सार
बच्चे के संक्रमित होने का डर बहुत ज्यादा है। इस चिंता ने इंडियन पैरेंट्स को अपने नौनिहालों को स्कूलों में भेजने को लेकर सावधान कर दिया है। एक सर्वे के अनुसार, 224 जिलों के अधिकांश अभिभावक सामाजिक गड़बड़ी और वायरस फैलने की जांच करने और कक्षाओं की निरंतरता को प्राथमिकता देने के लिए स्कूलों की तैयारी को लेकर कॉन्फिडेंट नहीं हैं।
नई दिल्ली: देश में बढ़ते कोरोना के मामलों देख स्कूली बच्चों के परिजनों के अंदर डर बैठ गया है। असर ऐसा है कि अगर स्कूल खुलते हैं तो ये परिजन अपने बच्चों को तुरंत पढ़ने नहीं भेजेंगे। स्कूल खुलने के बाद बच्चों को तुरंत पढ़ने नहीं भेजने वाले परिजनों की संख्या 92 प्रतिशत है, वहीं 56 प्रतिशत कम से कम एक महीने तक हालात का जायज़ा लेने के बाद फ़ैसला करेंगे।
कुछ देशों में स्कूलों के फिर से खुलने के बाद कोविड -19 के बढ़ते मामले देख भारतीय पैरेंट्स अभी बच्चों को स्कूल भेजने को पूरी तरह तैयार नहीं। बच्चे के संक्रमित होने का डर बहुत ज्यादा है। इस चिंता ने इंडियन पैरेंट्स को अपने नौनिहालों को स्कूलों में भेजने को लेकर सावधान कर दिया है। एक सर्वे के अनुसार, 224 जिलों के अधिकांश अभिभावक सामाजिक गड़बड़ी और वायरस फैलने की जांच करने और कक्षाओं की निरंतरता को प्राथमिकता देने के लिए स्कूलों की तैयारी को लेकर कॉन्फिडेंट नहीं हैं।
बच्चों को स्कूल भेजने की कोई जल्दी नहीं-
जहां एचआरडी मंत्रालय स्कूलों को फिर से खोलने के लिए दिशा-निर्देश तैयार कर रहा है, वहीं अभिभावकों को बच्चों को स्कूल भेजने की कोई जल्दी नहीं है। सर्वे में शामिल केवल 11% पैरेंट्स ही फिर से शुरू होने वाले स्कूलों के समर्थन में हैं। ये स्थानीय सोसाइटी, कम्यूनिटी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा किए गए सर्वे का हिस्सा थे।
सर्वे में शामिल 18,000 अभिभावकों में से लगभग 37% ने महसूस किया कि स्कूलों को केवल तभी फिर से खोलना चाहिए जब जिले में कोई नया मामला न हो और 21 दिनों के लिए स्कूल 20 किमी के दायरे में हो। हालांकि, 20% से अधिक अभिभावकों ने कहा कि देश में तीन सप्ताह तक कोई नया मामला नहीं आने के बाद ही स्कूलों को फिर से खोलना चाहिए, जबकि 13% ने यह भी महसूस किया कि कोरोना की वैक्सीन या टीका बनने तक स्कूलों को बंद रहना चाहिए।
पेरेंट सर्कल देशव्यापी सर्वे में पैरेंट्स ने उठाई ये मांग-
एक और पेरेंट सर्कल देशव्यापी सर्वे में बच्चों के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं पर परिजनों की राय ली गई। जिन पहलुओं पर राय ली गई है उनमें बच्चों को स्कूल भेजना, दूसरों के साथ खेलने देना, बर्थडे पार्टी मनाना, मॉल-फिल्म या फैमिली वोकेशन पर जाना जैसी बातें शामिल हैं।
कोविड पूरे कंट्रोल में हो तभी खुले स्कूल-
ज़्यादातर सवालों के जवाब में परिजन काफ़ी आशंकाओं से घिरे नज़र आए हैं। मार्च में ज़्यादातर शैक्षणिक संस्थानों को बंद कर दिया गया था। लंबा समय बीत जाने के बाद भी परिजन बच्चों को दोबारा से पढ़ने भेजने को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं हैं। बच्चों को स्कूल भेजने से पहले वो इसे लेकर आश्वस्त होना चाहते हैं कि कोविड को लेकर स्थिति पूरे कंट्रोल में है।
बच्चों को तुरंत स्कूल नहीं भेजना चाहते-
इस सर्वे में देश भर के जिन 12000 परिजनों ने हिस्सा लिया है उनमें से 92 प्रतिशत अपने बच्चों को तुरंत स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं। महज़ 8 प्रतिशत ऐसे परिजन हैं जो स्कूल खुलते ही अपने बच्चों को पढ़ने भेजने को तैयार हैं। सर्वे में शामिल 45 प्रतिशत परिजन कम से कम 6 महीने के लिए अपने बच्चों को किसी स्पोर्ट्स में हिस्सा न लेने की बात कहते हैं। हालांकि, 25 प्रतिशत अपने बच्चों को ऐसे स्पोर्ट्स में हिस्सा लेने देंगे जिसमें टीम के बजाए अकेले खेलना होता है।