महिलाओं के उत्थान में उनका योगदान अतुलनीय है।