रकुल प्रीत सिंह ने फादर्स डे पर अपने आर्मी बैकग्राउंड के बारे में खोला दिल। उन्होंने बताया कैसे आर्मी किड होने ने उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाया और ज़िंदगी को एक अलग नज़रिए से देखने में मदद की।
Rakul Preet Singh Celebrates Fathers Day : बॉलीवुड एक्ट्रेस रकुल प्रीत सिंह ने आज यानि 15 जून को फादर्स डे सेलीब्रेट कर रहीं हैं। उन्होंने एक आर्मी किड के रूप में अपने बचपन बिताया है। वे अपने पिता के डेडीकेशन का बहुत सम्मान करती हैं। उन्होंने तमाम यादों को सलीके से समेट कर रखा है। एक्ट्रेस की पूरी ज़िंदगी में आर्मी किड होना सबसे अहम रहा हैं। उनके पिता कर्नल (वेटरन) कुलविंदर सिंह ने आर्टिलरी रेजिमेंट में अपनी सेवाएं दे चुके है। ये वही डिवीजन है जो लंबी दूरी की बंदूकें, रॉकेट और मिसाइलें दागती है।
आर्मी ने बनाया मानसिक रूप से मजबूत
फादर्स डे के मौके पर वह अपने बचपन को बड़े प्यार से याद करती हैं, भले ही उनके पिता को कभी-कभी ड्यूटी के लिए दूर रहना पड़ता था। रकुल ने बताया कि "मैं कैंटोनमेंट में पली-बढ़ी हूं, इसलिए एक आर्मी किड को इस तरह लाइफ जीने का एक तरीका मालूम है। हालांकि बचपन में आपको इससे बेहतर कुछ नहीं पता होता। हर किसी के पिता एक महीने या एक वीकेंड के लिए आते हैं। फील्ड पोस्टिंग और पीस पोस्टिंग होती थी। इस दौरान आप इमोशनली रूप से बहुत मजबूत हो जाते हैं।
पिता से महीनों नहीं हो पाती थी मुलाकात
रकुल को यह भी याद है कि अक्सर पिता दूर रहते थे, बावजूद उनके और उनके पिता के बीच कभी गैप नहीं रहा। दोनों के बीच वही बॉडिंग बनी रही, प्यार में थोड़ी भी कमी नहीं आई, "1990 के दशक में मोबाइल फोन नहीं थे, हम ट्रंक कॉल पर पिताजी से बात करते थे। जब 1999 के आसपास सीमा पर अशांति की वजह वे उत्तर पूर्व में तैनात थे, तो एक मीडिएटर हमारा मैसेज उन तक पहुंचाया करता था। 'साहब बच्चे चॉकलेट लाने को बोल रहे हैं', हम पिताजी का जवाब सुन सकते थे लेकिन वे हमें नहीं सुन सकते थे। आज, यह मुझे इस तरह से मदद करता है कि ट्रोलिंग से मुझे कोई प्रभावित नहीं कर पाता हैं। हमने हर तरह के हालातों का सामना किया है। हम इसके लिए हमेशा से तैयार रहते हैं।
ऑपरेशन सिंदूर से बेहद प्रभावित हैं रकुल प्रीत सिंह
रकुल प्रीत सिंह ना बताया कि ऑपरेशन सिंदूर, बढ़ते आतंकवाद के कारण पड़ोसियों को भारत का जवाब था। उन्होंने कहा, "मैंने यह देखा है। कारगिल के बाद, ऑपरेशन पराक्रम हुआ, सेना फिर से तैनात की गई, मेरे पिता भी तैनात थे। तीन महीने तक हमें नहीं पता था कि हमारी सेना वापस आ रही है या नहीं, या हालात क्या है। फिर 1999 के आसपास उत्तर पूर्व में सीमा पर अशांति थी। मैंने अपने पिता को देखते ही गोली मारने के आदेश (दुश्मन की ओर से) की कहानियां सुनी हैं। बचपन से पता था... आप लाइफ को एक अलग नज़रिए से देखते हैं। यही वजह है कि मुझे लगता है कि ज़्यादातर आर्मी के बच्चे संतुलित और केंद्रित होंगे। आप निडर होने के माहौल में पले-बढ़े हैं, छोटी-मोटी प्राब्लम हमारी लाइफन में कोई मुद्दा नहीं हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, मेरे पिता और मैं अपने टीवी से चिपके रहते थे और लगातार कॉन्टेक्ट में रहते थे।"