सार
Viral Post: थायरोकेयर फाउंडर डॉ. वेलुमणि ने जब मुंबई में ऑटो रिक्शा की सवारी की, तो उन्हें समाज में अमीर-गरीब के भेदभाव का असली चेहरा नजर आया। उन्होंने बताया कि कैसे एक स्टार होटल ने उनके ऑटो को अंदर जाने से रोक दिया। जानिए
Thyrocare Founder Viral Post: बिलियनेयर और थायरोकेयर के फाउंडर डॉ. अरोकियास्वामी वेलुमणि के लिए मुंबई में ऑटो रिक्शा की सवारी सिर्फ एक मजेदार अनुभव नहीं, बल्कि समाज में मौजूद अमीर-गरीब के भेदभाव की असलियत दिखाने वाला लम्हा बन गया। डॉ. वेलुमणि हाल ही में मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (BKC) में एक इवेंट के लिए आए थे। आमतौर पर लग्जरी कारों में सफर करने वाले इस बिजनेसमैन ने इस बार मजे के लिए ऑटो रिक्शा लेने का फैसला किया। रास्ते में उन्होंने ऑटो ड्राइवर से बातचीत शुरू की। जैसे-जैसे बातें आगे बढ़ीं, उन्हें एक ऐसी सच्चाई पता चली जिसने उन्हें अंदर तक हिला दिया।
IIT में पढ़ रहा बेटा, फीस भरने के लिए पिता दिन-रात चला रहा ऑटो
ऑटो ड्राइवर ने बताया कि उसका बेटा आईआईटी हैदराबाद में पढ़ रहा है और अभी तीसरे साल का छात्र है। लेकिन उसकी फीस भरने के लिए वह खुद रोज 12-14 घंटे तक ऑटो चलाता है। यह सुनकर डॉ. वेलुमणि को एक तरफ प्रेरणा मिली, तो दूसरी ओर समाज के गरीब वर्ग के संघर्ष का एहसास हुआ। लेकिन असली झटका तो उन्हें तब लगा जब उनका ऑटो होटल के गेट पर पहुंचा।
स्टार होटल ने कह दिया- "ऑटो अंदर नहीं आ सकता!"
जब उनका ऑटो BKC के एक स्टार होटल के गेट पर पहुंचा, तो सिक्योरिटी गार्ड्स ने उसे अंदर जाने से रोक दिया। उन्होंने कहा- "होटल के नियम हैं, ऑटो अंदर नहीं जा सकता!" डॉ. वेलुमणि ने बताया कि गार्ड्स का रवैया बेहद रूखा था और उन्हें ऑटो से उतरकर पैदल अंदर जाना पड़ा।
क्यों होते हैं ऐसे अजीबोगरीब नियम: डॉ. वेलुमणि
इस घटना के बाद डॉ. वेलुमणि ने अपने X (पहले ट्विटर) अकाउंट पर लिखा- "आखिर क्यों? क्या मेहनत करने वाले इंसान की इज्जत सिर्फ उसके वाहन से तय होती है?" नीचे देखें वायरल पोस्ट।
गरीब मेहनत करे, लेकिन सम्मान न मिले?
इस पूरी घटना ने समाज की गहरी सच्चाई उजागर कर दी। जहां एक पिता अपने बेटे को आईआईटी तक पढ़ाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है, लेकिन उसी पिता का ऑटो एक होटल के दरवाजे पर रोक दिया जाता है।
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डॉ. वेलुमणि की पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल
डॉ. वेलुमणि की यह पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और हजारों लोगों ने इस मुद्दे पर सवाल उठाए। क्या हमें सिर्फ कपड़ों और गाड़ियों से लोगों की पहचान करनी चाहिए या उनकी संघर्ष और मेहनत को भी सम्मान देना चाहिए?
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