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Janamastmi 2022: जब भी हों निराश या असफल तो घबराएं नहीं, ध्यान रखें श्रीकृष्ण के ये 6 सूत्र
उज्जैन. भगवान श्रीकृष्ण का जीवन जितना सरल दिखाई देता है, उतना है नहीं। बाल्यकाल में ही अनेक दैत्यों ने उन्हें मारने का प्रयास किया। इसके बाद मथुरा पर लगातार हो रहे आक्रमण के चलते उन्होंने द्वारिका नगरी बसाई। समय-समय पर उन्होंने पांडवों की सहायता के लिए जाना पड़ा। उन्होंने कौरवों और पांडवों का युद्ध टालने की भी काफी कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाए और आखिर में गांधारी ने इस युद्ध का कारण उन्हे मानकर श्राप भी दे दिया। लेकिन इन सब के बाद भी श्रीकृष्ण ने कभी धर्म के मार्ग से मुंह नहीं मोड़ा। श्रीकृष्ण के जीवन में ऐसे अनेक मौके आए जब वे हताश हो सकते थे, लेकिन उन्होंने एक नई शुरूआत की। जन्माष्टमी (Janamastmi 2022) 19 अगस्त, शुक्रवार के मौके पर जानिए भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से हमें क्या सीखना चाहिए…
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भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कृष्ण की कारागार में हुआ था। चारों तरफ सिपाहियों का कड़ा पहरा था। ऐसी विपरीत परिस्थिति में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। तब देवी योगमाया ने अपनी माया से श्रीकृष्ण को सकुशल गोकुल पहुंचाया। श्रीकृष्ण के जीवन का ये प्रसंग हमें सीखाता है कि स्थिति कितनी भी विपरीत क्यों न हो, अगर हम सही है तो स्वयं परमपिता परमात्मा हमारी सहायता करता है।
जब गोकुलवासी वर्षा के लिए इंद्र की पूजा करते थे तो श्रीकृष्ण ने इसका विरोध किया और बताया कि बारिश करना तो इंद्र का नैतिक कर्तव्य है, इसके लिए उनकी पूजा करना ठीक नहीं है। ग्रामवासियों ने ऐसा ही किया और क्रोधित होकर इंद्र ने गोकुलवासियों को डराने का भरसक प्रयास किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने हार नहीं मानी और अंत में इंद्र को झुकना पड़ा।
जब भगवान श्रीकृष्ण से उनकी गुरुमाता ने गुरुदक्षिणा के रूप में अपने मृत पुत्रों का मांगा तो इसके लिए श्रीकृष्ण प्रभाव क्षेत्र में गए। क्योंकि गुरु पुत्रों को पांचजन्य नाम को राक्षस ले गया था। वह वह प्रभास क्षेत्र के समुद्र में निवास करता था। उस समय श्रीकृष्ण ने देखा कि प्रभास क्षेत्र नया नगर बसाने के लिए काफी उपयुक्त है। बाद में जब मथुरा छोड़कर नया नगर बसाने की बारी तो श्रीकृष्ण ने प्रभास क्षेत्र को ही चुना। यानी उस समय श्रीकृष्ण की दूरदर्शिता काम आई।
जब मथुरा पर बार-बार दुश्मनों द्वारा हमला किया जाने लगा तो इसका असर वहां रहने वाले लोगों पर भी होने लगा। वे भी हर समय भयभीत रहने लगे। तब श्रीकृष्ण ने उस स्थान को छोड़कर नया नगर बसाने की बात कही। पहले तो सभी ने इस बात का विरोध किया, लेकिन बाद में नगरवासियों के हित में श्रीकृष्ण की ये बात मान ली। लाइफ मैनेजमेंट ये है कि परिस्थितियों में यदि सुधार न हो तो पीछे हटने में भी कोई बुराई नहीं है।
राजसूय यज्ञ के दौरान जब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया तब उनकी उंगली में हल्की सी चोंट आ गई, तब द्रौपदी ने अपने वस्त्र एक एक टुकड़ा फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली में बांध दिया। बाद में जब भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था, उस समय श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी इतनी लंबी कर दी कि दु:शासन उसे निकाल नहीं पाया। अर्थ ये है कि कोई भी अच्छा काम एक फिक्स डिपॉजिट की तरह होता है जो कई गुना होकर मिलता है।
जब भगवान श्रीकृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर गए तो वहां दुर्योधन ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया और बाद में उन्हें बंदी बनाने का भी प्रयास किया। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाया, जिसे देखकर कौरव डर गए और कोई उन्हें हाथ भी नहीं सका। लाइफ मैनेजमेंट ये है कि समय आने पर अपनी ताकत का प्रदर्शन भी जरूरी है।