ऑलटाइम ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शोले'(1975) के ठाकुर बलदेव सिंह यानी संजीव कुमार की 87वीं बर्थ एनिवर्सरी है। 9 जुलाई 1938 को मुंबई में पैदा हुए संजीव कुमार का असली नाम हरिहर जेठालाल जरीवाला था। उस वक्त वे 47 साल के थे, जब उनका हार्ट अटैक से निधन हो गया था। पहले हार्ट अटैक के बाद यूएस में उनकी बायपास सर्जरी हुई थी। लेकिन 8 नवम्बर 1985 को उन्हें बड़ा हार्ट अटैक आया और वे दुनिया को अलविदा कह गए। दुखद यह है कि इससे ठीक पहले उनके छोटे भाई नकुल की मौत हुई थी और संजीव कुमार के निधन के 6 महीने बाद उनके दूसरे भाई किशोर की मौत हो गई थी। संजीव कुमार तीन भाई ही थे।

आखिरी फिल्म की सिर्फ एक तिहाई शूटिंग कर पाए थे संजीव कुमार

संजीव कुमार की 10 से ज्यादा फ़िल्में उनकी मौत के बाद रिलीज हुई थीं। उनकी आखिरी फिल्म 'प्रोफेसर की पड़ोसन' की तो शूटिंग भी पूरी नहीं हो पाई थी। बताया जाता है कि जब संजीव कुमार का निधन हुआ तब वे 'प्रोफेसर की पड़ोसन' की एक तिहाई या चौथाई ही शूटिंग ही पूरी कर पाए थे। कथिततौर पर मेकर्स ने फिल्म के दूसरे पार्ट में संजीव कुमार की गैरमौजूदगी को समझाने के लिए कहानी में बदलाव करने का फैसला लिया था।

संजीव कुमार की जीवित रहते आखिरी फिल्म कौन-सी थी?

संजीव कुमार के जीवित रहते रिलीज हुई उनकी आखिरी फिल्म 'ज़बरदस्त' थी, जो 21 जून 1985 को रिलीज हुई थी। नासिर हुसैन निर्देशित इस फिल्म में संजीव कुमार के अलावा सनी देओल, जया प्रदा, राजीव कपूर और रति अग्निहोत्री की भी अहम् भूमिका थी। 1985 में ही संजीव कुमार की एक अन्य फिल्म 'रुसवाई' भी रिलीज होनी थी। लेकिन यह कभी थिएटर में पहुंच ही नहीं पाई।

संजीव कुमार की वो फ़िल्में, जो उनकी मौत के बाद रिलीज हुईं

संजीव कुमार की मौत के बाद 1986 में उनकी 6 फ़िल्में 'बदकार', 'कातिल', 'कांच की दीवार', 'लव एंड गॉड', 'हाथों की लकीरें' और 'बात बन जाए' रिलीज हुईं। 1987 में उनकी दो फ़िल्में 'राखी और 'हिरासत' (स्पेशल अपीयरेंस), 1988 में दो फ़िल्में 'नामुमकिन' (फ्रेंडली अपीयरेंस), 'दो वक्त की रोटी', 1989 में एक फिल्म 'ऊंच नीच बीच' और 1993 में एक फिल्म 'प्रोफेसर की पड़ोसन' रिलीज हुईं। कुल मिलाकर संजीव कुमार की ऐसी 12 फ़िल्में थीं, उनकी मौत के बाद रिलीज हुई थीं।