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अरब के शेख को मिट्टी बेचकर कमा लिए पैसे, कुछ ऐसे बिजनेस करते थे धीरूभाई अंबानी
बिजनेस डेस्क। आज देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज की नींव रखने वाले और उसे सफलता की उंचाइयों तक पहुंचाने वाले धीरूभाई अंबानी की डेथ एनिवर्सरी है। धीरूभाई अंबानी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ जिले के एक छोटे से गांव चोरवाड़ में 28 दिसंबर, 1932 को हुआ था। गरीबी की वजह से उन्हें बचपन से ही तरह-तरह के काम करने पड़े। उन्होंने पकौड़े भी बेचे और यमन में पेट्रोल पंप पर भी काम किया, लेकिन अपनी बुद्धि और मेहनत की बदौलत कुछ ही समय में उन्होंने एक बड़ा व्यापारिक साम्राज्य कायम कर लिया। धीरूभाई अंबानी की मृत्यु 6 जुलाई, 2002 को दिल का दौरा पड़ने से हुई। लेकिन तब तक उन्होंने रिलायंस को देश की सबसे बड़ी कंपनी बना दिया था और उनकी संपत्ति 62 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा थी। धीरूभाई के बारे में कहा जाता है कि जिस चीज को भी वे हाथ लगा देते थे, वह सोना बन जाती थी। जानते हैं धीरूभाई की सक्सेस स्टोरी।
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जबरदस्त थी बिजनेस स्किल
धीरूभाई की बिजनेस स्किल जबरदस्त थी। वे जब यमन में पेट्रोल पंप पर काम करते थे, तभी से अपना बिजनेस करने के बार में सोचते थे। अपनी योग्यता और मेहनत के बल पर वे लगातार आगे बढ़ते चले गए। उस समय उन्हें वेतन के रूप में 300 रुपए हर महीने मिलते थे।
बर्मा शैल कंपनी में मैनेजर
बाद में वे बर्मा शैल कंपनी में मैनेजर बन कर भारत आ गए। कारोबार को लेकर उनमें काफी जुनून था। वे हमेशा बिजनेस की बारीकियों को समझने की कोशिश में लगे रहते थे। शैल कंपनी में काम करने के दौरान ही उन्होंने पेट्रोकेमिकल और पेट्रोलियम के बिजनेस में आने के बारे में सोचा था।
रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन बनाया
कुछ समय के बाद धीरूभाई अंबानी ने शैल कंपनी की नौकरी छोड़ दी और 60 के दशक में महज 15 हजार रुपए की पूंजी से रिलायंस कमर्शियल कॉरपेरेशन शुरू किया, जो इनका पहला बड़ा वेंचर था। इसके जरिए उन्होंने पॉलियस्टर, यार्न और मसालों के एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का काम शुरू किया। इसमें इन्हें काफी सफलता मिली।
शेख को बेच दी मिट्टी
धीरूभाई अंबानी के छोटे बेटे अनिल अंबानी ने एक बार बताया था कि किसी शेख ने उनके पिता से गुलाब के पौधे लगाने के लिए मिट्टी मंगवाई थी। धीरूभाई ने उसके भी पैसे वसूल कर लिए थे। जब किसी ने पूछा कि क्या यह ठीक था, तो धीरूभाई ने जवाब दिया कि पैसे उनके खाते में आए और उन्होंने रख लिए।
शुरू किया रिलायंस टेक्सटाइल्स
1967 में धीरूभाई ने 15 लाख रुपए की पूंजी से रिलायंस टेक्सटाइल्स शुरू किया। धीरे-धीरे धीरूभाई ने मुंबई के यार्न उद्योग पर कब्जा जमा लिया। उस समय उनका परिवार एक खोली में रहत था। एक ही कमरे में सब लोग रहते थे। उस समय धीरूभाई ने वीरेन शाह ले मदद मांगी थी, जिनकी मुकुंद आयरन एंड स्टील कंपनी थी। शाह ने मदद करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि उन्हें लगा था कि प्रोजेक्ट नहीं चल पाएगा।
