- Home
- Career
- Education
- रेलवे ने नहीं दी नौकरी तो IAS बनकर दिया करारा जवाब...दृष्टिहीन लड़की के संघर्ष की कहानी
रेलवे ने नहीं दी नौकरी तो IAS बनकर दिया करारा जवाब...दृष्टिहीन लड़की के संघर्ष की कहानी
नई दिल्ली. वह देख नहीं सकती तो क्या हुआ उसे सपने देखने से तो कोई नहीं रोक सकता।उसना न सिर्फ सपना देखा बल्कि उसे हकीकत में बदलने का इरादा भी रखा। हिम्मत, हौसले और पहाड़ जैसे अडिग इरादों का जीता जागता उदाहरण है महाराष्ट्र के उल्हासनगर की रहने वाली प्रांजल पाटिल। वो देश की पहली दृष्टिहीन महिला आईएएस अफसर हैं। लोगों के ताने सुन और कई बार रिजेक्ट होने के बवजूद भी प्रांजल अफसर बनकर ही मानीं। IAS सक्सेज स्टोरी में हम आपको उनके संघर्ष की कहानी सुना रहे हैं......
| Published : Apr 02 2020, 10:32 AM
4 Min read
Share this Photo Gallery
- FB
- TW
- Linkdin
Follow Us
17
)
आंखो अंधेरे को प्रांजल ने कभी रास्ते की अड़चन नहीं बनने दिया। उन्होंने पहले ही प्रयास में देश की सबसे मुश्किल यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा में राष्ट्रीय स्तर पर 773वां रैंक हासिल अफसर बनने की ओर कदम बढ़ाया था। प्रांजल की सफलता इसलिए भी बड़ी है कि यूपीएससी परीक्षा पास करने के लिए उसने किसी कोचिंग की मदद नहीं ली थी। परीक्षा में पास होने के बाद भी सफलता का सफर कांटों भरा था। यूपीएससी में सफल होने के बाद प्रांजल को भारतीय रेलवे में आई.आर.एस के पद पर कार्य करने का अवसर दिया गया। प्रांजल ने उत्साह के साथ अपनी ट्रेनिंग में भाग लिया लेकिन रेलवे ने उन्हें दृष्टिहीन होने की वजह से रिजेक्ट कर दिया था। प्रांजल को ये बात दिल में चुभ गई।
27
प्रांजल भी अपनी मेहनत से मिले पद को प्राप्त करके समाज को नई दिशा देना चाहती थी। रेलवे विभाग के बताये कारण से प्रांजल असंतुष्ट जरूर थी लेकिन उसने हार नहीं मानी। जीवन ने उसके आगे समय-समय पर मुसीबतों के पहाड़ खड़े किये है लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उन्हें अपनी आंखों की रोशनी खो जाने की कहानी भी याद आई। जब वो 6 साल की थी और एक दिन स्कूल में बच्चे के हाथ से उसकी एक आंख में पेंसिल चुभ गई। उस हादसे ने प्रांजल की एक आंख छीन ली, अभी वो तकलीफ़ कम भी नहीं हुई थी कि साल भर बाद साइड इफेक्ट ने दूसरी आंख की भी रौशनी खत्म ही गई।
37
पर वो पढती रहीं और आगे बढ़ती गयीं। प्रांजल के पिता ने उन्हें मुबंई के दादर स्थित श्रीमति कमला मेहता स्कूल में दाखिल कराया। यह स्कूल प्रांजल जैसे खास बच्चों के लिए था, जहां ब्रेल लिपि के माध्यम से पढ़ाई होती थी। प्रांजल ने वहाँ से 10वीं तक की पढ़ाई पूरी की और फिर चंदाबाई कॉलेज से आर्ट्स में 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की जिसमें प्रांजल ने 85 फीसदी अंक प्राप्त किये। उसके बाद उत्साह के साथ बीए की पढ़ाई के लिए उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज का रुख किया।
47
प्रांजल कहती है कि “रोजाना उल्हासनगर से सीएसटी तक का सफर करती थीं। हर बार कुछ लोग मेरी मदद करते थे। वे सड़क पार कराते थे, तो कभी ट्रेन में बिठा देते थे। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जो कई तरह के सवाल करते थे। वे कहते थे कि रोज इतनी दूर पढ़ने के लिए क्यों आती हो? जब देख नहीं सकती तो पढ़ ही क्यों रही हो? पर प्रांजल के इरादे किसी को कहां मालूम थे।
57
ग्रेजुएशन के दौरान प्रांजल और ने पहली बार UPSC सिविस सर्विस के बारे में एक लेख पढ़ा। फिर प्रांजल ने यूपीएससी की परीक्षा से संबंधित जानकारियां जुटानी शुरू कर दी। उस वक्त प्रांजल ने किसी से यह बात जाहिर नहीं की, लेकिन मन ही मन आई.ए.एस बनने का इरादा कर लिया। बीए करने के बाद वह दिल्ली पहुंची और जेएनयू से एम.ए किया। इस दौरान ही प्रांजल ने आंखों से अक्षम लोगों की पढ़ाई के लिए बने एक खास सॉफ्टवेयर जॉब ऐक्सेस विद स्पीच की मदद लेना शुरू किया और अब प्रांजल को एक ऐसे लिखने वाले की जरूरत थी जो उसकी रफ्तार के साथ लिख सके। वो विदुषी नाम के पेपर पर लिखने लगीं।
67
उसने साल 2015 में तैयारी शुरू की साथ–साथ एम.फिल भी चल रही थी। इसी दौरान उसकी शादी ओझारखेड़ा में रहने वाले पेशे से एक केबल ऑपरेटर कोमल सिंह पाटिल से हुई। लेकिन प्रांजल की शर्त थी कि वो शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई लगातार जारी रखेंगी। माता-पिता, पति और दोस्तों के सहयोग से प्रांजल ने साल 2015 में यूपीएससी की परीक्षा को में 773 रैंक हासिल कर पास कर ली लेकिन वो रिजेक्ट हो गईं फिर दोबारा मेहनत के बाद उन्होंने 124 रैंक हासिल कर मुकाम रच दिया।
77
प्रांजल ने दूसरे प्रयास में पहले से भी अच्छे अंक प्राप्त कर दिव्यांगता को कमी बताकर ठुकराने वालों को करारा जवाब दिया। साथ ही प्रांजल ने दिव्यांग वर्ग में भी टॉप किया। वाकई में मुश्किल हालातों से निकल कर अपने आई.ए.एस बनने के सपने को साकार करने वाली प्रांजल पाटिल के हौसले को सलाम है। एक ऐसा हौसला जो ना जाने कितने लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर सफलता की कहानी लिखेगा।