सार
इस्लामी मान्यताओं के अनुसार मुहर्रम (Muharram 2022) महीने की 10 तारीख को कर्बला में हजरत इमाम हुसैन (Hazrat Imam Hussain) यजीद की सेना से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उनकी याद में आज भी मुस्लिम समाज के लोग दुख मनाते हैं।
उज्जैन. हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे और यजीद एक तानाशाह शासक। यजीद के जुल्मो सितम के खिलाफ इमाम हुसैन ने नेकी की राह पर चलते हुए अपने साथियों के साथ कुर्बानी दी थी। ये बात तो लगभग सभी जानते हैं, लेकिन एक बात बहुत कम लोगों को पता है कि उस समय इमाम हुसैन का साथ देने भारत से ब्राह्मणों का एक दल गया था। इन्हें हुसैनी ब्राह्मण (Hussaini Brahmin) के नाम से जाना जाता है। सुनने में ये बात अजीब जरूर लगे लेकिन कई किताबों में इसका जिक्र मिलता है। आगे जानिए कौन हैं हुसैनी ब्राह्मण...
कौन हैं हुसैनी ब्राह्मण? (Who are Hussaini Brahmins?)
कहा जाता है कि पैगंबर हुसैन के दौरा में भारत के मोहयाल नामक स्थान पर राजा राहिब सिद्ध दत्त का राज था, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। तब वे किसी के कहने पर इमाम हुसैन के पास पहुंचे। उस समय इमाम हुसैन की उम्र अधिक नहीं थी। राजा ने अपनी परेशानी पैगंबर मोहम्मद को बताई। तब नबी ने इमाम हुसैन से कहा कि इनकी कोई औलाद नहीं है, इनके लिए दुआ करो। इमाम हुसैन ने हाथ उठाकर इनके लिए दुआ की, जिसके असर से राजा राहिब सिद्ध दत्त के घर में बच्चों की किलकारी गूंजने लगी। तभी से ये हुसैनी ब्राह्मण के नाम से पहचाने जाने लगे।
किसने लिया इमाम हुसैन की मौत का बदला (Who took revenge for the death of Imam Hussain)
जब हुसैनी ब्राह्मणों को ये पता चला कि इमाम हुसैन की जान पर संकट है तो वे तुंरत उनकी मदद के लिए इराक रवाना हो गए, लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही यजीद ने इमाम हुसैन का कत्ल कर दिया। हुसैनी ब्राह्मणों ने यजीद की सेना के बीच भी भयंकर युद्ध हुआ। हुसैनी ब्राह्मणों ने चुन-चुन कर इमाम हुसैन के कातिलों को मारा। इस जंग में कई हुसैनी ब्राह्मण भी मारे गए, जिन्में राजा राहिब सिद्ध दत्त के 7 बेटे भी थे।
आज भी वजूद में है हुसैनी ब्राह्मण
मौजूदा समय में हुसैनी ब्राह्मण अरब, कश्मीर, सिंध, पाकिस्तान, पंजाब, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों में रहते हैं। कई बड़ी हस्तियां खुद को हुसैनी ब्राह्मण बताती है। ये लोग भी मुहर्रम की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत के गम में मातम और मजलिस करते हैं। क्योंकि इसी दिन इमाम हुसैन शहीद हुए थे। मुहर्रम की दसवीं तारीख को यौमे अशुरा भी कहते हैं।
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