विमल ब्रांड की शुरुआत की
धीरूभाई ने जब विमल ब्रांड की शुरुआत की तो उन्हें कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा। देश के दूसरे वस्त्र निर्माताओं ने अपने डीलरों को विमल के कपड़े बेचने की मनाही कर दी। इसके बाद धीरूभाई ने खुद पूरे देश में घूम कर विमल के लिए नई डीलरशिप तैयार की। उन्होंने अपने डीलर्स से कहा कि नुकसान होगा तो मेरा और फायदा होगा तो आपका। इसके बाद देश में एक ही दिन विमल के 100 शोरूम खुले।
1977 में रिलायंस बनी पब्लिक लिमिटेड कंपनी
1977 में रिलायंस पब्लिक लिमिटेड कंपनी बन गई, लेकिन जब शेयर पब्लिक के लिए खुले तो कोई इन्वेस्टर नहीं मिल पा रहा था। धीरूभाई के मित्र डी. एन. श्राफ अपने जानने वालों को शेयर खरीदने के लिए कह रहे थे, पर कोई तैयार नहीं हो रहा था। कलकत्ता के बिचौलियों ने उन्हें चूना लगाने की कोशिश की, लेकिन धीरूभाई ने ऐसा दांव चला कि जल्दी ही उनकी कंपनी के शेयर धड़ाधड़ बेहद ऊंची कीमत पर बिकने लगे।
रेयॉन और नायलॉन का एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट
धीरूभाई ने रेयॉन और नायलॉन के एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट का कारोबार शुरू किया। यह देश में कहीं बनता नहीं था। इसलिए इस कारोबार में मुनाफा बहुत ज्यादा था। इस बिजनेस को लेकर धीरूभाई पर कानून तोड़ने और ब्लैक मार्केटिंग तक के आरोप भी लगे। इसके बाद धीरूभाई ने एक मीटिंग बुलाई और साफ कहा - “You accuse me of black marketing, but which one of you has not slept with me?” इसका कोई जवाब नहीं दे सका, क्योंकि सबों ने उनके साथ बिजनेस किया था।
किसी तरह काम निकलना लेने का था हुनृर
धीरूभाई जिस जमाने में कारोबार कर रहे थे, वह कोटा-परमिट-लाइसेंस राज था। इस दौर में सरकार के कानून बहुत कड़े थे। किसी बिजनेस के लिए लाइसेंस मिल पाना आसान नहीं था। लेकिन धीरूभाई किसी न किसी तरह से अपना काम निकलवा लेते थे। यह भी कहा जाता है कि ये इंदिरा गांधी और उनके सचिव आर. के. धवन के करीबी थे, जिसका फायदा इन्हें मिला। धीरूभाई अंबानी के बारे में कहा जाता है कि ये अपने प्रतियोगियों को आगे नहीं बढ़ने देते थे। 1982 में रिलायंस पॉलियस्टर यार्न बनाने वाला था। इसके लिए डाई मिथाइल टेरीथेलेट का इस्तेमाल किया जाना था। एक दूसरी कंपनी ओर्के सिल्क मिल्स भी पॉलियस्टर चिप्स से यार्न बनाने जा रही थी। लेकिन उसी समय सरकार चिप्स के इम्पोर्ट पर ड्यूटी बढ़ा दी। इससे ओर्के के लिए मुसाीबत हो गई।
धीरूभाई की पार्टी में आई थीं इंदिरा गांधी
1980 में लोकसभा चुनाव के बाद धीरूभाई अंबानी ने एक पार्टी की थी, जिसमें इंदिरा गांधी भी आई थीं। कहा जाता है कि अंबानी का एक लाइसेंस रुका हुआ था, उसके लिए आर. के. धवन ने खुद जॉइंट सेक्रेटरी को फोन किया था और पूछा था कि लाइसेंस क्यों रुका हुआ है। दूसरे बिजनेसमैन कहते हैं कि अंबानी ने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए हर तरह का तरीका अपनाया, लेकिन सच्चाई यह है कि उस जमाने में दूसरे उद्योगपति जो नहीं कर पाए, वह करने में धीरूभाई सफल रहे।